झारखंड में मिलेट्स को मिलेगा बढ़ावा, राज्य में 3 प्रकार के मोटे अनाज की होती है उपज, पढ़ें पूरी खबर
झारखंड सरकार मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है. इसके तहत वित्तीय वर्ष 2023-24 में पहली बार बजट में 50 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. राज्य में 16 हजार टन से अधिक मड़ुआ का उत्पादन होता है. वहीं, वर्तमान में तीन प्रकार के मोटे अनाज की उपज होती है.
Jharkhand News: झारखंड सरकार आनेवाले वित्तीय वर्ष में मोटे अनाज (मिलेट्स) को बढ़ावा देगी. इसके लिए योजना तैयार हो रहा है. वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट में इसका प्रावधान किया गया है. पहली बार इस साल के बजट में इस पर 50 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान किया है. बता दें कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट इयर (मोटे अनाज का वर्ष) घोषित किया है. अभी राज्य में मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए अलग से कोई स्कीम नहीं है. राज्य में करीब 16.7 हजार टन (लगभग 0.17 लाख टन) मड़ुआ (रागी) का उत्पादन होता है. भारत सरकार इस साल को मिलेट्स इयर के रूप में मना रही है. इसको बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने भी प्रयास किया है. इसकी पौष्टिकता को देखते हुए मोटे अनाज को आहार का मुख्य हिस्सा बनाने की तैयारी की जा रही है.
झारखंड में तीन प्रकार के मोटे अनाज की होती है उपज
राज्य में मुख्य रूप से तीन प्रकार के मोटे अनाज की उपज होती है. साल 2022 में करीब 19 हजार हेक्टेयर में रागी की खेती हुई थी. जिसके तहत 0.17 लाख टन रागी का उत्पादन हुआ. इसकी उत्पादकता करीब 8.78 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इसके अलावा ज्वार का उत्पादन भी राज्य में होता है. करीब 1563 हेक्टेयर में ज्वार लगाया गया था. करीब 0.12 लाख टन ज्वार का उत्पादन हुआ. इसकी उत्पादकता 8.17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के करीब है. राज्य में करीब 0.34 एकड़ में आसपास में बाजरा की खेती होती है. इसका उत्पादन भी बहुत ही कम है.
राज्य से लेकर प्रखंड स्तर तक होंगे सेमिनार
कृषि विभाग मोटे अनाज की उपयोगिता और संभावना पर राज्य से लेकर प्रखंड स्तर सेमिनार का आयोजन करेगा. भारत सरकार 2023 को मिलेट्स इयर के रूप में मना रहा है. इसको देखते हुए राज्य सरकार ने भी योजना तैयार की है. इसमें मोटे अनाज पर काम करने वाले विशेषज्ञों की राय भी ली जायेगी. पलामू के पूर्व आयुक्त सह पूर्व कृषि निदेशक डॉ जटाशंकर चौधरी कहते हैं कि झारखंड जैसे राज्य के लिए मोटा अनाज बरदान होगा. यहां कई ऐसे एरिया हैं, जहां बारिश बहुत कम होती है. वहां इसकी खेती करायी जा सकती है. पलामू प्रमंडल के साथ-साथ गुमला और सिमडेगा जैसे जिले में इसको विशेष रूप से बढ़ावा दिया जा सकता है. मोटा अनाज बिना पानी के अच्छी तरह उपजाया जा सकता है. भारत सरकार भी इस पर जोर दे रही है. इसका फायदा झारखंड को हो सकता है. झारखंड के किसान इसका उत्पादन कर समृद्ध हो सकते हैं.
केंद्र सरकार ने की है तैयारी विभागों में बनाया टॉस्क फोर्स
अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स (मोटा अनाज) इयर को लेकर भारत सरकार ने कई विभागों का टॉस्क फोर्स बनाया है. कई राज्यों ने इसपर काम भी करना शुरू कर दिया है. देश में पिछले 10 साल से मोटे अनाज की उपज में वृद्धि नहीं हुई है. करीब 186 से 179 लाख टन के आसपास ही रहा. बीते साल करीब 179 लाख टन के आसपास मोटे अनाज की उपज हुई थी. वहीं 10 साल पहले 186 लाख टन के आसपास रही. बीत के वर्षों में कई बार इसका उत्पादन गिरा भी. इसमें करीब 100 लाख टन से अधिक बाजरे का उत्पादन ही होता है. 2021-22 में देश से करीब 24 मिलियन यूएस डॉलर का मोटा अनाज दूसरे देशों को बेचा गया था.
काफी पौष्टिक होता है मोटा अनाज
मोटा अनाज पौष्टिकता के मामले में काफी अच्छा है. पहले मोटा अनाज गरीबों का भोजन होता था. आज इसकी पहुंच फाइव स्टार होटल तक हो गयी है. मोटे अनाज के कई डिस भी बनाये जा रहे हैं. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में मोटे अनाज के कई प्रकार के उत्पाद तैयार किये जा रहे हैं. झारखंड में आज कल मडुआ का पीठा, मोमो, बिसकिट मेला में बिकते नजर आता है. आम लोगों में भी इसकी पौष्टिकता को लेकर जागरूकता बढ़ रही है.
अब मोटे अनाज को बाजार की दिक्कत नहीं : अजय कुमार
समेति के निदेशक अजय कुमार कहते हैं कि राज्य में वर्षों पहले से मोटे अनाज की खेती होती थी. यहां के जनजातीय समुदाय मोटे अनाज की भरपूर की खेती करते थे. बाजार नहीं होने के कारण इसको बढ़ावा नहीं मिल सका. अब मोटे अनाज को बाजार की दिक्कत नहीं है. यह बाजार में काफी महंगा भी बिक रहा है. इसका सबसे बड़ा फायदा है कि यह पूरी तरह आर्गेनिक फसल है. इसमें कीटनाशक की जरूरत नहीं होती है. कम पानी में तैयार हो जाता है. झारखंड में समय-समय पर सूखा पड़ जाता है. इसको देखते हुए झारखंड के लिए यह काफी अनुकूल है.