राम मंदिर से खुशी, पर सरना की परंपरा से नहीं हो छेड़छाड़
सरनास्थल से पवित्र मिट्टी लेने के मुद्दे पर भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी के उस बयान पर कि सनातन से सरना जुड़े रहे हैं और राम से गहरा नाता है, इसको लेकर सरना समाज के धर्म गुरुओं ने अपनी आपत्ति जतायी है़
सरनास्थल से पवित्र मिट्टी लेने के मुद्दे पर भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी के उस बयान पर कि सनातन से सरना जुड़े रहे हैं और राम से गहरा नाता है, इसको लेकर सरना समाज के धर्म गुरुओं ने अपनी आपत्ति जतायी है़ धर्म गुरुओं का कहना है कि सरना की अपनी परंपरा, सांस्कृतिक विरासत है़ राम को राम रहने दें व सरना माता को सरना़ किसी धर्म, पहचान को दूसरे में समाहित कर देना ठीक नहीं है़
सरना की मिट्टी का प्रयोग गलत : धर्मगुरु बंधन तिग्गा राम मंदिर हिंदू आस्था का प्रतीक. उसके निर्माण से हमें कोई आपत्ति नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने भी इसकी अनुमति दी है, पर इसमें सरना स्थल की मिट्टी का प्रयोग करना अनुचित होगा. मेयर आशा लकड़ा या पूर्व विधायक गंगोत्री कुजूर खुद को वानर या शूद्र कह सकती हैं, लेकिन आदिवासियों को यह मान्य नहीं है. ऐसे लोग आदिवासी नहीं हो सकते. वे आरएसएस और विहिप के मानसिक गुलाम हैं, जो भाजपा की दलाली कर रहे हैं.
गंगोत्री कुजूर द्वारा चान्हो के सरना स्थल से, जो स्वयं में पवित्र है, वहां ब्राह्मण से शुद्ध करा कर मिट्टी लेना आपत्तिजनक है. यह पाहनों के साथ ही पूरे आदिवासी समाज का भी अपमान है. यह ऐतिहासिक तथ्य है कि हर सरना स्थल में प्रत्येक तीन साल में पाहन द्वारा बछिया की बलि दी जाती थी.
राम मंदिर निर्माण में सरना स्थल की मिट्टी लगना गौरव की बात : जगलाल पाहन – यह गौरव की बात की सरना स्थल की मिट्टी राम मंदिर के निर्माण में लग रही है. हमारे सनातन भाइयों की लंबे समय से इच्छा थी कि वहां एक भव्य मंदिर बने. हमारे पूर्वज भी महादेव और देवी मां को मानते रहे हैं. आदिकाल से उनकी पूजा करते हैं. हमें सरना की मिट्टी ले जाने से कोई आपत्ति नहीं. भूमि पूजन में हमारे पाहन पुरोहित का शामिल होना अच्छी बात है. इससे हमारी धर्म संस्कृति पर किसी तरह का अंतर नहीं आयेगा. हमारा धर्म और हमारी परंपरा अक्षुण्ण रहेगी. श्रीराम के वनवास के समय जनजाति समाज उनके साथ रहा है. हम यह भी जानते हैं कि झारखंड का आंजन धाम हनुमान की जन्मस्थली है.
मिट्टी उठाने के निर्णय का अधिकार गांव को : भगत – पड़हा सरना प्रार्थना सभा के अध्यक्ष वीरेंद्र भगत का कहना है कि सरना समाज में सामूहिक निर्णय की व्यवस्था है़ कुछ नेता गांव आये और सरना मिट्टी ले जाने लगे़ आदिवासी समाज का विरोध मंदिर निर्माण से नहीं है़ लेकिन किसी की पहचान पर हमला से है़ पाहन, कोटवार, पइनभरा, पंच सभी मिल कर निर्णय लेते है़ं किसी समाज की पौराणिक व सामाजिक व्यवस्था को बदल देने का अधिकार किसी को नहीं है़ कुछ नेताओं ने बिना गांव की मरजी के भादो महीने में सरना स्थल की मिट्टी को ले जाने का काम किया़
करम पूजा से पहले ऐसा करना सरना समाज में अपशगुन माना जाता है़ यह शुभ संकेत नहीं है़ अपने राजनीतिक लाभ के लिए कुछ लोग इतिहास को ही बदल देना चाहते है़ं आदिवासी प्रकृति के पूजक होते है़ं हम भी सूर्य, पेड़-पौधे व जल की पूजा करते है़ं लेकिन विधि-विधान अलग है़ हमारी मान्यता का भी ख्याल रखा जाना चाहिए़ समाज की सहमति के बाद ही कुछ होना चाहिए़
Post by : Pritish Sahay