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Prabhat Khabar Explainer: बिरसा मुंडा के नेतृत्व में शुरू हुए ‘उलगुलान’ का जानें मायने

बिरसा मुंडा के नेतृत्व में 1899-1900 में शुरू हुआ मुंडा विद्रोह सबसे चर्चित विद्रोह है. इसे मुंडा उलगुलान भी कहा जाता है. आदिवासी-मूलवासियों का आज भी मानना है कि जल, जंगल और जमीन पर उनका ही राज है. बिरसा मुंडा के वंशज भी मानते हैं कि बिरसा के उलगुलान की जरूरत पूरे देश को है.

Prabhat Khabar Explainer: देवघर में बीजेपी प्रदेश कार्यसमिति की दो दिवसीय बैठक में पार्टी नेताओं ने हेमंत सरकार के खिलाफ उलगुलान का ऐलान किया है. वहीं, हेमत सरकार भी विपक्ष के खिलाफ इसकी घोषणा कर चुके हैं. आइए जानते हैं उलगुलान का शाब्दिक अर्थ और इसका असर.

उलगुलान को लेकर आदिवासी कवि हरीराम मीणा ने बिरसा मुंडा पर लिखी कविता

‘मैं केवल देह नहीं

मैं जंगल का पुश्तैनी दावेदार हूं

पुश्तें और उनके दावे मरते नहीं

मैं भी मर नहीं सकता

मुझे कोई भी जंगलों से बेदखल नहीं कर सकता

उलगुलान! उलगुलान!! उलगुलान!!!’

क्या है उलगुलान

बिरसा मुंडा के नेतृत्व में 19 सदी में जनजातीय आंदोलन में से एक है मुंडा विद्रोह. इस विद्रोह में अंग्रेजी सरकार, भारतीय शासकों और जमींदारों के खिलाफ उलगुलान का ऐलान किया गया था यानी इनलोगों के खिलाफ एक बड़ा हलचल पैदा कर इन्हें यहां से खदेड़ना था. इसका शाब्दिक अर्थ महान क्रांति या महाविद्रोह है. जल, जंगल और जमीन को बचाने को लेकर छेड़ा गया उलगुलान आज भी प्रासांगिक है. बिरसा मुंडा के वंशज आज भी मानते हैं कि झारखंड समेत पूरे देश में आज भी बिरसा के उलगुलान की जरूरत है.

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मुंडा उलगुलान विद्रोह सबसे चर्चित विद्रोह

छोटानागपुर में 1899-1900 में बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हुआ मुंडा विद्रोह सबसे अधिक चर्चित विद्रोह था. इसे मुंडा उलगुलान यानी विद्रोह भी कहा जाता है. इसकी शुरुआत जमींदारी व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए हुआ. इस विद्रोह में महिलाओं की भी अहम भूमिका रही.

झारखंड में एक और उलगुलान की जरूरत : हेमंत सोरेन

उलगुलान को लेकर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी कहा था कि बिरसा तेरी लड़ाई अधूरी है एक और उलगुलान जरूरी है. कहा कि जिस तरह से जल, जंगल और जमीन तथा आदिवासी-मूलवासी का हक और अधिकार छिना जा रहा है. ऐसे में बिरसा के उलगुलान की एक बार फिर झारखंड की धरती पर जरूरत है.

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