रांची़ झारखंड हाइकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि किसी व्यक्ति को इस आधार पर हिरासत में नहीं लिया जा सकता कि विधानसभा चुनाव के समुचित संचालन के लिए ऐसा करना आवश्यक है. जस्टिस आनंद सेन व जस्टिस प्रदीप कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि यह आधार बन जाता है, तो यह प्रशासन को चुनाव के समय अधिनियम के तहत किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेने के लिए बेलगाम, अनियंत्रित व्यापक शक्ति देने के समान होगा. यह नागरिकों की स्वतंत्रता के साथ खिलवाड़ करने के अलावा और कुछ नहीं होगा. खंडपीठ ने कहा कि देश के नागरिक की स्वतंत्रता को सर्वोच्च स्थान पर रखा जाना चाहिए. राज्य के किसी भी अधिकारी की इच्छा पर इसे सीमित नहीं किया जा सकता है. न केवल उक्त स्वतंत्रता को सीमित करने के लिए एक अच्छा कारण होना चाहिए, बल्कि वह कारण काफी मजबूत होना चाहिए और सबूत त्रुटिहीन होने चाहिए. राज्य में चुनाव प्रक्रिया पहले ही समाप्त हो चुकी है. निष्पक्ष व उचित चुनाव कराने के बहाने भी नागरिक की स्वतंत्रता को सीमित नहीं किया जा सकता है. खंडपीठ ने यह भी कहा कि केवल स्टेशन डायरी प्रविष्टि दर्ज करना और कुछ कृत्यों का आरोप लगाना किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने का आधार नहीं हो सकता है. यह आश्चर्यजनक है कि यदि स्टेशन डायरी प्रविष्टियों में दर्ज कृत्य आपराधिक कृत्य हैं और प्रकृति में संज्ञेय हैं, तो राज्य सरकार ने कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट क्यों नहीं दर्ज की है. कानून में प्रावधान है कि यदि संज्ञेय अपराध किया जाता है और किसी अधिकारी के संज्ञान में लाया जाता है, तो एफआइआर दर्ज की जानी चाहिए. खंडपीठ ने याचिका को स्वीकार करते हुए आदेश को निरस्त कर दिया. इससे पूर्व सुनवाई के दाैरान प्रार्थी की ओर से बताया गया कि वह न तो आदतन अपराधी है और न ही कोई असामाजिक तत्व है, जिस कारण उसे हिरासत में रखा जाना चाहिए. वह समाज के लिए कोई खतरा नहीं है. जिले के अधिकारियों ने उसे परेशान करने के लिए कानून व व्यवस्था की समस्या को सार्वजनिक व्यवस्था की समस्या में बदलने की कोशिश की है. वहीं राज्य सरकार की ओर से आरोपित आदेश को उचित ठहराते हुए तर्क दिया गया कि प्रार्थी के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं और उन आपराधिक मामलों व स्टेशन डायरी प्रविष्टियों (सन्हा) के कारण उसे हिरासत में लेना आवश्यक था. कई आपराधिक मामलों में वह शामिल है और इलाके की आम जनता व पूरे समाज के लिए खतरा है. राज्य में शांतिपूर्ण विधानसभा चुनाव कराने और क्षेत्र में अपराध दर को नियंत्रित करने के लिए प्रार्थी को हिरासत में रखना जरूरी था. क्या है मामला : प्रार्थी गणेश सिंह उर्फ निशांत सिंह ने याचिका दायर की थी. उनके खिलाफ पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त ने सितंबर 2024 में आदेश पारित किया था. इसमें झारखंड अपराध नियंत्रण अधिनियम-2002 की धारा 12(1) व 12(2) के तहत उसे हिरासत में रखने की बात कही गयी थी. प्रार्थी ने राज्य सरकार के अतिरिक्त सचिव के आदेश को भी चुनौती दी थी, जिसमें उसकी हिरासत की पुष्टि की गयी. साथ ही चार दिसंबर 2024 से तीन मार्च 2025 तक हिरासत को बढ़ाने के आदेश को भी चुनौती दी गयी थी.
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