आत्महत्या रोकने के लिए सलाह नहीं, सपोर्ट की जरूरत
कोरोना और उसके चलते हुए लॉकडाउन से रोजी-रोजगार की समस्या पैदा तो हुई है, पर यह स्थायी नहीं है. यह जरूर एक कठिन दौर है जो सिर्फ झारखंड या भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में है. लेकिन इसे गुजर जाना है. कई लोग छोटी-छोटी परेशानियों, बाधाओं, दुखों से अवसाद में चले जाते हैं, जो उन्हें आत्महत्या के लिए प्रेरित करता है. लेकिन मानव जीवन अनमोल है. यह व्यर्थ गंवाने के लिए नहीं, बल्कि संघर्ष कर मिसाल बनाने के लिए है. प्रभात खबर इस गंभीर समस्या के अहम बिंदुओं को उजागर करने का प्रयास कर रहा है.
रांची : कोलकाता में काम करने वाले एक इंजीनियर की नौकरी लॉकडाउन के दौरान चली गयी. वह रांची आ गया. धीरे-धीरे वह डिप्रेशन में चला गया. रात में नींद नहीं आने लगी. पत्नी उसे सलाह देने लगी कि क्या हुआ मेरे भाई की भी नौकरी गयी थी. वह तो अब ठीक है. पति कहता कि तुम्हारे भाई और मेरी स्थिति में अंतर है. दोनों में बहस हो गयी. पति ने आत्महत्या की कोशिश की. उसके बाद उसे इलाज के लिए सीआइपी लाया गया. पति-पत्नी दोनों की काउंसेलिंग की गयी. अब स्थिति लगभग सामान्य है तथा अभी डॉक्टर की देखरेख में इनका इलाज चल रहा है.
इस तरह के कई मामले अब मनोचिकित्सा संस्थानों में आने लगे हैं. लोगों की परेशानी बढ़ी हुई है. अकेले सीआइपी में हर दिन करीब 30 कॉल आ रहे हैं. लैंड लाइन पर 10-12 तथा सीनियर रेजीडेंट के मोबाइल नंबरों (इसे संस्थान ने अपने वेबसाइट पर जारी किया है) पर 20 कॉल आ रहे हैं. पिछले तीन माह में तीन हजार से अधिक कॉल आये, जिनमें 90 फीसदी मामले डिप्रेशन से जुड़े सवालों के होते हैं. वहींं 10 फीसदी लोग सीआइपी के ओपीडी व दवाइयों की जानकारी के लिए फोन करते हैं.
संस्थान के सह प्राध्यापक डॉ संजय कुमार मुंडा बताते हैं कि अब धीरे-धीरे कॉल आने की संख्या घट रही है. लेकिन, लोगों की परेशानी बढ़ी हुई है. उन्हें रास्ता नहीं दिख रहा. आत्महत्या दो प्रकार के मनोभाव में होतेे हैं. एक तो लड़ाई-झगड़ा कर तुरंत आत्महत्या कर लेना. दूसरा कई दिनों की मानसिक द्वंद के बाद ऐसा कदम उठाना.
अभी दोनों तरह के मामले आ रहे हैं. लॉकडाउन या कोरोना के कारण पारिवारिक परेशानी व तनाव बढ़ा हुआ है. जो मानसिक द्वंद के कारण आत्महत्या कर रहे हैं, वैसे लोगों को सलाह नहीं, सपोर्ट की जरूरत होती है. आज भी लोग सलाह ज्यादा देते हैं, सपोर्ट नहीं करते. यह स्थिति परिवार में भी होती है.
शहर के एक व्यावसायी के बेटे की आत्महत्या के मामले में सबको पता था का लड़का डिप्रेशन में है. लेकिन या तो उसे सपोर्ट नहीं मिला या क्वालिटी सपोर्ट नहीं मिला. कहीं ना कहीं क्वालिटी कम्युनिकेशन में कमी रह जाती है, इस कारण ऐसी घटना घट जाती है. ऐसा समय भावनात्मक जुड़ाव का समय होता है. ऐसे लोगों को ज्यादा से ज्यादा समय देने की जरूरत होती है. आत्महत्याएं पहले भी होती थी.
आज भी हो रही है. लेकिन, आज क्यों हो रही है, यह कारण महत्वपूर्ण है. समय ठहरा सा लग रहा है. अलग-अलग तरह के संकटों से लोगों का सामना हो रहा है. ऐसे में लड़ने की क्षमता विकसित करना ही कला है. इस कला में जो माहिर हैं वे आगे जा रहे हैं, लेकिन कमजोर लोग जिंदगी की डोर बीच में तोड़ दे रहे हैं.
Post by : Pritish Sahay