Prabhat Khabar 40 Years: जब सूचना के अधिकार के बारे में बताने के लिए चलाया था घूस को घूंसा अभियान

प्रभात खबर ने सूचना के अधिकार का पत्रकारिता में जोरदार प्रयोग किया. इसके लिए अलग से एक संवाददाता की नियुक्ति की गयी थी.

By Anuj Kumar Sinha | August 11, 2024 10:16 AM
an image

रांची : देश में सूचना का अधिकार लागू होने के बाद प्रभात खबर ने इस अधिकार के बारे में लोगों को जागरूक करने और उसका उपयोग करने के लिए खास अभियान चलाया था. अभियान का नाम था-घूस को घूंसा. सूचना का अधिकार कानून 12 अक्तूबर, 2005 को देश भर में लागू हुआ था लेकिन लाेगों को अपने अधिकार के बारे में जानकारी नहीं थी कि कैसे और कहां से सूचना मिलेगी. लोगों को अपने काम करवाने के लिए रिश्वत मांगी जाती थी. इसलिए देश के 50 शहरों में कैंप लगाया जा रहा था. प्रभात खबर ने लोगों को इस कानून के बारे में बताने के लिए झारखंड, बिहार के छह स्थानों पर कैंप लगाया था.

रांची और पटना में हुआ था बड़ा कार्यक्रम

रांची और पटना में बड़ा कार्यक्रम हुआ था. इनके अलावा जमशेदपुर, धनबाद, देवघर और दुमका में भी प्रभात खबर ने कैंप लगाया था. यह कैंप कोई एक दिन का नहीं था, बल्कि एक जुलाई, 2006 से 15 दिनों तक चला था. रांची में इस कैंप में पहले दिन खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी और विपक्ष के नेता सुधीर महतो मौजूद थे. जमशेदपुर में सुनील महतो (सांसद), धनबाद में पीएन सिंह (पूर्व मंत्री), पटना में उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी, देवघर में एसपी सुमन गुप्ता और दुमका में डीसी अजय सिन्हा खुद कैंप में अतिथि के तौर पर मौजूद थे. इन अतिथियों ने भी नागरिकों को जागरूक करने की भूमिका अदा की थी. इस कैंप का मुख्य उद्देश्य सूचनाधिकार कानून के बारे में लोगों को बताना और किसी काम के लिए घूस नहीं देना था. इसके अलावा एक नागरिक को सूचना कैसे मिल सकती है, उसके अधिकार क्या-क्या हैं, यह बताना था. यही काम हुआ भी.

अभियान के लिए चला था 15 दिन कैंप

यह कैंप 15 दिनों तक चला. बड़ी संख्या में हर कैंप में सैकड़ों लोग आते थे. उन्हें बताया गया कि अगर उनका सरकारी काम नहीं हो रहा है तो वे सूचना मांगे, पैसा देकर काम न करायें. इन कैंपोें का बड़ा अच्छा परिणाम निकला. लोग अपनी-अपनी समस्या लेकर आते थे. उनकी खबरें भी छपती थीं. किसी का बिजली बिल का मामला महीनों से लंबित था तो किसी काे जन्म प्रमाण पत्र नहीं मिल रहा था. लोगों ने संबंधित विभाग से आरटीआइ के माध्यम से सूचना मांगना आरंभ कर दिया. जो अधिकारी-कर्मचारी पैसे के लिए फाइल दाब कर बैठे थे, उनके सामने काम करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. इस तरह सैकड़ों लोगों को राहत मिल गयी.

सूचना के अधिकार का पत्रकारिता में किया गया प्रयोग

प्रभात खबर ने सूचना के अधिकार का पत्रकारिता में जोरदार प्रयोग किया. इसके लिए अलग से एक संवाददाता की नियुक्ति की गयी थी. उसका काम ही था अखबार के लिए सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के माध्यम से हर विभाग से जानकारी लेना. उक्त संवाददाता ने अनेक आरटीआइ के दर्जनों आवेदन दिये और एक से एक खबर निकली. बगैर आरटीआइ के ऐसी खबर सरकारी विभागों से बाहर नहीं आ सकती थी. स्पष्ट है कि आरटीआइ के माध्यम से खबर निकाल कर प्रभात खबर ने पत्रकारिता में क्रांति लाने का प्रयास किया.

मामले को टालने के लिए अधिकारी करते थे प्रयास

हालांकि सूचनाधिकार के जरिये कम से कम खबरें निकले, इसके लिए अधिकारी भी प्रयास करते थे. मामले को टालने का प्रयास करते थे. लेकिन प्रभात खबर ने लगातार अखबारों में विज्ञापन चलाया, शहरों में जागरूकता कैंप लगाया और लोगों को बताया कि कैसे बिना घूस दिये आपका काम हो सकता है. अभियान आक्रामक था और यहां तक इस बात का प्रचार किया गया था कि कोई घूस मांगे तो घूंसा मारो. हालांकि यह सिर्फ स्लाेगन था, लोगों को जागरूक करने के लिए. प्रभात खबर व्यवस्था को ठीक करने के लिए हिंसा या मारपीट का सहारा लेने के पक्ष में कभी नहीं रहा है. ऐसे अभियान के जरिये जनहित की पत्रकारिता की और इस अभियान का आम लोगों ने लाभ मिला.

Also Read: Prabhat Khabar 40 Years : आदिवासियों के लिए क्या है प्रभात खबर के मायने, बुद्धिजीवियों ने साझा की यादें

Exit mobile version