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जिसे झारखंड ने ठुकराया, उसे महाराष्ट्र ने बनाया हेड कोच

2017 से पहले हजारीबाग के एक सेंटर में निधि देती थी प्रशिक्षण

2017 से पहले हजारीबाग के एक सेंटर में निधि देती थी प्रशिक्षण

इसके बाद चली गयी मुंबई, अब खुद का बनाया क्लबदिवाकर सिंह, रांची

कहते हैं, जिसके पास प्रतिभा है, उसे कद्रदान मिल ही जाते हैं. कुछ ऐसा ही कहानी है झारखंड के हजारीबाग की फुटबॉल कोच निधि की. 2017 तक ये हजारीबाग में सरकार द्वारा संचालित आवासीय फुटबॉल सेंटर में खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देती थीं. अष्टम उरांव से लेकर कई अंतरराष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ियों को निधि ने तैयार किया, लेकिन कुछ कारणों से निधि को परेशान किया जाने लगा. इसके बाद 2017 में वह मुंबई चली गयी. सात साल बाद निधि ने मुंबई में अपनी ‘माइ फुटबॉल एकेडमी’ शुरू की. इसके साथ ही महाराष्ट्र की बालिका फुटबॉल टीम की हेड कोच बन कर टीम को विजेता भी बनाया. अब निधि से प्रशिक्षण प्राप्त एक खिलाड़ी ज्योति चौहान क्रोएशिया में खेल रही है.

दूसरे राज्य के बच्चों को बना रही हैं चैंपियन

यहां से मुंबई जाने के बाद निधि ने कैंकरी एफसी में कोच का काम शुरू किया. धीरे-धीरे वहां की लड़कियों को प्रशिक्षण देकर बेहतर टीम तैयार की. कुछ वर्षों में ही निधि की कोचिंग रंग लायी और यह फुटबॉल क्लब तीन बार राष्ट्रीय चैंपियन बना. वर्तमान में निधि इस क्लब की चीफ कोच के रूप में काम कर रही है. निधि का कहना है कि मैंने झारखंड की कई खिलाड़ियों को तैयार किया, लेकिन इसकी कद्र किसी ने नहीं की. सबने मेरे काम में कमी निकाली.

झारखंड की खिलाड़ियों की करती है मदद

निधि ने बताया कि झारखंड के फुटबॉल खिलाड़ी मुंबई आते हैं और मुझसे प्रशिक्षण लेते हैं. मैं अपने राज्य के खिलाड़ियों का स्वागत करती हूं और उन्हें बेहतर खिलाड़ी बनाने का प्रयास करती हूं. झारखंड में फुटबॉल पर किसी का ध्यान नहीं है, जिससे वहां के फुटबॉलरों का नुकसान हो रहा है.

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