Prabhat Khabar Special: भुवनेश्वर के नयागढ़ की एक हजार महिलाएं 50 साल से बचा रही जंगल, अब मिला वन पट्टा
भुवनेश्वर से करीब 150 किमी दूर है नयागढ़ जिला. यहां के कोदारपल्ली और सिंदुरिया समेत 24 गांव की करीब एक हजार महिलाएं 50 साल यानी 1960-70 से जंगल बचाने के काम में जुटी हैं. इनकी इस मेहनत और सेवा का फल अब मिला है. सरकार की ओर से इन्हें वन पट्टा दिया गया है.
Prabhat Khabar Special: भुवनेश्वर से करीब 150 किमी दूर है नयागढ़ जिला. यहां के कोदारपल्ली और सिंदुरिया समेत 24 गांव की करीब एक हजार महिलाएं 50 साल यानी 1960-70 से जंगल बचाने के काम में जुटी हैं. इस कारण जिला प्रशासन ने गांववालों को 2021 में वन पट्टा (टाइटल) दिया. कुछ निजी और कुछ सामुदायिक पट्टा भी दिया गया है.
वन उत्पादों से कर रही कमाई
इसके बाद अब महिलाएं वन उत्पाद पर अधिकार जमाते हुए काजू, केंदू पत्ता और अन्य उपज से कमाई कर रही हैं. इनसे हुई लाखों की कमाई ने इन्हें आत्मनिर्भर बना दिया है. ग्रामीणों को वसुंधरा नामक संस्था जागरूक करती है. संस्था की मदद से यहां वन सुरक्षा समिति और महिला वन प्रशिक्षण समिति भी बनायी गयी है. तालमेल के लिए मां मणिबाग जंगल सुरक्षा समिति बनायी गयी है.
सात साल तक मिलता रहा आश्वासन
कोदारपल्ली की वन सुरक्षा समिति की शशि प्रधान और रीना प्रधान बताती हैं कि हम लोग 1960 के आसपास से ही जंगल बचाते आ रहे हैं. 2005-06 में वन पट्टा के लिए आवेदन दिया. सात साल तक आश्वासन मिलता रहा. नवंबर 2021 में पट्टा दिया गया. उससे पहले यहां वन विभाग ने काजू का प्लांटेशन कराया था. इसका राजस्व वन विभाग ही लेता था, लेकिन अब उन लोगों ने काजू बेचना शुरू किया है. अब काजू के फल पर उनका कब्जा है. बीते साल दोनों गांव के 22 परिवारों को पांच लाख रुपये राजस्व मिला है. इनका कहना है कि अब वे केंदू के व्यापार पर भी अपना कब्जा चाहती हैं.
पट्टा देने में छत्तीसगढ़ सबसे आगे, झारखंड पीछे
भुवनेश्वर में सेंटर फॉर साइंस (सीएसइ) की कार्यशाला में बताया गया कि जंगल में रहनेवालों को भूमि का पट्टा देने के मामले में छत्तीसगढ़ सबसे आगे है. मध्य प्रदेश में अब तक 5931 वर्ग किमी भूमि का पट्टा दिया गया है. इसी तरह महाराष्ट्र में 11769 तथा 14637 वर्ग किमी भूमि को पट्टा दिया जा चुका है. झारखंड में मात्र 420 वर्ग किमी भूमि पर ही पट्टा दिया जा सका है. सीएसइ की महानिदेशक सुनीता नारायण कहती है कि महिलाएं ही इन जंगलों की ताकत हैं.
नयागढ़ (ओड़िशा) से लौटकर मनोज सिंह