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Traffic System: रांची के लोग ट्रैफिक जाम से परेशान, 40 फीसदी हिस्से पर हो रही अवैध पार्किंग

झारखंड अलग राज्य बने 22 वर्ष बीत चुके हैं. इस दौरान आबादी के साथ-साथ वाहनों की संख्या में भी वृद्धि हुई है, लेकिन उस अनुपात में सड़कों का विस्तारीकरण नहीं हो सका है. जिस कारण आये दिन जाम की समस्या खड़ी हो जाती है. वहीं, 40 फीसदी सड़कों पर अवैध पार्किंग ट्रैफिक अव्यवस्था का कारण बनी हुई है.

Ranchi Traffic System: अपनी राजधानी पहले जैसी नहीं रही. सड़कें संकरी हो चली हैं. फिरायालाल से बस लालपुर का सफर करिये, पूरे शहर में मनमानी का मिजाज समझ में आ जायेगा. सेंटेविटा और ऑर्किड अस्पताल के सामने अवैध पार्किंग के कारण जाम की समस्या प्रशासन और आम लोगों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है. सर्कुलर रोड में भी यही हाल है. राजधानी में बड़े-बड़े प्रतिष्ठान और अस्पताल तो बना दिये गये हैं, लेकिन वह पार्किंग के नाम पर स्पेस देना ही भूल गये. इसका परिणाम हो रहा है कि अस्पतालों और प्रतिष्ठानों के सामने ही लोग गाड़ियां लगा रहे हैं और इनका 10 से 15 फीट की सड़क पर चार-पांच फीट तक कब्जा रहता है. बची हुई सड़क पर गाड़ियां रेंगती रहती हैं. ऐसे में देखा जाये, तो 40 फीसदी सड़कों पर अवैध पार्किंग ट्रैफिक अव्यवस्था का कारण बनी हुई है. इतनी परेशानी के बाद भी नगर निगम ने अपनी आंखें बंद रखी हैं और अप्रत्यक्ष तौर पर इन्हें एनओसी देकर रखा है. न कोई सवाल और नोटिस. यह हाल तब है, जब राज्य बने 22 साल हो गये हैं.

गलियों में पहुंचा अवैध पार्किंग का कैंसर

बिगड़ते हालात का अंदाजा आप इससे भी लगा सकते हैं कि अवैध पार्किंग का कैंसर अब शहर की गलियों तक जा पहुंचा है. गलियों में भी बिना पार्किंग बेसमेंट के बड़ी इमारतें और प्रतिष्ठान बना दिये गये हैं. ऐसे में सड़कों का पार्किंग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. उदाहरण के तौर पर डॉ केके सिन्हा के घर से चेशायर होम जानेवाली सड़क को लें. यहां दिन में ही सड़क के किनारे लगाये गये वाहनों के कारण जाम की समस्या का सामना करना पड़ता है. खास कर स्कूलों की छुट्टियों के वक्त. यही हालत रातू, हिनू और अन्य इलाकों में है.

मेन रोड में पार्किंग की स्थायी व्यवस्था नहीं

मेन रोड में आज तक पार्किंग की समस्या का स्थायी समाधान नहीं ढूंढ़ा जा सका है. अलबर्ट एक्का चौक से लेकर सुजाता सिनेमा हॉल तक कहीं भी बेहतर तरीके से पार्किंग का इंतजाम नहीं हो सका है. डेली मार्केट और सैनिक मार्केट के अलावा अधिकांश जगहों पर गाड़ी वाले पार्किंग के लिए परेशान रहते हैं. अंत में सड़क को ही पार्किंग स्पेस के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा है. एक्सप्रेस शॉप और रोस्पा टॉवर के पास भी गाड़ियां सड़क पर खड़ी की जा रही हैं, जिससे वाहनों के परिचालन में दिक्कत होती है और हादसे की आशंका बनी रहती है.

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मेन रोड में स्पेस की कमी बड़ी बाधा

राजधानी में पार्किंग को लेकर आज तक कोई व्यवस्थित योजना नहीं बनी. निगम का भी मानना है कि मेनरोड काफी अनप्लांन्ड तरीके से बसा हुआ है, ऐसे में यहां पर किसी भी प्रकार के इंतजाम में दिक्कत होती है. खास कर जमीन और स्पेस की कमी सबसे बड़ी बाधा बन रही है, लेकिन सवाल है कि तेजी से बढ़ती समस्या का समाधान कैसे निकले.

मोहल्लों में भी अवैध पार्किंग को बढ़ावा

20 साल पहले तक रांची के मोहल्लों में मैदान और खुली जगह की भरमार थी, लेकिन तेजी से हुए शहरीकरण और अपार्टमेंट कल्चर के कारण खाली जगह की कमी होती चली गयी. मोरहाबादी, लालपुर और बरियातू के इलाके में पिछले कुछ सालों में तेज गति से पार्क और इमारतों का निर्माण किया गया है. खाली मैदान पर पार्क बना दिये गये, जिससे जगह की कमी के कारण अवैध पार्किंग को बढ़ावा मिला है. लोग पार्किंग के लिए सड़कों के किनारे का चयन कर रहे हैं. इससे गलियों में भी जाम की स्थिति बनी रहती है.

मल्टीस्टोरेज पार्किंग का प्लान नहीं हुआ पूरा

शहर में जगहों की कमी को देखते हुए नगर निगम ने वर्ष 2016-17 में शहर में चार जगहों पर मल्टीस्टोरेज पार्किंग बनाने का प्लान तैयार किया. इसमें साधु मैदान, हनुमान मंदिर टैक्सी स्टैंड, सैनिक बाजार के सामने वेलफेयर सिनेमा की जमीन पर व सुजाता चौक के समीप के भूखंड पर जमीन का अधिग्रहण कर मल्टीस्टोरेज पार्किंग बनाने का प्रस्ताव तैयार किया गया. लेकिन हनुमान मंदिर टैक्सी स्टैंड को छोड़कर तीनों ही जगह पर निगम को जमीन देने से रैयतों ने इंकार कर दिया. नतीजा मामला फाइल में ही फंसा रह गया.उसके बाद से आज तक मल्टीस्टोरेज पार्किंग के निर्माण के लिए ठोस पहल नहीं की गयी. नतीजा पार्किंग स्पेस की कमी से जूझना पड़ रहा है.

नो कार अभियान पड़ गया ठंडा

आम लोग सेहतमंद रहें व शहर का पर्यावरण भी दुरुस्त रहे. इसके लिए रांची नगर निगम के तात्कालीन नगर आयुक्त मुकेश कुमार ने वर्ष 2020 में शनिवार नो कार अभियान शुरू किया. इस अभियान का एकमात्र मकसद यह था कि साइक्लिंग को बढ़ावा देने के लिए सप्ताह में एक दिन सरकारी कार्यालयों में लोग साइकिल से कार्यालय आयें. लेकिन कुछ सप्ताह यह अभियान चलने के बाद कोरोना की इंट्री देश में हुई. नतीजा निगम का यह अभियान भी ठंडा पड़ गया. दोबारा से यह अभियान कब शुरू होगा. इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ है.

साइकिल शेयरिंग सेवा का लाभ नहीं मिल रहा

शहर में साइक्लिंग को बढ़ावा देने के लिए चार्टर्ड बाइक द्वारा पब्लिक साइकिल शेयरिंग सेवा की शुरुआत रांची में की गयी. लेकिन काफी कम संख्या में साइकिल होने से शहर के लोगों की दिनचर्या में यह सेवा शामिल ही नहीं हो पाया. इसके अलावा हर क्षेत्र में साइकिल स्टैंड नहीं होने के कारण लोगों का विश्वास इस सेवा पर जमा ही नहीं. ऐसे में शुरू किया गया एक बेहतर ट्रेंड अपने मकसद को हासिल करने में नाकामयाब रहा.

निगम नहीं बना पाया नया पार्किंग सिस्टम

राजधानी बनने के बाद रांची शहर में जहां गाड़ियों की संख्या बेतहाशा बढ़ी है. रांची में 3292 वाहन निबंधित थे, वहीं 2022 में इनकी संख्या बढ़कर 1344031 हो गया है. यानी 408 गुना वाहन बढ़ गये. ऐसे में सड़कों पर बढ़े दबाव का अंदाजा लगाया जा सकता है. दूसरी ओर रांची नगर निगम पिछले 20 साल में अब तक एक भी नया पार्किंग स्थल विकसित नहीं कर पाया है. नतीजा हुआ है कि आज भी पार्किंग के नाम पर निगम वाहन सड़कों पर ही खड़े कराता है.

पार्किंग के नाम पर लोगों की कट रही जेब

शहर में पार्किंग स्थलों की कमी होने का फायदा निजी मॉल संचालक उठा रहे हैं. आम लोग खरीदारी करने जब बाजार जाते हैं, तो उन्हें शॉपिंग कांप्लेक्स के सामने व निजी मॉल के पार्किंग में वाहन पार्क करना पड़ रहा है. निगम का कोई नियम नहीं होने के कारण यहां वाहन चालकों से मनमाने पार्किंग शुल्क की वसूली होती है. ऐसे में उन्हें आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है.

निगम बेजान, पब्लिक परेशान

रांची नगर निगम क्षेत्र में जहां वाहनों की संख्या लाखों में पहुंच गयी है, वहीं पूरे शहर में रांची नगर निगम के पास मात्र 31 ही पार्किंग स्थल हैं. इन पार्किंग स्थलों में वाहन पार्क करने की कुल क्षमता मात्र तीन हजार है. ऐसे में अधिकतर पार्किंग स्थल वाहनों से ही खचाखच भरे रहते हैं. नतीजा लोग मजबूरी में सड़क पर ही वाहन पार्क करने को विवश हैं. कई बार तो काफी दूर वाहन पार्क करने से काफी समय की बर्बादी होती है.

लूट मची हुई है पार्किंग स्थल पर

पार्किंग स्थलों में खड़े होनेवाले वाहनों के लिए नगर निगम द्वारा दर का भी निर्धारण किया गया है. इसके तहत दोपहिया वाहनों से पांच रुपये व चार पहिया वाहनों से 20 रुपये तीन घंटे के लिए पार्किंग शुल्क वसूला जाना है. लेकिन इन ठेकेदारों के द्वारा इसमें भी मनमानी की जाती है. ये यहां आने वाले दोपहिया वाहन चालकों से पांच की जगह 10 व चार पहिया वाहनों से 20 की जगह 40 रुपये तक पार्किंग शुल्क की वसूली करते हैं.

यूं कर सकते हैं समस्या का निदान

  • मेन रोड और आसपास पार्किंग स्पेस दिया जाये : मेन रोड और आसपास पार्किंग स्पेस का इंतजाम करना होगा. खुद निगम का मानना है कि मेन रोड में जगह की कमी से उसे पार्किंग व्यवस्था करने में परेशानी होती रही है. आनेवाले समय के हिसाब से पार्किंग स्पेस उपलब्ध कराया जाये.

  • ट्रांसपोर्ट सर्विस को बेहतर बनाया जाये : राज्य बनने पर राजधानी में शुरू में ट्रांसपोर्ट सर्विस को बेहतर बनाने का काम हुआ था. इसके तहत सिटी बस सेवा को बेहतर बनाने की पहल भी हुई थी, लेकिन बाद के सालों में सिटी बस सेवा ठप हो गयी. इसकी फिर से बेहतर शुरुआत हो.

  • एडवांस पार्किंग सिस्टम विकसित करें : एडवांस पार्किंग सिस्टम बनाना होगा. इसमें गाड़ी के मालिक को पहले ही खाली हो गये पार्किंग स्पेस की जानकारी मिलेगी और इसके प्रबंधन में भी मदद मिलेगी.

  • पार्किंग शुल्क को कम करने से खुलेगा रास्ता : पार्किंग शुल्क के महंगा होने के कारण ही कई लोग अपने वाहनों को पार्किंग में लगाने से परहेज करते हैं. ऐसे में जहां-तहां गाड़ी लगाने से जाम की स्थिति हो जाती है. निगम को आम जन के हिसाब से पार्किंग शुल्क का निर्धारण करना होगा.

  • कार पूलिंग सर्विस की शुरुआत की जाये : कार पूलिंग के तहत लोग किसी एक स्थान पर जाने के लिए एक ही वाहन का प्रयोग करते हैं. इसके लिए लोगों को जागरूक करना होगा. जिससे सड़क पर वाहनों की संख्या कम हो सके. इससे लोगों का आर्थिक नुकसान भी कम होगा.

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