My Mati: कविताओं में उरांव समाज के जीवन-दर्शन की झलक
किशोर किशोरियों के उलझन, प्यार मोहब्बत की बातें बीच-बीच में दिखेंगी. कुंड़ुख दुनिया की आंचलिकता को दिखाती हुई कविता संग्रह में निम्नलिखित कविताएं हैं -- करम चांदो, धानो नानी के गीत, नाकदौना चिड़िया, जंगल दईत, गीतारु सांझो, खद्दी चांद, खेखेल
पुस्तक समीक्षा
गणेश मांझी, विचारक
कविता संग्रह : फिर उगना
कवयित्री : पार्वती तिर्की
प्रकाशक : राधाकृष्णन
पेपरबैक्स
प्रथम संस्करण: 2023
‘फिर उगना’ पार्वती तिर्की द्वारा लिखित एक कविता संग्रह है, जो राधाकृष्ण पेपरबैक्स से छपी है. कविता संग्रह में आपको सामान्यतः आदिवासी समाज और मुख्यतः उरांव समाज का जीवन दर्शन की झलक मिलती है. कुल 127 कविताओं में उरांव समाज का रीति-रिवाज, परंपरा, शासन व्यवस्था, अर्थव्यवस्था, गीत-संगीत इत्यादि मिलेगी. खास बातों की एक बात आप कविता पढ़ते हुए कल्पना में अपने घर के चारों ओर की छटा के साथ पूरा आसमान नाप लेंगे, चांद-तारे की सैर कर लेंगे.
किशोर किशोरियों के उलझन, प्यार मोहब्बत की बातें बीच-बीच में दिखेंगी. कुंड़ुख दुनिया की आंचलिकता को दिखाती हुई कविता संग्रह में निम्नलिखित कविताएं हैं — करम चांदो, धानो नानी के गीत, नाकदौना चिड़िया, जंगल दईत, गीतारु सांझो, खद्दी चांद, खेखेल, माखा, तोकना, तुंबा, जटंगी, घनेपन का मौसम, लकड़ा, सुकरा-सुकराइन, पृथ्वी की दिशा में, सबने उनके लिए जगह बनायी, चाला टोंका, बारिश, तिरियो, मगहा, हमारे गांव की स्त्री, निरंतर, पंड़की, बंडा जेठ की बारिश,
भागजोगनी, ख़ेख़ेल बेंजा, बात करना, गोदना, धनुक बांध, ढिंचुआ पक्षी, मांझो, धनो और चियारी, भूत, बसाहा बरंद, गीत, धुमकुड़िया-एक, धुमकुड़िया-दो, सोसो बंगला, रिची पीड़ी, भुला भूत, तेलया नदी से संवाद, मंगरु के गीत, स्त्रियों का शिकार पर्व, सहिया, उनके विद्रोह की भाषा, शोक, मंदैरकार बाबा और गीतारु आयो, टईयां, रसुआ घर, सखुआ जंगल, खोरन, रोपा के बाद, वे पुरुष, गीत गाते हुए लोग, पलायन, सभ्यता, तथा हुलो परिया की कहानी. ये तमाम कविताएं बरबस आपको एक आदिवासी आंचल में ले जायेंगी, उनके सदियों का ऐतिहासिक जीवन का दर्शन करा देंगी.
इन सबके अलावा कवयित्री ने कुंड़ुख में विभिन्न मौसमों के विभिन्न रागों में गाये जाने वाले गीतों को कविता के रूप में पिरोया है जो कविताओं की दुनिया में एक नये अध्याय के रूप में समझा जाना चाहिए, जिसकी पृष्ठभूमि आदिवासी और आदिवासियत है. कुंड़ुख में एक कहावत है – एकना दिम तोकना, कथा दिम डंडी — अर्थात चलना ही नृत्य और बोलना ही गीत है.
कवयित्री इन्हें ‘डंडी दिम कथा’ कह रही हैं, मतलब गीतों में किस प्रकार बातचीत की जाती है. गीतों में पिरोयी गयी कविता हैं — सुनो तो, समय बीत रहा, कोई नहीं देखता, कोंपल, तुम्हें कौन बचाएगा, आसरा, चल साथी, कौन देखेगा, तथा चली जाउंगी.
जब तमाम धार्मिक साम्राज्यवादी ताकतें आदिवासियों को शैतान की पूजा करने वाले सिद्ध करने में तुले हैं, वैसे वक्त पर ‘भूत’ नामक कविता में भूत (स्पिरिट) को एक अच्छे स्पिरिट (जीव) की तरह का वर्णन किया, जो आम जनता की समझ की तुलना में कवयित्री की समझ को खास बनाती है और ये तारीफ के काबिल भी है. ये आदिवासी अध्यात्म के अहम हिस्से हैं, जिसे गैर आदिवासी समाज अभी तक नहीं समझ पाया है.
साथ ही जोंख एड़पा और पेलो एड़पा का वर्णन वर्तमान में चल रहे धुमकुड़िया के पुनर्स्थापन को जीवंत करता दिखाई देता है. मुक्का सेंदरा आदिवासी महिलाओं की वीरता की गाथा का सटीक चित्रण है, साथ ही रांची के डोरंडा और मोरहाबादी को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में सजीवता से पेश करना भूत में ले जाता है.
कविता में कुछ खास शब्दों के हिंदी में अनुवादित अर्थों पर हमें आपत्ति है, जैसे पृष्ठ संख्या 12 में अखड़ा का अर्थ दिया गया है — सामूहिक मिलन का केंद्र, वहीं पृष्ठ संख्या 41 में अखड़ा का अर्थ ‘आदिवासियों का सामुदायिक केंद्र’ बताया गया है. जहां तक हमें जानकारी है ‘अखड़ा’ का अर्थ सामुदायिक मनोरंजन केंद्र है, जहां पर नाच-गान और ढोल-मांदर की थाप होती है. ‘अखड़ा’ सामुदायिक सुख-दुःख की साझेदारी, सूचना, साप्ताहिक बैठक का केंद्र, और धुमकुड़िया का अभिन्न अंग रहा है.
इसी प्रकार पृष्ठ संख्या 17 में झईड़ का अर्थ बारिश बताया गया है, लेकिन मेरी समझ से इसका अर्थ होना चाहिए — बारिश की झड़ी. आगे पृष्ठ संख्या में ‘तिरियो’ का अर्थ ‘आदिवासियों की बांसुरी’ बतायी गयी है, मुझे लगता है इसे एक प्रकार की बांसुरी, जिसे आदिवासी इस्तेमाल करते हैं, कहना बेहतर होगा, क्योंकि साधारण बांसुरी का इस्तेमाल भी आदिवासी करते ही रहे हैं.
कुल मिलाकर ‘फिर उगना’ आदिवासी जीवन, खासकर उरांव समुदाय की यथार्थता, जीवटता, भूत, वर्तमान में गोते लगाते हुए गुजरता है और हमें विश्वास है कि आप भी उरांव आदिवासी के जीवन-दर्शन के जंगलों, पहाड़ों, झरनों, तारों, अखड़ाओं व धुमकुड़िया की सैर करेंगे.