झारखंड हाइकोर्ट के आदेश पर भी नहीं मिली पेंशन, याचिकाकर्ता नहीं रहीं
सात अल्पसंख्यक कॉलेजों के शिक्षकों व कर्मचारियों के पेंशन भुगतान में देरी का मामला
रांची : अल्पसंख्यक कॉलेजों के शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए पेंशन की लड़ाई लड़ रही मंजू शर्मा की मौत पांच दिसंबर को हो गयी. मौलाना आजाद कॉलेज में इतिहास विभाग की प्राध्यापक रह चुकी मंजू शर्मा मुख्य याचिकाकर्ता के रूप में इस मामले को हाइकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गयी थीं. लेकिन, जब पेंशन लेने का वक्त आया, तो वे इस दुनिया में नहीं रहीं. हालांकि, वे अकेली नहीं हैं. उनसे पहले पेंशन की आस में इस मामले से जुड़े पांच याचिकाकर्ता की भी मौत पहले ही हो चुकी है.
अल्पसंख्यक कॉलेज के शिक्षकों व कर्मचारियों की पेंशन का मामला देख रहे वरीय अधिवक्ता ए अल्लाम इससे बेहद दुखी हैं. उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता मंजू शर्मा काफी एक्टिव थीं और इस मामले को अंजाम तक पहुंचाने के लिए लगातार संघर्ष कर रही थीं. उन्होंने बताया कि राज्य के सात अल्पसंख्यक कॉलेजों में 19 दिसंबर 2012 से पूर्व सेवानिवृत्त शिक्षकों व कर्मचारियों को पेंशन देने में हो रही देरी को लेकर झारखंड हाइकोर्ट में अक्तूबर में सुनवाई हुई थी. उस दौरान हाइकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एचसी मिश्र ने तल्ख टिप्पणी की थी.
कहा था कि क्या सरकार पेंशन का भुगतान करने के लिए लाभार्थियों के मरने का इंतजार कर रही है? उच्च शिक्षा विभाग के रवैये से नाखुश हो कर न्यायाधीश ने 50 हजार रुपये का दंड लगाया था. साथ ही आदेश दिया था कि 11 दिसंबर 2020 तक पेंशन का भुगतान सुनिश्चित किया जाये.
19 दिसंबर 2012 को जारी आदेश पर उठा विवाद :
राज्य सरकार ने ही 19 दिसंबर 2012 को एक आदेश जारी किया था. इसमें कहा गया था कि 19 दिसंबर 2012 या इसके बाद अब जो भी शिक्षक व कर्मचारी सेवानिवृत्त होंगे, उन्हें पेंशन का लाभ मिलेगा. लेकिन, इस तिथि से पूर्व के शिक्षक और कर्मचारी इस आदेश से पेंशन लेने से वंचित हो गये. इसे लेकर ही शिक्षक हाइकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, जिसका नेतृत्व मंजू शर्मा ही कर रही थीं.
जुर्माना माफ कराने पहुंचा था विभाग, हाइकोर्ट नहीं माना
अक्तूबर में हुई सुनवाई के दौरान हाइकोर्ट ने 27 नवंबर तक पेंशन भुगतान का आदेश दिया, लेकिन विभाग और विवि ने तकनीकी पेच बताकर भुगतान नहीं किया. विभाग की उदासीनता से खफा कोर्ट ने 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया. इसके बाद विभाग और विवि ने 27 नवंबर को हाइकोर्ट को बताया कि चूंकि इस मामले में कैबिनेट को निर्णय लेना है, वे इसमें कुछ नहीं कर सकते.
इसलिए उन पर लगाया गया दंड माफ किया जाये. हाइकोर्ट ने विभाग व विवि का आग्रह मानने से इनकार कर दिया और आदेश दिया कि शिक्षकों व कर्मचारियों को 11 दिसंबर 2020 तक पेंशन का भुगतान सुनिश्चित किया जाये. अगर समय पर भुगतान नहीं हुआ, तो दंड की राशि दोगुनी कर दी जायेगी. साथ ही लापरवाह अफसरों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जायेगी.
posted by : sameer oraon