Prabhat Khabar special: डॉ रामदयाल मुंडा. शिक्षाविद, समीक्षक, आलोचक, लेखक, कुशल प्रशासक, भाषाविद, संस्कृति प्रेमी, गीतकार, बांसुरी वादक और एक महान दूरद्रष्टा. मां-माटी से गहरा जुड़ाव. आदिवासियत, जल, जंगल, जमीन और भाषा-संस्कृति के प्रति अगाध प्रेम. बौद्धिक और सांस्कृतिक आंदोलन के प्रणेता. डॉ रामदयाल मुंडा में न जाने कितने गुण भरे थे. आज इसी महान शख्सियत की 83वीं जयंती है़
शिकागो में पहुंचायी मांदर व नगाड़े की गूंज
डॉ रामदयाल मुंडा 1980 के दशक में शिकागो में रहे़ मिनेसोटा विवि में पढ़ाया. 1987 में सोवियत संघ में आयोजित ‘भारत महोत्सव’ में ‘मुंडा पाइका नृत्य’ दल के साथ भारतीय सांस्कृतिक दल का नेतृत्व किया. 1988 में आदिवासी कार्य दल का राष्ट्रसंघ जेनेवा में नेतृत्व किया. इस दौरान दक्षिण एशियाई लोक कलाकारों और भारतीय छात्रों के साथ प्रदर्शन करने का अवसर मिला. दुनिया भर के रंगमंच पर आदिवासी संस्कृति के गौरव और दर्शन को पहुंचाया़ मिनेसाेटा में मुंडारी में लिखे अपने गीत : सिंगी दोबू सियू कामिया… अयुब नपंग दुमंग दंगोड़ी… (दिनभर हल चलायेंगे, काम करेंगे और रातभर मांदर की थाप होगी) पर विदेशियों को खूब थिरकाया.
कला-संस्कृति और वाद्ययंत्र से था गहरा लगाव
डॉ रामदयाल मुंडा का आदिवासी कला-संस्कृति से गहरा लगाव था़ बेटे गुंजल इकीर मुंडा कहते हैं : पिताजी खाली समय में बांसुरी बजाकर सिर्फ थकान ही नहीं मिटाते थे, बल्कि यही वह समय होता था जब अपनी कल्पना को पंख देते थे. अखड़ा संस्कृति की झलक घर में भी मिलती है. घर में पारंपरिक वाद्ययंत्र का खास स्थान है. उन्होंने आदिवासी भाषाओं को प्रतिष्ठा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. मुंडारी, नागपुरी, पंचपरगनिया, हिंदी और अंग्रेजी में गीत-कविताओं के अलावा गद्य में भी किताबें लिखीं.
पहली बार 2018 में हुआ शोध
डॉ शांति नाग ने पहली बार 2018 में डॉ रामदयाल मुंडा पर शोध किया. डॉ रामदयाल मुंडा : व्यक्तित्व एवं कृतित्व विषय पर अध्ययन कर उनकी जीवन यात्रा को साझा किया.
रामदयाल की जीवन यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव
1980 के दशक में शिकागो में एक छात्र और मिनेसोटा विवि में शिक्षक के रूप में दक्षिण एशियाई लोक कलाकारों और भारतीय छात्रों के साथ प्रदर्शन किया
1981 रांची विवि के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग से जुड़े और उन्हें विभागाध्यक्ष बनाया गया
1983 में ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी कैनबरा में विजिटिंग प्रोफेसर नियुक्त हुए
1985 से 1986 तक रांची विवि के प्रतिकुलपति रहे
1986 से 1988 तक रांची विवि के कुलपति
1987 में सोवियत संघ में हुए भारत महोत्सव में भारतीय सांस्कृतिक दल का नेतृत्व किया
1988 में जेनेवा सम्मेलन में शामिल हुए
1989 में फिलीपिंस, चीन और जापान का दौरा
1990 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति आकलन समिति के सदस्य
1991-1998 में झारखंड पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष
1996 में सिराक्यूज विवि न्यूयॉर्क से जुड़े
1997 में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के सलाहकार समिति के सदस्य बने
1998 में केंद्रीय वित्त मंत्रालय की फाइनेंस कमेटी के सदस्य चुने गये
2007 में संगीत नाटक अकादमी अवार्ड
2010 में पद्मश्री से सम्मानित
मार्च 2010 में झारखंड से राज्यसभा सदस्य के रूप में मनोनीत
1960 के दशक में डॉ मुंडा ने एक छात्र और नर्तक के रूप में संगीतकारों की एक मंडली बनायी
1977-78 में अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन स्टडीज की फेलोशिप हासिल की
Posted By: Rahul Guru