माननीय प्रधानमंत्री जी, जोहार
भगवान बिरसा मुंडा और सैकड़ों वीर आदिवासी लड़ाकों की पवित्र धरती झारखंड की राजधानी रांची में आपका स्वागत है. आप शतायु हों. हमेशा स्वस्थ रहें. खूब खुश रहें और देश की खुशी के लिए काम करें. इसके लिए अशेष शुभकामनाएं. मैं एक पत्रकार हूँ और फेफड़ों के कैंसर (लंग कैंसर) के अंतिम अर्थात चौथे स्टेज का मरीज भी. कैंसर होने से पहले मैं इसका ‘क’ भी नहीं जानता था, लेकिन पिछले पौने तीन सालों में कैंसर से लड़ते हुए अब मैंने इसका ककहरा सीख लिया है. उसी तजुर्बे के आधार पर आपसे कुछ बातें कहनी हैं. अगर आपने इसे स्वयं पढ़ लिया या आपके अधिकारियों ने इसे आप तक पहुंचा दिया, तो लाखों कैंसर मरीज़ों को जीने का हौसला मिल सकता है.
1. कैंसर से भारत में हर साल लाखों लोग मर जाते हैं. इससे दोगुने लोग इससे जूझते हुए अपने मरने का इंतज़ार कर रहे होते हैं. कुछेक लाख लोग ठीक भी हो जाते हैं, लेकिन वे जीवन भर इसके दोबारा हो जाने की आशंका से ग्रसित रहते हैं. कईयों को यह बीमारी दोबारा हो भी जाती है.
2. अपने देश में कैंसर की स्क्रीनिंग को लेकर आजतक कोई बड़ा अभियान नहीं चलाया गया है. नतीजन, अधिकतर लोगों का कैंसर अंतिम स्टेज में पकड़ में आता है. डॉक्टर कहते हैं कि अगर यह पहले पकड़ में आ जाए, तो ठीक होने की प्रत्याशा ज्यादा होती है. इसलिए पूरे देश में कैंसर स्क्रीनिंग कार्यक्रम चलवा दें. पल्स पोलियो अभियान की तरह या कोविड टीकाकरण की तरह का अभियान.
Also Read: PHOTOS: झारखंड पहुंचे पीएम नरेंद्र मोदी, रांची में हुई पुष्पवर्षा, बोले- आशीर्वाद से अभिभूत हूं
3. कैंसर का बेहतरीन इलाज एम्स और सरकार के परमाणु ऊर्जा आयोग द्वारा फंडेड टाटा मेमोरियल अस्पताल, मुंबई और इसके वाराणसी, गुवाहाटी और मुज़फ़्फ़रपुर जैसे केंद्रों में किया जाता है, लेकिन भारत सरकार ने अपने स्तर पर कैंसर के इलाज के लिए डेडिकेटेड कोई बड़ा अस्पताल नहीं खोला है. इसलिए झारखंड समेत हर राज्य की राजधानी में कैंसर के लिए डेडिकेटेड टीएमएच, मुंबई के स्तर के अस्पतालों की स्थापना की पहल करें. जहाँ कैंसर मरीज अपना या तो नि:शुल्क या फिर सब्सिडाइज्ड दरों पर इलाज करा सकें. टीएमएच, मुंबई का उदाहरण हमारे पास पहले से है. जब टाटा समूह ऐसा कर सकता है, तो फिर भारत की सरकार ऐसा क्यों नहीं कर सकती.
4. कैंसर की दवाइयां काफ़ी महंगी हैं. कुछ प्रोटोकॉल के साल भर का खर्च करोड़ों में है. टारगेटेड थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी की अधिकतर दवाओं का खर्च प्रति माह लाखों में है. आप जानते ही हैं कि भारत की पर कैपिटा नेट नेशनल इनकम (2022-23) सिर्फ़ 98,374 रुपये है. ऐसे में देश का आम आदमी इन दवाओं को कैसे खरीद पायेगा. सरकार से मिलने वाली आर्थिक मदद की भी अपनी सीमाएं हैं. नतीजा यह है कि कैंसर के इलाज में ड्रॉप आउट की संख्या चिंतनीय हालत में पहुंच चुकी है. आप देश भर के अस्पतालों से डेटा मंगवा कर देखिए. आप स्वयं चिंतित हो जायेंगे. इसलिए या तो कैंसर के मुफ्त इलाज के इंतज़ामात कराइए या फिर इसकी क़ीमतों पर नियंत्रण करा दीजिए. ताकि दवा आम मरीज की पहुंच में हो. कीमत ही वह महत्वपूर्ण वजह है, जिसके कारण अपना देश नयी दवाओं के इस्तेमाल के मामले में जी-20 देशों में 18 वें नंबर पर है. आप चाहें तो हम पहले नंबर पर खड़े हो सकते हैं.
5. कैंसर में सही डायग्नोसिस की बड़ी भूमिका है. अधिकतर मरीजों का मॉलिक्यूलर टेस्ट और डीएनए सिक्वेंसिंग ज़रूरी है, लेकिन यह जांच बहुत महंगी है. इसे न तो आयुष्मान योजना कवर करती है और न स्वास्थ्य बीमा की दूसरी योजनाएं. एक आदेश जारी कर सभी तरह की जांच और ओपीडी के खर्च को स्वास्थ्य बीमा के दायरे में ला दें. आपको करोड़ों लोगों की दुआएं मिलेंगी.
6. कैंसर के इलाज में रिसर्च और क्लिनिकल ट्रायल्स बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. दुनिया के दूसरे देशों के मुक़ाबले अपने देश में इसपर होने वाला खर्च काफी कम है. फ़ार्मा कंपनियां भी क्लिनिकल ट्रायल्स के लिए भारत की जगह पश्चिम के देशों को प्राथमिकता देती हैं. आप चाहेंगे तो यह परंपरा टूट सकती है. क्लिनिकल ट्रायल्स और रिसर्च के लिए आर्थिक मदद और कठोर निर्णय की ज़रूरत है. आप चाहेंगे तो यह संभव हो सकता है.
7. अब अंतिम बात. कैंसर को तत्काल अधिसूचित बीमारियों की श्रेणी में डलवा दें. ऐसा करने से आपको सटीक आँकड़े मिलेंगे. और, जब आपके पास सटीक आँकड़े होंगे, तो जाहिर है कि सरकार बेहतरीन निर्णय ले सकेगी.
उम्मीद है आप यह पत्र पढ़ेंगे. इन बातों पर सोचेंगे. अमल करेंगे.
ऐसा हुआ, तो आप न केवल लाखों कैंसर मरीज़ों को जीने का नया हौसला देंगे, बल्कि भारत में तेजी से बढ़ते कैंसर बर्डेन को भी कम कर पायेंगे.
पुन: शुभकामनाएं. जोहार.