जैन समाज के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री के सचिव विनय चौबे से मुलाकात की. उन्होंने जैन समुदाय के प्रसिद्ध तीर्थक्षेत्र सम्मेद शिखरजी पारसनाथ (पहाड़ी) को पर्यटन स्थल घोषित करने के लिए राज्य सरकार के फैसले को वापस लेने की मांग की. कहा कि पर्यटन स्थल घोषित करने से जैन समाज के सबसे पवित्र स्थान की पवित्रता भंग होने का खतरा है.
मौके पर पर्यटन सचिव मनोज कुमार को भी बुलाया गया. पर्यटन सचिव ने प्रतिनिधिमंडल से पारसनाथ को धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में अधिसूचित करने की बात कही. यह पर्यटन निदेशालय के अंतर्गत आयेगा. निदेशालय ही पर्यटन स्थल के विकास की रूपरेखा तय करेगा. वहां मांस या मदिरा की बिक्री नहीं होने दी जायेगी. उसे प्रतिबंधित किया जायेगा.
हालांकि, प्रतिनिधिमंडल उनकी बात से संतुष्ट नहीं हुआ. जैन समाज द्वारा पारसनाथ को पर्यटन स्थल घोषित नहीं करने का आग्रह किया गया. हालांकि, मुख्यमंत्री सचिवालय की ओर से अब तक पारसनाथ को पर्यटन स्थल घोषित करने या नहीं करने से संबंधित कोई आदेश पर्यटन विभाग को नहीं दिया गया है. किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले राज्य सरकार इस मामले में सभी बिंदुओं की तकनीकी पहलुओं पर विचार कर रही है.
झारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित जैन समुदाय के प्रसिद्ध तीर्थक्षेत्र सम्मेद शिखरजी को पर्यटन क्षेत्र घोषित करने के केंद्र सरकार के फैसले का विरोध न सिर्फ देश, बल्कि विदेशों में बसे जैन समाज के लोग भी कर रहे हैं. गौरतलब है कि दो अगस्त 2019 को तत्कालीन झारखंड सरकार की अनुशंसा पर केंद्रीय वन मंत्रालय ने सर्वोच्च जैन तीर्थ श्री सम्मेद शिखर को वन्य जीव अभ्यारण्य घोषित कर पर्यावरण पर्यटन और अन्य गैर धार्मिक गतिविधियों की अधिसूचना जारी की थी. तभी से इसका विरोध किया जा रहा है.
इस साल 24 मार्च को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने भी झारखंड सरकार को इस मामले में कार्रवाई के लिए पत्र लिखा था. वहीं यह मामला संसद में भी उठाया जा चुका है. इधर, इस मामले को लेकर झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने भी केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखा है. इसमें श्री बैस ने कहा है कि जैन धर्मावलंबियों की भावनाओं और आस्था को ध्यान में रखते हुए इस स्थान को पर्यटन स्थल घोषित करने के निर्णय की पुन: समीक्षा की जानी चाहिए.