भाजपा पर बरसे सीएम चंपाई सोरेन, चुनावी वादों को बताया जुमला, सरना धर्म कोड को लेकर कही ये बात

झारखंड के सीएम चंपाई सोरेन ने प्रभात संवाद में कहा कि भाजपा ने अब महंगाई और बेरोजगारी जैसे शब्द ही बोलना छोड़ दिया है. भाजपा 2014 और 2019 के चुनावी वादों को भूल गयी है. एक आदमी के नाम पर चुनाव लड़ा जा रहा है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 19, 2024 9:12 AM

Champai Soren EXCLUSIVE Interview|Prabhat Khabar Samvad|झारखंड के सीएम चंपाई सोरेन ने प्रभात खबर के कोकर स्थित कार्यालय में शनिवार को आयोजित प्रभात संवाद कार्यक्रम में केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना की. वर्ष 2014 और 2019 में किये गये चुनावी वादों को जुमला बताया. उन्होंने कहा कि एनडीए ने जो-जो वादे किये थे, उसे पूरा नहीं किया. अब एक बार फिर चुनाव का समय आ गया है. भाजपा बिना मुद्दे के चुनाव में है. भाजपा प्रत्याशियों का भी अपना कोई मुद्दा नहीं है. अपने लोकसभा क्षेत्र के लिए उन्होंने क्या किया, क्या करना है यह नहीं बता रहे हैं. चंपाई सोरेन ने कहा कि लोगों को सोच-समझ कर मतदान करना है.

बीजेपी पर सीएम चंपाई सोरेन ने साधा निशाना
मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने कहा कि देश में आम चुनाव है. यह महत्वपूर्ण समय है. सत्ता में आने के पूर्व भाजपा ने वर्ष 2014 में क्या कहा था? उन्होंने तय किया था कि हम किस रास्ते सत्ता में आयेंगे. वे बड़ा मुद्दा लेकर 2014 में आये थे. गैस सिलिंडर को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे. अच्छे दिन लाने की बात कह कर, रोजगार देने की बात कर भाजपा ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में सत्ता हासिल किया. सत्ता में आने के बाद भाजपा ने अब महंगाई जैसा शब्द ही बोलना छोड़ दिया. देश की राजनीति में पहला ऐसा दल है, जिसके सत्ता में 10 साल तक रहने पर भी महंगाई कभी कम नहीं हुई. बेरोजगारी की बात भी छोड़ दी. भाजपा का यही परिचय है. किस दिशा में ये भारत को लेकर जायेंगे ये चिंतन का समय है. जो बेरोजगारी, महंगाई की बात नहीं करेंगे, वे सामाजिक व्यवस्था संतुलित कैसे करेंगे?

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सरना धर्म कोड को जनगणना कॉलम में शामिल करना जरूरी
सीएम चंपाई सोरेन ने कहा कि झारखंड में आदिवासियों का अस्तित्व बचाना एक बड़ा ज्वलंत मुद्दा है. सरना धर्म कोड को जनगणना कॉलम में शामिल करना आदिवासियों की सुरक्षा और उनको बचाने के लिए जरूरी है. यह प्रदेश आदिवासी बहुल क्षेत्र है, खनिज संपदा से भरा हुआ है. पर यहां के आदिवासी, दलित, मूलवासी, गरीब हैं. आदिवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना जरूरी है.

1932 के आधार पर स्थानीयता को परिभाषित करना ज्वलंत मुद्दा
सीएम चंपाई सोरेन ने कहा कि झारखंड में 1932 के आधार पर स्थानीयता को परिभाषित करना और ओबीसी के आरक्षण को भी 14 की जगह 27 प्रतिशत करना एक ज्वलंत मुद्दा है. इसे विधानसभा से पारित कर राजभवन भेज दिया गया है. उस पर भाजपा के लोगों ने एक शब्द भी बोलने का साहस नहीं किया है. इससे आप समझ सकते हैं कि झारखंड के हित में उनकी क्या सोच है. मुझे पूरा विश्वास है कि इंडिया गठबंधन की केंद्र में सरकार बनी, तो हमारी तीनों मांगें पूरी हो जायेगी. भाजपा ने कभी न तो आदिवासी हित में सोचा है और न ही मूलवासी के हित में. उनके जितने उम्मीदवार यहां खड़े हुए हैं, उनकी अपनी कोई सोच नहीं है. वो लोग बस एक ही आदमी के नाम पर वोट मांग रहे हैं. आप यदि किसी क्षेत्र का नेतृत्व करने जा रहे हैं, तो आपकी क्या सोच है. यह बताना चाहिए. 2014 में इन लोगों ने जितनी घोषणाएं की थी सब जुमला साबित हो गया. कहा था हर साल दो करोड़ युवाओं को नौकरी देंगे, वो झूठ साबित हो गया. कालाधन लायेंगे और सबको 15 लाख देंगे, वो भी झूठ साबित हुआ.

निजीकरण से नौकरी चली जायेगी
सीएम चंपाई ने कहा कि अब वे निजीकरण की बात करते हैं. इससे तो भारत के युवाओं को और नौकरी नहीं मिलेगी. केंद्र की सरकार बस एक दर्जन उद्योगपतियों के लिए काम कर रही है. निजीकरण को बढ़ावा देंगे, तो बच्चों को कभी स्थायी नौकरी नहीं मिलेगी. निजीकरण होने से किसी संस्था में उनको नौकरी मिलेगी. वो संस्था आपको कभी ग्रेच्यूटी नहीं देगी, उस संस्था पर कोई श्रम कानून लागू नहीं होगा और किसी भी समय उसको बैठा भी देगी. निजीकरण में ये असुविधा है और भाजपा उसको बढ़ावा दे रही है. इसलिए 2024 के चुनाव में आवेश में आकर विचार नहीं करना चाहिए. उन्हें सोचना होगा भाजपा 10 साल से देश को किस तरफ ले जा रही है. उससे बेरोजगार युवा-युवती को कितना लाभ मिलेगा ये समझना होगा.

स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी किसानों को आंदोलन करना पड़ा
सीएम चंपाई ने कहा कि भाजपा के पास सिंचाई की भी कोई योजना नहीं है. देश में किसान बड़ा वर्ग है. केंद्र सरकार का किसानों के हित में अभी तक कोई स्पष्ट एजेंडा नहीं है. इसलिए स्वतंत्रता के बाद देश में किसानों का इतना बड़ा आंदोलन नहीं होना चाहिए था, जो डेढ़ वर्ष तक चला. एक-दो किसानों की बात नहीं थी, लाखों किसान धरना पर बैठे थे. हजारों किसानो का बलिदान भी हो गया. भारत एक कृषि प्रधान देश है, उसमें किसान का एजेंडा उनके पास नहीं है. इनके बाद बहुत बड़ा मजदूर वर्ग है. जब आप श्रम कानून ही शिथिल कर देंगे, तो मजदूर का तो सारा हक ही आप छीन लेंगे. उसके बाद छोटे व्यापारियों की भी यही स्थिति होगी. स्वास्थ्य इस मानव जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है. उसमें भी उनका कोई फोकस नहीं है. आयुष्मान कार्ड में निजी अस्पतालों को जोड़ा गया था, अब वो लोग आयुष्मान कार्ड देखते ही इलाज से मना कर देते हैं. कहते हैं हमारा चार सौ-पांच सौ करोड़ बाकी है, हम इलाज नहीं कर सकते. उन्होंने पूरे सिस्टम को अधूरा रख छोड़ा है. इसी तरह पूंजीवादी व्यवस्था को बढ़ावा देंगे, तो यहां पर भारत जैसे 140 करोड़ की आबादी वाली देश का विकास कैसे होगा ?

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