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RIMS News: 2015 में डेंटल कॉलेज के लिए मनमाने तरीके से खरीदे गए थे उपकरण, घोटाला में अब तक कार्रवाई नहीं

साल 2015 में रिम्स डेंटल कॉलेज के लिए मनमाने तरीके से डेंटल चेयर व मोबाइल डेंटल वैन खरीदे गये थे. इसमें बड़ा घोटाला किया गया था. घोटाले की पुष्टि के 6 साल बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है.

रिम्स डेंटल कॉलेज में उपकरण खरीद घोटाला का मामला पुष्टि होने के उपरांत छह साल बाद भी लटका हुआ है. इस मामले में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है, जबकि महालेखाकार की जांच टीम ने 28 सितंबर 2020 को गड़बड़ी पकड़ी थी. छह साल से इस मामले को लटका कर रखा गया है. रिम्स द्वारा चिह्नित लोगों से सिर्फ शोकॉज कर खानापूर्ति की जाती है. हालांकि जांच टीम ने पाया था कि उपकरणों को 200 से 250 फीसदी ज्यादा कीमत पर खरीदा गया था. खरीदारी में दो पूर्व निदेशक और एक दंत चिकित्सक की संलिप्तता पायी गयी है. वहीं, ज्यादा उपकरण की खरीद के कारण दर्जनों डेंटल चेयर पड़े हुए हैं. उनका एक बार भी उपयोग भी नहीं हुआ है. कई उपकरणों को अभी ढंक कर रखा गया है.

200% ज्यादा कीमत पर खरीदे गये डेंटल चेयर

जांच रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि जीबी में 5.80 करोड़ की खरीद पर सहमति बनी थी. इसे पहले 9.29 करोड़ किया गया. हालांकि बाद में 37.42 करोड़ का प्रस्ताव तैयार किया गया, जिसके मद में खरीदारी की गयी. उस समय बाजार में डेंटल चेयर की कीमत 6.25 लाख थी, लेकिन उसे 200 फीसदी अधिक कीमत पर 14.28 लाख में खरीदा गया. वहीं, डेंटल वैन की कीमत उस समय 23 से 41 लाख थी, जिसे 1.48 करोड़ में खरीदा गया. टीम ने यह भी पाया कि पात्र एजेंसी की बजाय मनचाहे एजेंसी को कार्यादेश दिया. यहां बता दें कि वर्ष 2021 से अभी चिह्नित दोषियों से रिम्स प्रबंधन द्वारा सिर्फ उनका पक्ष लिया जा रहा है.

होल एक्जोम सीक्वेंसिंग से होगी बीमारियों की पहचान

रिम्स में असाध्य और दुर्लभ बीमारी की पहचान शीघ्र होने लगेगी. इसके लिए होल एक्जोम सीक्वेंसिंग की जांच रिम्स के जेनेटिक एवं जीनोमिक्स विभाग में शुरू की जायेगी. इसकी जांच के लिए नेक्स्ट जेनरेशन सीक्वेंसिंग प्लेटफॉर्म मशीन रिम्स के पास उपलब्ध है. कंज्यूमेबल आइटम और केमिकल मंगाने की प्रक्रिया चल रही है. इधर, जीन की जांच के लिए सेंगर सीक्वेनसर मशीन जर्मनी से मंगायी जा रही है. मशीन की कीमत एक करोड़ है. रिम्स क्रय समिति की बैठक के बाद कंपनी को कार्यादेश दिया जायेगा. विशेषज्ञों ने बताया कि होल एक्जोम सीक्वेंसिंग की जांच शुरू होने से अनुवांशिक बीमारी की सही पहचान हो जायेगी. इसके बाद मरीज विशेष सेंटर में जाकर इलाज करा पायेंगे. वर्तमान में असाध्य और दुर्लभ बीमारी की पहचान समय पर नहीं हो पाती है, जिससे मरीजों को भटकना पड़ता है. विभागाध्यक्ष डॉ अनूपा प्रसाद ने बताया कि इस जांच के शुरू होने से रिम्स की पहचान देश के अग्रणी मेडिकल कॉलेज में होने लगेगी. एक्जोम सीक्वेंसिंग एक प्रकार का डीएनए सीक्वेंसिंग है. इसमें किसी व्यक्ति के जीनोम का एक्सोम यानी प्रोटीन की कोडिंग की जाती है. इससे यह पता चल जाता है कि किस प्रोटीन के कारण बीमारी हो रही है.

सेवानिवृत्त हाे गये, लेकिन ओपीडी की सूची में शामिल

रिम्स में सेवानिवृत डॉक्टरों का नाम भी ओपीडी शेड्यूल की सूची में शामिल है. ऑनलाइन से ओपीडी पर्ची बनाने वाले या डॉक्टर का नाम देखकर आने वाले मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. स्त्री एवं प्रसूति विभाग की डॉ सरिता तिर्की, सर्जरी के डॉ आरएस शर्मा, स्किन में डॉ डीके मिश्रा और हड्डी में डाॅ विनय प्रभात सेवानिवृत्त हो गये हैं, लेकिन ओपीडी की सूची में उनका नाम शामिल है.

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