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पलामू में जेल से चुनाव लड़ कर जीतने का रहा है इतिहास

पलामू में जेल में रह कर चुनाव जीतने का भी राजनीतिक इतिहास रहा है. जेल जाने के बाद जनता की सहानुभूति से अपने प्रतिद्वंद्वियों की परेशानी बढ़ा देने का भी गवाह पलामू रहा है.

रांची. पलामू में जेल में रह कर चुनाव जीतने का भी राजनीतिक इतिहास रहा है. जेल जाने के बाद जनता की सहानुभूति से अपने प्रतिद्वंद्वियों की परेशानी बढ़ा देने का भी गवाह पलामू रहा है. इसके कारण राजनीतिक दिग्गजों को भी चुनावी मैदान में पसीना बहाना पड़ा है. 2009 का लोकसभा का चुनाव कामेश्वर बैठा ने जेल में रह कर जीता था. कामेश्वर बैठा नक्सली विचारधारा से मुख्यधारा में लौटे, जेल से ही राजनीति शुरू की और पहली दफा 2007 के लोकसभा उपचुनाव में कामेश्वर बैठा ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ कर अपने प्रदर्शन से लोगों को चौकाया. इस चुनाव में कामेश्वर बैठा को 141875 मत मिले थे. वह दूसरे स्थान पर रहे थे. 2009 में पलामू प्रमंडल के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री भानु प्रताप शाही (वर्तमान में भाजपा विधायक) का साथ तब झामुमो के टिकट से चुनाव लड़ रहे कामेश्वर बैठा को मिला. कहा जाता है गढ़वा के तत्कालीन विधायक गिरिनाथ सिंह से अपना पुराना राजनीतिक हिसाब बराबर करने के साथ-साथ पलामू की राजनीति के नब्ज पर अपनी पकड़ का एहसास पलामू के स्थापित नेताओं को कराने के लिए तब भानु प्रताप शाही ने कामेश्वर बैठा का साथ दिया था.

इस बार फिर कामेश्वर बैठा बसपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. कुछ दिन पहले ही उन्होंने टिकट नहीं मिलने के कारण राजद छोड़ कर बसपा का दामन थाम लिया और बसपा के टिकट पर ही पलामू से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी.

मधु सिंह ने पांकी विधानसभा सीट से दर्ज की थी जीत

2009 लोकसभा के चुनाव में जेल से लड़ रहे कामेश्वर बैठा को जीता कर पलामू की जनता ने चौकाने वाला परिणाम दिया था, हालांकि जेल में रह कर चुनाव लड़ने और जीतने वाले कामेश्वर बैठा पलामू के पहले नेता नहीं है. इसके पहले एकीकृत बिहार के जमाने में 1990 में मधु सिंह (अब स्वर्गीय) जेल में रह कर पांकी विधानसभा का चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी. उस चुनाव में मधु सिंह ने पलामू के दिग्गज नेता पूर्व मंत्री अवधेश सिंह (अब स्वर्गीय ) को लगभग पांच सौ मतों के अंतर से चुनाव हराया था. मधु सिंह दो दफा पांकी विधानसभा सीट से चुनाव जीता था. अलग झारखंड राज्य गठन के बाद बाबूलाल मंराडी व अर्जुन मुंडा दोनों के मंत्रिमंडल में शामिल रहे.

संतु बाबू जेल में मोहर मारो रेल में….

1995 में भी पांकी विधानसभा क्षेत्र में भी ऐसी स्थिति बनी, जब कांग्रेस के स्थापित नेता पूर्व मंत्री संकटेश्वर सिंह उर्फ संतु बाबू (अब स्वर्गीय) को पार्टी ने टिकट नहीं दिया गया था. तब वह पार्टी के फैसले के खिलाफ निर्दलीय विधानसभा का चुनाव लड़े थे. चुनाव प्रचार के दौरान ही किसी पुराने मामले में पुलिस ने संतु सिंह को गिरफ्तार कर लिया था. तब उनका चुनाव चिह्न रेल इंजन छाप था. गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थकों ने यह नारा दिया – संतु बाबू जेल में मोहर मारो रेल में, जनता की सहानुभूति मिली, संकटेश्वर सिंह जेल में ही रह कर चुनाव जीत गये थे.

तब इंदरसिंह नामधारी की बढ़ गयी थी मुश्किलें

2005 के विधानसभा चुनाव में इंदर सिंह नामधारी को चुनाव जीतने के लिए पसीना बहाना पड़ा था. उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी अनिल चौरसिया (अब स्वर्गीय) निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड रहे थे. अनिल चौरसिया 2000 के चुनाव में राजद के प्रत्याशी थे. लेकिन 2005 के विस चुनाव में उनका टिकट काट कर पार्टी ने ज्ञानचंद पांडेय को टिकट दिया, तो चौरसिया ने बगावत कर दी, प्रचार के दौरान पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया. तब अनिल चौरसिया के समर्थक तत्काल सक्रिय हो गये नारा गढा : दो सामंतियों के खेल में गरीब का बेटा जेल में. इसके कारण चुनाव में संघर्ष बढ़ा. नामधारी तब मात्र ढाई हजार वोटों के अंतर से चुनाव जीत पाये थे.

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