रांची : बात 2010 की है. उन दिनों पूर्वी सिंहभूम के डुमरिया, गुड़ाबांधा इलाकों में माओवादियों का बहुत ज्यादा प्रभाव था. नक्सलियों ने 13 फरवरी, 2010 को धालभूमगढ़ के बीडीओ प्रशांत लायक का अपहरण कर लिया था. तब राज्य में शिबू सोरेन की सरकार थी. सरकार और पूरे प्रशासन में चिंता थी, क्योेंकि इससे पहले नक्सलियों ने गिद्धौर बीडीओ का अपहरण कर उनकी हत्या कर दी थी. विशेष शाखा के इंस्पेक्टर फ्रांसिस का भी अपहरण कर उनकी हत्या कर दी गयी थी. नक्सलियों ने घाटशिला जेल में बंद कुछ युवकों को छोड़ने के साथ कुछ अन्य शर्तें भी रखी थीं. राज्य सरकार ने लगभग सभी मांगों को मान लिया था, उसके बावजूद नक्सलियों ने बीडीओ को नहीं छोड़ा था. बीडीओ को ओडिशा-झारखंड सीमा पर स्थित गुड़ा पहाड़ के घने जंगलों में रखा गया था.
बीडीओ को छुड़ाने के लिए पुलिस थी तैनात
झारखंड सरकार ने बीडीओ को छुड़ाने के लिए भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर रखा था. तब पूर्वी सिंहभूम के एसपी नवीन सिंह थे. जब छह दिनों तक नक्सलियों ने बीडीओ को रिहा नहीं किया, तो सरकार पर भारी दबाव पड़ने लगा. अखबारों में रोज खबर छप रही थी. 19 फरवरी को डुमरिया में प्रभात खबर के प्रतिनिधि को किसी के हवाले से यह सूचना आयी कि नक्सली बीडीओ को रिहा करने के लिए तैयार हैं, लेकिन एक शर्त है. प्रभात खबर का कोई वरीय पत्रकार जंगल में आये. वहीं बीडीओ को उन्हें सौंप देंगे. प्रभात खबर के उस प्रतिनिधि ने तुरंत मुझे वह सूचना दी. उन दिनाें मैं प्रभात खबर के जमशेदपुर संस्करण का संपादक था. मैंने बगैर कुछ सोचे कह दिया कि मैं खुद आने को तैयार हूं. मेरे दिमाग में यह बात आयी थी कि अगर हमलोग के जाने से किसी की जान बच सकती है, तो खतरा मोल लिया जाना चाहिए. नक्सलियों ने समय सीमा तय कर दी थी.
तत्कालीन प्रधान संपादक हरिवंश जी के सुझाव के अनुसार जाने के पहले राज्य सरकार से अनुमति लेनी थी. रांची के साथी विजय पाठक ने मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के प्रधान सचिव सुखदेव सिंह को सूचना देकर मुझे जाने के लिए अनुमति मांगी थी. सरकार ने मुझे जाने की अनुमति दे दी. मैं अपने साथी उमाशंकर दुबे, परवेज, धरिश और शिव शंकर के साथ गुड़ा जंगल में गया.
प्रभात खबर के प्रयास की अधिकारियों ने किया आभार प्रकट
सूर्यास्त के कुछ पहले हमलोग उस पहाड़ी पर थे, जहां बुलाया गया था. पूरी पहाड़ी पर सुरक्षाबल काे राेकने के लिए नक्सलियाें ने लैंडमाइंस भी लगाकर रखा था. कुछ देर बाद घातक हथियार से लैस दो नाबालिग महिला नक्सलियों के साथ कमांडर वहां पहुंचा. उसके साथ बीडीओ प्रशांत लायक थे. नक्सलियाें ने जाे वादा किया था, उसे पूरा किया. बीडीओ काे प्रभात खबर की टीम को सौंप दिया. हमलोग के आग्रह पर फोटोग्राफी भी की गयी. इसके बाद नक्सली जंगलों में चले गये. तब तक रात हो चुकी थी. जब हमलोग पहाड़ी से रात में उतर रहे थे, तो पुलिस ने गाड़ी रोकी और बीडीओ को जबरन हमलोगों से छीन लिया. पुलिस अधिकारियों ने यह कहा कि उसे घर तक पुलिस पहुंचायेगी. प्रभात खबर की टीम ने बीडीओ को पुलिस को सौंप दिया. जब प्रभात खबर की टीम लौट रही थी, तो रास्ते में फोन पर प्रशासन और राज्य सरकार के वरीय अधिकारियों ने प्रभात खबर के इस प्रयास के लिए आभार प्रकट किया. प्रभात खबर ने पुलिस के रवैये के प्रति अपना विरोध भी दर्ज कराया था.
प्रभात खबर का यह जोखिम भरा अभियान था. सूचना मिलने के बाद प्रभात खबर की टीम सरकार से अनुमति लेकर गयी थी. अगर बगैर अनुमति के जाती, तो शायद कोई बड़ी घटना घट सकती थी. दूसरे दिन पूरे देश के अखबार और टेलीविजन में इसी खबर की चर्चा थी. प्रभात खबर के इस प्रयास की आज भी चर्चा होती है.
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