रांची (वरीय संवाददाता). झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस डॉ एसएन पाठक की अदालत ने पूर्व जेपीएससी सदस्य डॉ शांति देवी की ओर से सेवानिवृत्ति लाभ को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई के बाद फैसला सुनाया. अदालत ने कहा कि पेंशन और ग्रेच्युटी इनाम नहीं हैं, बल्कि एक कर्मचारी द्वारा लंबी सेवा के माध्यम से अर्जित अधिकार है. अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद-300 ए के तहत किसी भी व्यक्ति को कानून के अधिकार के बिना उसकी संपत्ति (जिसमें पेंशन लाभ शामिल है) से वंचित नहीं किया जा सकता है. वैधानिक समर्थन के बिना पेंशन या ग्रेच्युटी को रोकने के प्रयासों की अनुमति नहीं है. अदालत ने कहा कि नियोक्ता लंबित आपराधिक मामलों के आधार पर कर्मचारी की पेंशन नहीं रोक सकता. अदालत ने प्रतिवादी को आदेश दिया कि वह छठे व सातवें वेतन संशोधन पर विचार करते हुए प्रार्थी की पेंशन तय करे तथा 12 सप्ताह के अंदर ग्रेच्युटी, अवकाश नकदीकरण व अन्य लाभों की गणना करते हुए उसका भुगतान सुनिश्चित करे. इससे पूर्व सुनवाई के दाैरान प्रार्थी की ओर से अदालत को बताया गया कि आपराधिक आरोपों के बावजूद उनके खिलाफ कभी भी कोई विभागीय कार्यवाही शुरू नहीं की गयी थी. उनके खिलाफ दर्ज छह आपराधिक मामलों में से तीन मामलों में उन्हें बरी किया जा चुका है, जबकि तीन मामले अब भी लंबित हैं. वहीं प्रतिवादी की ओर से तर्क दिया गया था कि कर्मचारी के खिलाफ लंबित गंभीर आपराधिक आरोपों के कारण वह पेंशन लाभ का हकदार नहीं था. क्या है मामला : डॉ शांति देवी को एक नवंबर 1984 को बीएनजे कॉलेज सिसई गुमला में व्याख्याता के रूप में नियुक्त किया गया था. बाद में उन्हें 16 फरवरी 2002 को राम लखन सिंह यादव कॉलेज कोकर में स्थानांतरित किया गया. सात नवंबर 2003 को उन्हें झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया. जेपीएससी के कार्यकाल के बाद उन्होंने सात नवंबर 2009 को राम लखन सिंह यादव कॉलेज में अपनी ड्यूटी फिर से शुरू की. रांची विश्वविद्यालय ने झारखंड राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम-2000 की धारा-67 के तहत 25 जनवरी 2019 को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया था. उनकी सेवानिवृत्ति के बावजूद उन्हें पेंशन, ग्रेच्युटी, छुट्टी नकदीकरण व समूह बीमा का लाभ नहीं मिला. उन्होंने कई अभ्यावेदन दिया, लेकिन लंबित आपराधिक मामलों के कारण उनके दावों को अस्वीकार कर दिया गया. इसके बाद डॉ शांति देवी ने हाइकोर्ट में रिट याचिका दायर की थी.
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