यूसिल में ओवरटाइम और यात्रा भत्ता घोटाला, सीबीआइ की विशेष अदालत में चार्जशीट दाखिल

रांची : सीबीआइ जांच के दौरान यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (यूसिल) में टीए (यात्रा भत्ता) और ओवरटाइम घोटाले की पुष्टि हुई है. सीबीआइ(एसीबी) रांची ने जांच पूरी करने के बाद विशेष न्यायाधीश की अदालत में आरोप पत्र दायर कर दिया है. इसमें अकाउंटस मैनेजर संजीव कुमार शर्मा, क्लर्क गोपीनाथ दास और चपरासी नृपेंद्र कुमार सिंह को आरोपी बनाया गया है. इन तीनों ने मिल कर कुल 56 लाख रुपये की गड़बड़ी की है. फर्जी टीए के रूप में मिले पैसों में से मैनेजर और क्लर्क ने हिस्सा लिया है.

By Prabhat Khabar News Desk | December 4, 2020 9:26 AM
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रांची : सीबीआइ जांच के दौरान यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (यूसिल) में टीए (यात्रा भत्ता) और ओवरटाइम घोटाले की पुष्टि हुई है. सीबीआइ(एसीबी) रांची ने जांच पूरी करने के बाद विशेष न्यायाधीश की अदालत में आरोप पत्र दायर कर दिया है. इसमें अकाउंटस मैनेजर संजीव कुमार शर्मा, क्लर्क गोपीनाथ दास और चपरासी नृपेंद्र कुमार सिंह को आरोपी बनाया गया है. इन तीनों ने मिल कर कुल 56 लाख रुपये की गड़बड़ी की है. फर्जी टीए के रूप में मिले पैसों में से मैनेजर और क्लर्क ने हिस्सा लिया है.

आरोप पत्र में कहा गया है कि यूसिल, जादूगोड़ा के इन तीनों कर्मचारियों ने सुनियोजित साजिश के तहत घोटाले को अंजाम दिया है. चपरासी नृपेंद्र कुमार सिंह ने कुल 505 फर्जी टीए बिल बनाये. फर्जी टीए बिल को जांच के लिए क्लर्क के पास भेजा जाता था. क्लर्क इसकी जांच करने के बाद अकाउंटस मैनेजर के पास भेजता था. बिल पास करने के बाद राशि चपरासी के खाते में ट्रांसफर कर दी जाती थी. फर्जी बिल के जरिये चपरासी के खाते में वर्ष 2014 से 2019 तक की अवधि में 22.54 लाख रुपये ट्रांसफर किए गए थे.

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बायोमेट्रिक्स अटेंडेंस की जांच में यह पाया गया कि चपरासी एक ही समय में ड्यूटी पर भी रहता था और उसी समय का टीए बिल भी बनाता था. फर्जी तरीके से टीए बिल पाने के लिए रांची टैक्सी स्टैंड और स्टेशन रोड स्थित होटल के फर्जी बिल का सहारा लिया जाता था. जांच में सभी होटलों के बिलों पर एक जैसी लिखावट पायी गयी. फर्जी ओवरटाइम की जांच के दौरान पाया गया है कि क्लर्क गोपी नाथ दास ऑनलाइन फाइनांशियल सिस्टम के सहारे कामगारों के पे-रोल में आवर टाइम का ब्योरा भरता था. इसके बाद अपने ही आइडी से इसे पास करता था.

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जांच में पाया गया कि इस तरीके का इस्तेमाल करते हुए उसने कुल 19 कामगारों के नाम पर फर्जी ओवरटाइम दिखा कर पैसा कामगारों के खाते में ट्रांसफर किया. हालांकि, किसी कामगार द्वारा ओवरटाइम का दावा करने का कोई सबूत नहीं मिला. वर्ष 2014 से 2019 की अवधि तक 19 कर्मचारियों को फर्जी ओवरटाइम के रूप में 27.32 लाख रुपये का भुगतान किया गया. इस मामले के पकड़ में आने के बाद प्रबंधन ने ओवरटाइम में मिली राशि की वसूली शुरू की. प्रबंधन ने ओवरटाइम के रूम में किये गये भुगतान में से 24.58 लाख रुपये की वसूली कर ली है.

मामले की जांच में पाया गया कि चपरासी ने फर्जी टीए के रूप में मिली राशि में से अकाउंट्स मैनेजर संजीव के खाते में 77 हजार और क्लर्क गोपी के खाते में दो लाख रुपये ट्रांसफर किया है. यूसिल में टीए और ओवरटाइम के नाम पर जालसाजी करने के बाद सीबीआइ ने दिसंबर 2019 में इस सिलसिले में प्राथमिकी दर्ज की थी.

Posted By : Guru Swarup Mishra

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