Pitru Paksha 2022: पितृ पक्ष 11 सितंबर से शुरू, नदी व तालाबों के किनारे लोग पितरों का करेंगे तर्पण

Pitru Paksha 2022: श्राद्ध का अर्थ पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव से है. जो मनुष्य अपने पितरों के प्रति उनकी तिथि पर अपने सामर्थ्य के अनुसार फल-फूल, अन्न, मिष्ठान्न आदि से ब्राह्मण को भोजन कराते हैं, उस पर प्रसन्न होकर पितृ उसे आशीर्वाद देकर जाते हैं.

By Mithilesh Jha | September 10, 2022 8:24 PM

Pitru Paksha 2022: पितृ पक्ष रविवार 11 सितंबर 2022 से शुरू (pitru paksha kab se hai) हो रहा है. इस दिन तर्पण करने के लिए लोग नदी, तालाबों व जलाशयों के किनारे स्नान, ध्यान कर तर्पण करेंगे. रविवार को दिन के 2:15 बजे तक प्रतिपदा तिथि है. पंडित कौशल कुमार मिश्र ने कहा कि जब भगवान सूर्य कन्या राशि में विचरण करते हैं, तब पितृलोक पृथ्वी लोक के सबसे अधिक नजदीक आता है.

पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव है श्राद्ध

उन्होंने कहा कि श्राद्ध का अर्थ पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव से है. जो मनुष्य अपने पितरों के प्रति उनकी तिथि पर अपने सामर्थ्य के अनुसार फल-फूल, अन्न, मिष्ठान्न आदि से ब्राह्मण को भोजन कराते हैं, उस पर प्रसन्न होकर पितृ उसे आशीर्वाद देकर जाते हैं. जिस मास और तिथि को व्यक्ति की मृत्यु हुई है, उस दिन श्राद्ध किया जाता है.

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16 दिन तक लोग पितरों को देते हैं जल

पंडित कौशल कुमार कहते हैं कि धर्म ग्रंथों के अनुसार 16 दिन तक लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करते हैं. ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है. वर्ष के किसी भी मास व तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है. पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है.

पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं पितर

इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है. पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्ष भर प्रसन्न रहते हैं. श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिंडदान व तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे. इसी आशा से वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं. हिंदू धर्म में मरणोपरांत संस्कारों को पूरा करने के लिए पुत्र का प्रमुख स्थान माना गया है.

श्राद्ध में कुश और तिल का महत्व

उन्होंने कहा कि कुश को जल और वनस्पतियों का सार माना जाता है. यह भी मान्यता है कि कुश और तिल दोनों विष्णु के शरीर से निकले हैं. गरुड़ पुराण के अनुसार, तीनों देवता ब्रह्मा-विष्णु-महेश कुश में क्रमश: जड़, मध्य और अग्रभाग में रहते हैं. कुश का अग्रभाग देवताओं का, मध्य भाग मनुष्यों का और जड़ पितरों का माना जाता है. तिल पितरों को प्रिय है और दुष्टात्माओं को दूर भगाने वाला माना जाता हैं.

25 सितंबर को होगा पितृपक्ष का समापन

25 सितंबर को अमावस्या के दिन इसका समापन होगा. इस दिन रात 3:23 बजे तक अमावस्या होने के कारण तर्पण करने वाले श्रद्धालु को काफी वक्त मिलेगा. इसके लिए मध्याह्नकाल का समय उपयुक्त माना गया है. इस दिन जिनकी मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं है, वे इस दिन श्राद्ध कर सकते हैं.

तर्पण के जरूरी सामाग्री

कुश, जल, कुश की अंगूठी, अक्षत, तिल, सफेद चंदन, सफेद फूल, जौ, कुश की आसनी, द्रव्य, सफेद सूता सहित अन्य सामग्री.

श्राद्ध की तिथि

  • 11 रविवार प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध

  • 12 सोमवार द्वितीया तिथि का श्राद्ध

  • 13 मंगलवार तृतीया तिथि का श्राद्ध

  • 14 बुधवार चतुर्थी तिथि का श्राद्ध

  • 15 गुरुवार पंचमी तिथि का श्राद्ध

  • 16 शुक्रवार षष्ठी तिथि का श्राद्ध

  • 17 शनिवार सप्तमी तिथि का श्राद्ध

  • 18 रविवार अष्टमी तिथि का श्राद्ध

  • 19 सोमवार नवमी तिथि का श्राद्ध

  • 20 मंगलवार दशमी तिथि का श्राद्ध

  • 21 बुधवार एकादशी तिथि का श्राद्ध

  • 22 गुरुवार द्वादशी तिथि का श्राद्ध

  • 23 शुक्रवार त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध

  • 24 शनिवार चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध – अकाल मृत्यु (शस्त्र अथवा दुर्घटना में मरे पितरों का) श्राद्ध

  • 25 रविवार अमावस्या तिथि का श्राद्ध / सर्वपितृ श्राद्ध

रिपोर्ट- राजकुमार

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