रांची : मिट गया बजरा-पंडरा नदी का अस्तित्व, अतिक्रमण सबसे बड़ी वजह, 25 साल पहले ऐसी थी स्थिति

नदी का उद्गम स्थल भी प्रभावित हुआ है, जिससे इसमें काफी कम पानी आ रहा है. यह नदी राजधानी के प्रमुख कांके(गोंदा) डैम का जलस्रोत है. ऐसे में नदी में पानी का बहाव कम होने की वजह से डैम का जलस्तर भी प्रभावित हो रहा है

By Prabhat Khabar News Desk | November 10, 2023 10:29 AM

रांची : शासन-प्रशासन जब आंखें मूंद ले, तो नदी, पहाड़ और जंगल का अस्तित्व मिटना तय है. राजधानी में बहनेवाली एक प्रमुख ‘बजरा-पंडरा नदी’ इसकी मिसाल है. 15-20 साल पहले तक यह नदी अपने वास्तविक स्वरूप में कल-कल करते हुए बहा करती थी. लेकिन, धीरे-धीरे कंक्रीट के जंगल इसे निगल गये. किनारों पर धड़ल्ले से बन रहे मकानों की वजह से नदी में पानी का बहाव रुकता गया, साथ ही उसका रास्ता भी बदलता गया. नतीजतन, यह नदी आज एक नाले के रूप में शेष रह गयी है.

पिछली दो-तीन बरसातों से हालात और भी बदतर हो गये हैं. नदी का उद्गम स्थल भी प्रभावित हुआ है, जिससे इसमें काफी कम पानी आ रहा है. यह नदी राजधानी के प्रमुख कांके(गोंदा) डैम का जलस्रोत है. ऐसे में नदी में पानी का बहाव कम होने की वजह से डैम का जलस्तर भी प्रभावित हो रहा है. 25 साल पहले जहां हेसल-नवासोसो के निचले हिस्से में स्थित डैम का तीन मुड़िया चट्टान पानी में डूब जाता था, अब उसकी चार-पांच फीट ऊंचाई तक भी पानी नहीं पहुंच रहा. हैरत की बात यह है कि शासन और प्रशासन के स्तर से इस नदी को संरक्षित करने के कोई उपाय नहीं किये गये. इस कारण नदी की जमीन पर भी कब्जा दिख रहा है.

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बजरा-बनहौरा इलाके में है नदी का उद्गम स्थल : बजरा-पंडरा नदी का उद्गम बजरा-बरियातू और बनहौरा के इलाके से बहनेवाले पानी से हुआ था. नोवा नगर के ठीक पिछले हिस्से का पानी भी इसमें बह कर जाता था. पूरे इलाके से बहनेवाला पानी काजू बगान के नीचे आते-आते बड़ी नदी का स्वरूप ले लेता था. यहां से निकली नदी पंडरा और लोअर शाहदेव नगर इलाके से होते हुए कांके डैम चली जाती थी. तब पूरा इलाका खाली था. 20 साल पहले यह नदी पूरे साल बहती रहती थी. इसके बाद के वर्षों में नदी के किनारे तेजी से अतिक्रमण हुआ और मकान बनने लगे, जिससे नदी का अस्तित्व मिटने की कगार पर है.

1975 से 1998 तक इस नदी में पूरे साल पानी बहता था. स्थानीय लोग नदी के पानी का सदुपयोग करते थे. बरसात में काजू बगान के नीचे नदी की चौड़ाई करीब 50 फीट होती थी. अब केवल नाला दिख रहा है.

भोला शर्मा, समाजसेवी, निवासी- बजरा

इस नदी का जिंदा रहना बेहद जरूरी है. इससे कांके डैम का जलस्तर भी बना रहता. पर यहां तो नदी के रास्ता ही रोक दिया गया है. इस नदी के मर जाने से इलाके के हर व्यक्ति को समस्या होगी.

बेला कच्छप, निवासी-पंचवटी नगर

इस नदी को बचाया जाना बहुत जरूरी है. नदी का रास्ता कैसे रुका इस पर ध्यान देने की जरूरत है. कोशिश होनी चाहिए कि किसी तरह नदी का रास्ता खोला जाये, ताकि यह अपने अस्तित्व में आ सके.

संजय कुमार, निवासी-पंचवटी नगर

इस नदी की दुर्दशा के लिए इलाके के लोग ही जिम्मेदार हैं. फिलहाल यह नदी कंक्रीट के नीचे दब कर नाले का रूप ले चुकी है. लोग नाला समझ कर इसमें कचरा फेंक रहे हैं. प्रशासन आंखें मूंदे हुए है.

पिंटू कुमार साहू, निवासी-पंचवटी नगर

नदी के गुम होते ही, घरों में घुसने लगा बरसात का पानी

नदी का बहाव रुकने और इसके रास्ता बदलने से पंडरा पंचशील नगर और लोअर शाहदेव नगर प्रभावित हुआ है. हर बरसात में नदी का पानी नाले से होकर पूरे मुहल्ले में घुसने लगा है. घंटे-दो घंटे की तेज बारिश में भी घरों में पानी घुस जाता है.

बस गये छह मुहल्ले, बन गये 500 से अधिक मकान

नदी के किनारे अब तक छह मुहल्ले बस गये हैं. नोवा नगर के पिछले इलाके से नदी शुरू हुई है. अब इसके तट पर रंका टोली, पंचवटी नगर, आनंद नगर, लोअर राधानगर, पंचशील नगर, लोअर शाहदेव नगर बस ग ये हैं. इन मुहल्लों में 500 से अधिक मकान बन गये हैं. नदी किनारे 60 से अधिक मकान हैं. इनमें से कई अपनी जमीन को खतियानी बता रहे हैं.

उपायुक्त ने कहा

बजरा-पंडरा नदी का अस्तित्व समाप्त होने की जानकारी मुझे नहीं है. लेकिन, इसके बारे में जानकारी लूंगा. यह गंभीर मसला है. यह पता लगाया जायेगा कि आखिर किन परिस्थितियों में ऐसा हुआ है.

राहुल कुमार सिंह, उपायुक्त, रांची

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