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court news : बगोदर के तत्कालीन बीइइओ को सेवा से बर्खास्त करने का आदेश निरस्त

ब्याज सहित सभी सेवानिवृत्ति लाभ छह सप्ताह के भीतर देने का आदेश

वरीय संवाददाता, रांची. झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस डॉ एसएन पाठक की अदालत ने सेवा से बर्खास्त करने व दंड आदेश को चुनाैती देनेवाली याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई के दाैरान अदालत ने प्रार्थी व राज्य सरकार का पक्ष सुना. इसके बाद अदालत ने 21 फरवरी 2019 की जांच रिपोर्ट, छह दिसंबर 2019 का दंड आदेश तथा 22 नवंबर 2021 के अपीलीय आदेशों को निरस्त कर दिया. अदालत ने कहा कि प्रार्थी पेंशन लाभ प्राप्त करने का हकदार है. इसलिए अदालत ने राज्य सरकार को इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तिथि से छह सप्ताह की अवधि के भीतर प्रार्थी को ब्याज के साथ संपूर्ण पेंशन लाभ प्रदान करने का आदेश दिया. हालांकि अदालत ने अपने आदेश में यह स्पष्ट किया कि प्रार्थी सेवा समाप्ति की तिथि से सेवानिवृत्ति की तिथि तक बकाया वेतन पाने का हकदार नहीं है, लेकिन उक्त अवधि की गणना पेंशन लाभ के उद्देश्य से की जायेगी. अदालत ने उक्त आदेश देते हुए प्रार्थी जगदीश पासवान की दोनों याचिकाओं को स्वीकार कर लिया. इससे पूर्व प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता मनोज टंडन व अधिवक्ता नेहा भारद्वाज ने अदालत को बताया कि विभागीय कार्यवाही की शुरुआत ही कानून की नजर में गलत थी, क्योंकि यह सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण व अपील) नियम-1930 के नियम 49 व 55 के तहत की गयी थी, जो झारखंड सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण व अपील) नियम-2016 के अस्तित्व में आने से निरस्त हो गयी थी. जांच अधिकारी ने आरोप का समर्थन करने के लिए एक भी गवाह की जांच किये बिना ही प्रार्थी के खिलाफ साबित किये गये आरोपों को प्रस्तुत किया. उन्होंने कहा कि केवल दस्तावेज प्रस्तुत करना प्रार्थी के खिलाफ आरोप साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है, जब तक की उसकी सामग्री किसी गवाह द्वारा साबित न हो जाये. उन्होंने सभी आदेशों को निरस्त करने का आग्रह किया. क्या है मामला : प्रार्थी जगदीश पासवान की नियुक्ति छह अप्रैल 1991 को हुई थी. उनके विरुद्ध 20 जून 2016 को प्रपत्र-क में आरोप-पत्र तैयार किया गया, जिसमें अन्य आरोपों के साथ-साथ यह आरोप लगाया गया कि जब वह बगोदर के प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी (बीइइओ) के पद पर थे, तब उन्होंने 4,36,000 रुपये की राशि निकासी की थी, जिसे उन्होंने विद्यालयों में वितरित नहीं किया तथा अपने उत्तराधिकारी को कार्यभार सौंपते समय उन्होंने राशि का उपरोक्त विवरण नहीं सौंपा. सभी आरोपों की जांच की गयी और जांच अधिकारी ने आरोपों को सिद्ध करते हुए 21 फरवरी 2019 को रिपोर्ट पेश किया. दूसरा कारण बताओ नोटिस दिया गया, जिसका जवाब प्रार्थी ने दिया. इसके बाद छह दिसंबर 2019 को सेवा समाप्ति का आदेश पारित किया गया. इसके खिलाफ उन्होंने विभागीय अपील दायर की, जो खारिज हो गयी. हाइकोर्ट में रिट याचिका दायर कर आदेश को चुनाैती दी. इस बीच प्रार्थी 31 अक्तूबर 2022 को सेवानिवृत्त हो गये.

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