Paramahansa Yogananda Jayanti 2023: मानवता को क्रियायोग से जोड़ने वाले अद्भुत योगी थे परमहंस योगानंद

Paramahansa Yogananda Jayanti 2023: परमहंस योगानंद जी महाराज की 130वीं जयंती है. बीसवीं सदी के एक आध्यात्मिक गुरु, योगी और पहुंचे हुए संत थे. अपने अनुयायियों को क्रिया योग का उपदेश दिया और पूरे विश्व में उसका प्रचार तथा प्रसार किया.

By Prabhat Khabar News Desk | January 5, 2023 10:05 AM

Paramahansa Yogananda Jayanti 2023: आज परमहंस योगानंद जी महाराज की 130वीं जयंती है. इनका जन्म मुकुंदलाल घोष के रूप में 05 जनवरी 1893 में गोरखपुर में हुआ था. योगानंद जी के पिता भगवती चरण घोष बंगाल रेलवे में वाइस प्रेसिडेंट थे. वह माता-पिता की चौथी संतान थे. माता-पिता महान क्रियायोगी लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे. परमहंस योगानंद जी महाराज बीसवीं सदी के एक आध्यात्मिक गुरु, योगी और पहुंचे हुए संत थे. अपने अनुयायियों को क्रिया योग का उपदेश दिया और पूरे विश्व में उसका प्रचार तथा प्रसार किया. आत्मकथा योगी कथामृत दुनिया में किसी आध्यात्मिक व्यक्ति की सर्वाधिक बिकने वाली किताब है.

जैसा नाम वैसा गुण

परमहंस योगानंद. जैसा नाम, वैसा गुण. योग के आनंद की सरल व्याख्या की. योग को परमानंद से जोड़ा. मानवता का ध्यान खींचा. खास बात है कि वह वक्त भारत की गुलामी का था. योगानंदजी ने अमेरिका और यूरोप में तीन दशक से अधिक समय बिताये. भारतीय संस्कृति और धर्म-विज्ञान की पताका फहरायी. मानवता को क्रियायोग से जोड़ा. योगानंद जी के अनुसार क्रियायोग ईश्वर से साक्षात्कार करने की एक प्रभावी विद्या है. इसके पालन से मनुष्य अपने जीवन को संवार कर ईश्वर की ओर अग्रसर हो सकता है. योगानंद जी वर्ष 1920 में अमेरिका चले गये थे. इस दौरान अमेरिका में अनेक यात्राएं की. पूरा जीवन व्याख्यान, लेखन तथा निरंतर विश्वव्यापी कार्य को दिशा देने में लगा दिया.

योगानंद का अर्थ

योगानंद का अर्थ है ईश्वर के साथ एकता (योग) के माध्यम से आनंद की प्राप्ति. योगानंदजी को युवकों के संपूर्ण विकास का आदर्श अत्यंत प्रिय था. इसलिए उन्होंने वर्ष 1917 में दिहिका में सात बच्चों के साथ लड़कों के एक विद्यालय की स्थापना की. एक साल बाद रांची का कासिमबाजार महल शिक्षा के इस शुभ उपक्रम का स्थल बना. यह योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया (वाइएसएस) का प्रारंभ था. जिसका प्रमुख आदर्श था अपनी ही बृहत आत्मा (परमात्मा) के रूप में मानवजाति की सेवा करना.

क्रियायोग
को जानिए

क्रियायोग स्नायुओं को शांत और शुद्ध कर, शरीर और मन को ऊर्जस्वित कर, श्वास-प्रश्वास को नियंत्रित करनेवाले प्राणायाम और ध्यान की वह तकनीक है, जो मनुष्य को आत्म-साक्षात्कार की स्थिति में पहुंचा देती है. यह जीवनशैली में शुद्धता और आनंद लाती है. साधक सेवा और सहयोग की ओर उन्मुख होता है. उसकी सोच सकारात्मक बनती है, जो उसको अपने-पराये के भेदभाव से मुक्त करती है और मानव जीवन की वास्तविकता से परिचित कराती है. उसमें धैर्य और साहस का संचार होता है.

अमेरिका जाने से पहले योगदा सत्संग सोसाइटी की स्थापना

परमहंस योगानंद जी ने अमेरिका जाने के तीन साल पहले यानी 1917 में रांची में योग विद्यालय और योगदा सत्संग सोसाइटी की स्थापना की. अमेरिका के लॉस एंजिलिस में सेल्फ-रियलाइजेशन फेलोशिप की स्थापना की. और इन्हीं दो संस्थाओं के माध्यम से पूरी दुनिया में क्रियायोगियों की लड़ी लग गयी. स्थापना काल के 100 वर्षों बाद भी इन संस्थाओं की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है. क्रियायोगियों की संख्या बढ़ रही है.

मानव के लिए सार्वभौमिक है योगानंदजी का प्रेम

मैं कॉलेज का छात्र था, तभी ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी पुस्तक के संपर्क में आया. कारण था एक छात्र, जो ड्रग एडिक्ट था, लेकिन उसने उस किताब को पढ़ने और कुछ महीनों के लिए योगदा सत्संग पाठों का पालन करने के कारण इस आदत को छोड़ दिया. मैं भी किताब से मंत्रमुग्ध था क्योंकि मेरे दिमाग में कई भ्रम अपने आप दूर हो गये. अपने जीवन के उद्देश्य को स्पष्ट रूप से समझ सका. आप कह सकते हैं कि मेरी आध्यात्मिक यात्रा वास्तव में वहीं से शुरू हुई. मेरे जैसे भक्तों के लिए ही नहीं, संपूर्ण मानव जाति के लिए योगानंदजी का प्रेम सार्वभौमिक है. साथ ही बहुत व्यक्तिगत भी. इसका वर्णन करने के लिए मैं महान गुरु की एक कविता से उद्धरण दूंगा.

मुझे अपनी नाव चलानी है कई बार/ मृत्योपरांत खाड़ी के आर-पार/ और स्वर्ग में अपने स्थान से लौटकर आना है भूलोक के किनारे पर / अपनी नाव में मुझे भरना है उन्हें/ जो राह देख रहे हैं, जो प्यासे पीछे छूट गये हैं/ और उन्हें ले जाना है उस रंगबिरंगे आनंद की नील पुष्करिणी पर/ जहां मेरे परमपिता वितरित करते हैं अपनी सर्व-इच्छा-शामक तरल शांति. तो आइए हम साधना और सेवा के प्रति गहन समर्पण के संकल्प के साथ योगानंदजी के पदचिन्हों पर चलें और इस प्रकार संतों के स्वर्गीय सान्निध्य का आनंद लें.

-स्वामी शुद्धानंद गिरि

विजेता की मुस्कान के साथ करें परिस्थिति का सामना

परमहंस योगानंदजी ने अपनी एक पुस्तक आत्मा के गीत में वचन दिया है. उनकी शिक्षाओं के केंद्र में ध्यान प्रविधियों, ध्यान के क्रियायोग विज्ञान की एक शक्तिशाली पद्धति है. श्रीमद भागवतगीता में वर्णित, आत्मा का प्राचीन विज्ञान आत्म-प्रयास व दैवी कृपा द्वारा उच्चतर आध्यात्मिक चेतना को जाग्रत करने के लिए शक्तिशाली साधन प्रदान करता है. इसका भावपूर्ण प्रयोग योगानंदजी के एक सच्चे जीवन के आदर्श में प्रतिध्वनित होता है. जीवन के युद्ध क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक परिस्थिति का सामना एक नायक के साहस और एक विजेता की मुस्कान के साथ करें.

-संध्या एस नायर, सूरत

प्राचीन ऋषियों के आदर्श प्रतिनिधि रहे हैं योगानंदजी

श्री परमहंस योगानंद भारत के उन प्राचीन ऋषियों व संतों के आदर्श प्रतिनिधि रहे हैं, जो भारत के वैभव हैं. हमें इस अपरिमेय रत्न के बारे में और अधिक जानने के लिए विवश करते हैं. आत्मकथा योगी कथामृत जन-जन की अति प्रिय पुस्तक, जिसे गौरव ग्रंथ के रूप में पूजा जाता है. इसमें क्रियायोग के विषय में कहा गया है कि यह एक विशिष्ट कर्म या विधि (क्रिया) द्वारा अनंत परमतत्व के साथ मिलन (योग) है. इस विधि का निष्ठापूर्वक अभ्यास करनेवाला योगी धीरे-धीरे कर्म बंधन से या कार्य कारण संतुलन की नियमबद्ध शृंखला से मुक्त हो जाता है. पूर्व और पश्चिम के इस महान योगी, जगद्गुरु के आविर्भाव दिवस के शुभ अवसर पर व्याप्त मधुर स्पंदनों के मध्य, दिव्य आनंद के अथाह सागर में डुबकी लगाये और अपने सर्वोत्तम प्रयासों के द्वारा अपने अंदर के संत को जगा लें और उनके समान बन जाये.

-मंजुलता गुप्ता, दिल्ली

खुद को कभी अकेला और असहाय नहीं पाया

क रीब दो दशक पहले मैं परमहंस योगानंद जी की शिक्षाओं के परिचित हुई. तब मैं एक स्कूल की छात्रा थी. परमहंस योगानंद जी की शिक्षाओं के अभ्यास से सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि जीवन की किसी भी परिस्थिति में मैंने खुद को कभी अकेला और असहाय नहीं पाया. गुरुदेव की शिक्षाओं के अभ्यास से अपने आप में आत्मिक बल, शांति और आनंद का स्त्रोत पाया. इससे जीवन के अंधकार भरे क्षणों में भी जीवन का पथ प्रदर्शन किया. परमहंस योगानंद जी की शिक्षाओं ने बहुत सा समय व्यर्थ होने से बचाया. जीवन की आपाधापी में शांति बनाए रखना सिखाया. निस्संदेह ही क्रिया योग की उन्नत प्रविधि का अभ्यास मेरे जीवन की आधारशिला रहा है.

-डॉ पूनम बिश्नोई, अनुयायी

Next Article

Exit mobile version