रांची, अभिषेक रॉय : मोती का नाम सुनते ही मन में समुद्र का ख्याल आता है. जबकि, अब रांची के ललगुटवा नगड़ी की संजू देवी घर पर ओयस्टर शेल से मोती की खेती कर रही हैं. एक्वा-कल्चर आधारित इस खेती पद्धति की जानकार बन संजू ने इसे स्टार्टअप के तौर पर अपना लिया है. इससे 12 से 14 महीने के चक्र में 2000 से अधिक मोती तैयार हो रहे हैं. आनेवाले दिनों में मोतियों की संख्या बढ़ाकर इसे राज्य से बाहर एक्सपोर्ट करने की भी तैयारी है. संजू कहती है कि नये काम को चुनौती के रूप में स्वीकारना पसंद है. मोती की खेती की जानकारी जामताड़ा की संस्था ‘आत्मा’ से मिली. स्टार्टअप के तौर पर इसे शुरू करने में झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) का सहयोग मिला.
लॉकडाउन के बाद कृषकमित्रों के लिए जेएसएलपीएस की ओर से खेती-किसानी का प्रशिक्षण शिविर आयोजित हुआ था. इसमें आत्मा संस्था ने महिला कृषकमित्रों को कम लागत में एक्वा-कल्चर फार्मिंग की जानकारी दी थी. संजू ने बताया कि मोती की खेती अनोखी लगी, इसलिए इस काम को आगे बढ़ाने का फैसला किया. जेएसएलपीएस से शून्य ब्याज पर 20 हजार रुपये का लोन लिया और आत्मा संस्था की मदद से आसनसोल, कोलकाता से ओयस्टर शेल को मंगवा लिया. शेल के रांची पहुंचने के क्रम में घर की आंगन में उसे रखने का इंतजाम किया.
हौज के पानी को एंटीबायोटिक मिश्रण की मदद से समुद्र का माहौल दिया जाता है, जिससे सीपियां जीवित रहती हैं. दिन में दो बार समुचित पानी की व्यवस्था कर इन्हें जीवित रखा जाता है. संजू कहती हैं सीपियां शैवाल (कैरोलिना, क्लोरेला और डायटम एल्गी) से अपना पोषण पूरा करती हैं. जीवन चक्र के छह से आठ माह पूरा होने के बाद सीप को एक सेमी चिरा लगाकर उनमें कैल्शियम कार्बोनेट डाला जाता है, जो विभिन्न आकृति की भी हो सकती है. इससे वंश चक्र के क्रम में सीप की आंखें ही अंतिम समय में मोती के रूप में तैयार होती है. एक मिली से 20 मिली मोती की कीमत बाजार में 300 से 1500 रुपये तक हो सकती है.
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संजू कहती हैं कि पिता बैजनाथ महतो किसान थे. बचपन से ही घर पर खेती की ट्रेनिंग मिली. मैट्रिक पास करने के बाद शादी शिवचंद्र महतो से हो गयी. पति सेना में थे, उनकी अनुपस्थिति में खेती की जानकारी हासिल की. पति के सहयोग से पहले मुर्गी पालन शुरू किया, इसके बाद मशरूम की भी खेती की. बेहतर कामकाज को देख जेएसएलपीएस ने नगड़ी प्रखंड के लिए कृषकमित्र भी बना दिया. इस क्रम में सीप या सीतुआ (स्थानीय नाम) से मोती तैयार करने की जानकारी मिली, तो सब छोड़ इस ओर रुख कर लिया.