रांची: महाराष्ट्र और तमिलनाडु में जिस तरह पिछड़ों के आरक्षण को बढ़ाया गया है, उसके आधार पर राज्य सरकार अन्य राज्यों का अध्ययन कर विधिसम्मत निर्णय लेगी. यह बात मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोमवार को सदन में कही. उन्होंने आजसू विधायक लंबोदर महतो के ओबीसी आरक्षण पर किये गये सवाल के जवाब में कहा कि ऐसा लगता है कि झारखंड के एससी-एसटी को यूक्रेन भेजना पड़ेगा.
विपक्ष ने राजनीति करने को लेकर भूमिका तैयार कर ली है. विपक्ष पहले यह बताये कि पिछड़ों के आरक्षण को पहले 27 प्रतिशत से घटाकर 14 प्रतिशत किसने किया. पूर्व में सदन नेता ने भी कहा है कि पिछड़ों का आरक्षण नहीं बढ़ेगा. हमेशा सदन में तमिलनाडु और महाराष्ट्र का उदाहरण दिया जाता है.
विधायक लंबोदर महतो ने मुख्यमंत्री प्रश्नकाल में राज्य के पिछड़ों को महाराष्ट्र और तमिलनाडु की तर्ज पर 36 से 50 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग की. उन्होंने कहा कि राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने भी अनुशंसा की है कि महाराष्ट्र और तमिलनाडु की तर्ज पर झारखंड में भी पिछड़ों को 36 से 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जाये.
भाषा के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कि जेएसएससी में इंटर और मैट्रिक स्तर तक की नियुक्ति में हिंदी पहले से ही है. इसे ऑप्शनल में रखने का कोई औचित्य नहीं है. उन्होंने कहा कि पहले से ही हिंदी और अंग्रेजी के लिए जेएसएससी की परीक्षा में 120 अंक निर्धारित हैं. इसमें पास होना अनिवार्य है. अभी तो स्थानीय भाषा को जोड़ने पर काम हो रहा है. यह बात मुख्यमंत्री ने विधायक शिवपूजन मेहता की ओर से उठाये गये सवाल के जवाब में कही. विधायक ने पूछा था कि राज्य के हिंदी भाषी छात्र जानना चाहते हैं कि क्या सरकार उनके लिए कुछ सोच रही है?
वर्ष 1990 में मंडल आयोग की रिपोर्ट के आधार पर पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरी में 27% आरक्षण लागू किया गया था. झारखंड अलग होने के बाद पिछड़े वर्ग को मात्र 14% आरक्षण दिया जा रहा है. पिछले दिनों राज्य पिछड़ा आयोग ने सरकार से झारखंड में पिछड़ी जातियों को आरक्षण 14 से बढ़ाकर 36 से 50% के बीच करने की अनुशंसा की है. आयोग के अनुसार, झारखंड में ओबीसी की कुल आबादी में लगभग 55% पिछड़े हैं. तमिलनाडु सरकार द्वारा पिछड़ी जातियों को 50% आरक्षण दिया जा रहा है. झारखंड में पिछड़ों का आरक्षण 14 से 27% बढ़ाने की मांग को लेकर लगातार आंदोलन हो रहा है.
Posted : Sameer Oraon