No Smoking Day 2021 : धूम्रपान से हर साल मरते हैं 9 लाख से ज्यादा लोग, झारखंड की भी स्थिति चिंताजनक, जानें क्या असर पड़ता है इसका हमारे शरीर पर
हर साल मार्च माह के दूसरे बुधवार को नो स्मोकिंग डे मनाया जाता है. वर्ष 1984 में इस दिवस को मनाने की शुरुआत हुई. इस दिन को मनाने का उद्देश्य यह है कि लोगों को स्मोकिंग छोड़ने के प्रेरित करना. यानी लोग सिगरेट जैसी खतरनाक चीज को अपनी जिंदगी से दूर करें और स्वस्थ जीवन जीयें.
Jharkhand News, no smoking day march 2021, no smoking day 2021 date रांची : धूम्रपान शरीर के लिए खतरनाक है, क्योंकि यह शरीर को आंतरिक रूप से खोखला बना देता है. शरीर के महत्वपूर्ण अंगों फेफड़े, हार्ट, कोशिकाओं को प्रभावित करता है. कई जानलेवा बीमारी जैसे- कैंसर, हार्ट फेल्योर, फेफड़ा संक्रमण को जन्म देता है. एंजाइटी के अलावा मानसिक बीमारी की चपेट में लोग आ जाते हैं. यानी धूम्रपान करनेवालों को तो नुकसान होता ही है, उनके आसपास रहनेवाले (पैसिव स्मोकिंग) को भी सिगरेट का धुआं बीमार बना देता है. ‘नो स्मोकिंग डे’ पर पढ़िये किस तरह धूम्रपान पैसिव स्मोकिंगवालों के लिए भी खतरनाक है.
क्यों मनाया जाता है नो स्मोकिंग डे
हर साल मार्च माह के दूसरे बुधवार को नो स्मोकिंग डे मनाया जाता है. वर्ष 1984 में इस दिवस को मनाने की शुरुआत हुई. इस दिन को मनाने का उद्देश्य यह है कि लोगों को स्मोकिंग छोड़ने के प्रेरित करना. यानी लोग सिगरेट जैसी खतरनाक चीज को अपनी जिंदगी से दूर करें और स्वस्थ जीवन जीयें.
1 सिगरेट कम करता है जिंदगी के 11 मिनट
कुछ लोग यह कह कर सिगरेट पीते हैं कि उन्हें इससे फ्रेश महसूस होता है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि एक सिगरेट पीने से जिंदगी के 11 मिनट कम हो जाते हैं. इसके अलावा एक सिगरेट में चार हजार ऐसे केमिकल्स होते हैं, जिससे कैंसर फैलता है. दुनिया में हर छह सेकेंड में एक मौत तंबाकू सेवन के कारण होती है. तंबाकू में कई केमिकल होते हैं, जिनमें निकोटिन प्रमुख है. निकोटिन हमारे नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है.
अब भी चेत जायें
70 लाख से ज्यादा लोग दुनियाभर में हर साल तंबाकू व अन्य धूम्रपान उत्पादों के कारण कैंसर व अन्य बीमारियों का शिकार होकर दम तोड़ देते हैं.
9,50,000
से ज्यादा लोग हर साल भारत में धूम्रपान से होने वाली बीमारियों से मरते हैं. वहीं 2,00,000 से ज्यादा लोग तंबाकू चबाने या इसके अलग-अलग रूपों में सेवन से मरते हैं.
धूम्रपान और तंबाकू के प्रयोग से झारखंड में मुंह व फेफड़ा का कैंसर ज्यादा
झारखंड में तंबाकू व धूम्रपान करनेवालों की संख्या ज्यादा होने से मुंह व फेफड़ा का कैंसर होने की संभावना सबसे ज्यादा है. राज्य के कैंसर अस्पतालों से मिली जानकारी के अनुसार, झारखंड के लोगों को लंग कैंसर ज्यादा होता है, क्योंकि वे सिगरेट के साथ-साथ बीड़ी का भी उपयोग करते हैं.
राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स के कैंसर इंस्टीट्यूट की मानें, तो उनके यहां कैंसर ओपीडी में प्रतिदिन पांच से छह मरीज लंग कैंसर का इलाज कराने आते हैं. कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ रोहित झा ने बताया कि मुंह व लंग कैंसर के अधिकतर मरीज अंतिम स्टेज में अस्पताल पहुंचते हैं, इस कारण उनके बचने की संभावना नहीं के बराबर होती है. अगर मरीज समय पर अस्पताल पहुंचते हैं, तो उनको बचाया जा सकता है.
ये हैं नुकसान
एक शोध के अनुसार, धूम्रपान से पुरुष व महिलाओं के प्रजनन क्षमता में कमी आती है. जहां पुरुष के शुक्राणुओं और कोशिकाओं की संख्या को नुकसान पहुंचता है, वहीं महिलाओं द्वारा धूम्रपान करने से गर्भस्राव या जन्म देनेवाले बच्चे में स्वास्थ्य समस्याएं होने की अधिक संभावना होती है.
नियमित धूम्रपान करने से रुमेटीइड गठिया का खतरा बढ़ जाता है. गैर धूम्रपान करनेवालों के मुकाबले धूम्रपान करने वालों के लिए जोखिम लगभग दोगुना है. इसके अतिरिक्त ऑस्टियोपोरोसिस और हड्डी के फ्रैक्चर के लिए धूम्रपान एक प्रमुख कारण है.
लगातार सिगरेट पीने से फेफड़े के कैंसर की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है. गैर-धूम्रपान करनेवालों पर भी फेफड़ों के कैंसर के विकास का जोखिम है. धूम्रपान करनेवाली महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले फेफड़े के कैंसर का खतरा अधिक है.
धूम्रपान आपकी त्वचा पर समय से पहले झुर्रियां, त्वचा की सूजन, फाइन लाइन और एज स्पॉट्स को बढ़ाने में योगदान देता है. सिगरेट में निकोटिन रक्त वाहिकाओं को कम करने का कारण बनता है. जिसका अर्थ है त्वचा की बाहरी परतों में रक्त प्रवाह कम होना. इससे त्वचा को पर्याप्त ऑक्सीजन और महत्वपूर्ण पोषक तत्व नहीं मिलते हैं.
सिगरेट में निकोटीन और अन्य जहरीले रसायन हृदय रोग और स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा देते हैं. इसकी वजह से स्ट्रोक पैरालिसिस, आंशिक अंधापन, बोलने की शक्ति और यहां तक कि मौत का कारण भी हो सकती है. धूम्रपान न करनेवालों की तुलना में धूम्रपान करनेवालों में स्ट्रोक होने की संभावना तीन गुना अधिक होती है.
धूम्रपान से मोतियाबिंद, ग्लूकोमा, मधुमेह के रेटिनोपैथी और ड्राई आई सिंड्रोम का खतरा बढ़ जाता है. सिगरेट के धुएं में आर्सेनिक, फार्मलाडिहाइड और अमोनिया शामिल हैं. ये रसायन खून में शामिल होकर आंखों के नाजुक ऊतकों तक पहुंच जाते हैं, जिससे रेटिना कोशिकाओं की संरचना को नुकसान होता है.
सिगरेट के धुएं में मौजूद निकोटिन, टार, नाइट्रिक ऑक्साइड, हाइड्रोजन साइनाइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और सुगंधित अमाइन, एनोक्सिया, हाइपोक्सिया, व्हेसोकोनस्ट्रक्शन आदि घाव के उपचार को रोकते हैं. धूम्रपान करनेवाले में मैक्रोफेज की कमी आती है, जो उपचार में देरी का कारण बनता है.
धूम्रपान करनेवाले पुरुष और महिलाओं में डिमेंशिया या अल्जाइमर जैसे रोग होने की संभावना अधिक होती है. सिगरेट में मौजूद निकोटिन मस्तिष्क के लिए हानिकारक है और डिमेंशिया या अल्जाइमर रोग की शुरुआत को बढ़ाता है.
बच्चों की खराब होती हैं रक्त धमनियां
घर के बड़े सदस्यों के धूम्रपान करने का सीधा असर परिवार के अन्य सदस्यों पर पड़ता है. घर में धूम्रपान करनेवाले व्यक्ति के आसपास रहनेवाले बच्चे की रक्त धमनियाें को नुकसान पहुंचता है. कम उम्र में ही बच्चे अस्थमा के शिकार हो जाते हैं. इसके बाद उनके सीओपीडी से पीड़ित हाेने की संभावना बढ़ जाती है. वहीं, बच्चों का बौद्धिक व शारीरिक विकास भी प्रभावित होता है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
धूम्रपान तो खतरनाक है ही. लेकिन जो धूम्रपान करनेवालों के आसपास जो रहते हैं, उनको भी बहुत खतरा होता है. फेफड़ा प्रभावित होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है. इस कारण अस्थमा व सीओपीडी की संभावना भी बढ़ जाती है. ऐसे में धूम्रपान से स्वयं भी बचें और दूसरों को भी सुरक्षित रखें. धूम्रपान छाेड़ें और स्वस्थ जीवन जीयें.
– डॉ निशित कुमार, फेफड़ा विशेषज्ञ
पूर्वी भारत में तंबाकू का सेवन ज्यादा होता है, इसलिए यहां के लोगों में फेफड़ा व मुंह का कैंसर ज्यादा पाया जाता है. झारखंड के लाेगों में धूम्रपान से हाेनेवाली कई गंभीर बीमारियां भी पायी जाती हैं. अस्थमा व सीओपीडी के बाद कैंसर सबसे ज्यादा यहां देखने को मिल रहा है. युवा ज्यादा इसकी चपेट में आ रहे हैं, वे कम उम्र में ही कैंसर के शिकार बन रहे हैं.
– डॉ रोहित झा, कैंसर सर्जन
Posted By : Sameer Oraon