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अनुदान से चल रही योजनाओं में किसानों की भागीदारी नहीं

राज्य सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए कई योजनाएं चलाती है. पिछल पांच साल के दौरान 50 से 75 प्रतिशत अनुदान के सहारे चल रही इन योजनाओं में किसानों की भागीदारी या उन्हें लाभ मिलने का कोई सबूत ऑडिट टीम को नहीं मिला

रांची : राज्य सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए कई योजनाएं चलाती है. पिछल पांच साल के दौरान 50 से 75 प्रतिशत अनुदान के सहारे चल रही इन योजनाओं में किसानों की भागीदारी या उन्हें लाभ मिलने का कोई सबूत ऑडिट टीम को नहीं मिला. लेकिन जांच में बिना दस्तखत के किसानों के साथ एकरारनामा किये जाने के मामले पकड़ में आये.

सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए फूल, हाइब्रिड सब्जी, कीट रहित सब्जी आदि की खेती की योजनाएं चलाती है. फूलों की खेती के लिए ट्यूबलर शेडनेट, सब्जी की खेती के लिए पॉलीहाउस आदि के निर्माण का प्रावधान है. किसान को ट्यूबलर शेडनेट की योजना में 50 प्रतिशत और पॉली हाउस के निर्माण में 75 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है.

खेती के लिए बनायी जानेवाली इन संरचनाओं की कुल लागत की शेष राशि किसानों को अपनी भागीदारी के रूप में देना पड़ती है. ऑडिट टीम ने रांची और खूंटी जिले में इन योजनाओं के क्रियान्वयन से जुड़े पांच साल के दस्तावेज की जांच की. इसमें पिछले पांच साल के दौरान रांची और खूंटी में बेहतर खेती के लिए 540 किसानों को शेडनेट,पॉली हाउस और ट्यूबलर शेडनेट की योजना का लाभ दिया गया.

  • रांची और खूंटी जिले में पांच साल के दस्तावेज की जांच की ऑडिट टीम ने

  • ट्यूबलर शेडनेट में 50% और पॉली हाउस में 75% अनुदान मिलता है किसान को

लाभुक की राशि के बगैर अनुदान पर करोड़ों खर्च : रिपोर्ट के अनुसार वित्तीय वर्ष 2014-15 से 2019-20 तक की अवधि में रांची जिले के 372 किसानों को 50 से 75 प्रतिशत तक के अनुदान से चलनेवाली इस योजना का लाभ दिया गया. खूंटी में 168 किसानों को इस योजना का लाभ दिया गया. लाभुक किसानों के खेतों में इन संरचनाओं के निर्माण के लिए सरकार ने अनुदान के रूप में 12.75 करोड़ रुपये खर्च किये हैं.

भुगतान संरचना बनानेवाली शशांक एग्रोटेक नामक संस्था को किया गया. हालांकि सरकारी हिसाब-किताब में कहीं भी इन योजनाओं पर किसानों द्वारा अपने हिस्से की राशि खर्च किये जाने का ब्योरा नहीं मिला.

योजना लागू पर किसानों को लाभ नहीं मिला : इन योजनाओं से किसानों को होनेवाले फायदे की कोई कहानी भी सरकारी दस्तावेज में नहीं मिले. किसानों की भागीदारी के बिना ही संरचनाओं को पूरा करने के दावे पर सवाल उठाने के बाद जिला उद्यान पदाधिकारी ने नमूना जांच में मिली गड़बड़ी की जानकारी वरीय अधिकारियों को देने की बात कही.

अनुदान के आधार पर चलनेवाली इन योजनाओं का लाभ लेने के लिए कितने किसानों ने आवेदन दिया और इनका चयन किस आधार पर किया गया. इस बात का उल्लेख भी नमूना जांच के दौरान नहीं मिला. सरकारी दस्तावेज में सिर्फ लक्ष्य के अनुरूप किसानों को योजना का लाभ दिये जाने का उल्लेख किया गया.

किसानों के दस्तखत के बिना एकरारनामा : नमूना जांच के दौरान खूंटी जिले में बिना दस्तखत के ही एकरारनामा तैयार करने का मामला उजागर हुआ. जिला उद्यान पदाधिकारी के कार्यालय के दस्तावेज में छोटी नर्सरी स्थापित करने के लिए खूंटी के किसान सुकरा मुंडा को चुने जाने का उल्लेख है. 50 प्रतिशत अनुदान पर चलनेवाली इस योजना की कुल लागत 15 लाख रुपये है. इसमें किसान को 7.50 लाख रुपये खर्च करना था.

अनुदान के तौर पर सरकार की ओर से 7.50 लाख मिलते. इसके लिए सुकरा मुंडा के साथ एकरारनामा किया गया.लेकिन इस एकरारनामे पर ना तो किसान का दस्तखत है ना ही मुहर और तारीख. इस किसान की जमीन पर नर्सरी निर्माण का काम किसे दिया गया यह स्पष्ट नहीं है. लेकिन नर्सरी निर्माण के लिए 5.25 लाख रुपये का भुगतान किया गया.

Post by : Pritish Sahay

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