रांची/गुमला : झारखंड के शहरों में सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं, लेकिन गांवों में किसान इसे फेंकने के लिए मजबूर हैं. एक तो मौसम ने किसानों पर कहर बरपाया और उसके बाद कोरोना वायरस के खौफ से देश भर में हुए लॉकडाउन ने उनकी कमर तोड़ दी. किसानों को एक साथ कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. एक तो गाड़ियां नहीं चल रहीं, जिससे वह अपनी सब्जी मंडी तक ले जायें. गाड़ी वाले को ज्यादा किराया देकर मंडी पहुंच भी जायें, तो जरूरी नहीं कि सारी सब्जियां बिक ही जायें या उसका वाजिब मूल्य उन्हें मिल पाये.
दूसरी तरफ, बड़े शहरों में सब्जियों की कीमतें आसमान छू रही हैं. हालांकि, यहां भी खुदरा बाजार में ही कीमतें चढ़ी हुई हैं. लालपुर सब्जी मंडी में इन दिनों लोगों को कुछ सस्ती सब्जियां जरूर मिल रही हैं. लालपुर में टमाटर 10-20 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रही है, तो उसी की कीमत कोकर बाजार में 40 रुपये तक पहुंच जाती है. यदि गली-मुहल्ला की दुकान से यही टमाटर खरीदेंगे, तो उसकी कीमत 50 रुपये हो जाती है.
इसी तरह, गोभी, भिंडी, पत्ता गोभी की कीमतों में भी भारी अंतर हो जाता है. मंडियों तक पहुंच नहीं होने की वजह से रांची जिला के किसान गुमला और लोहरदगा की सब्जी मंडियों में पहुंच रहे हैं. रविवार को चान्हो से मो शमीम छोटे पिकअप वैन में भरकर फूलगोभी बेचने गुमला पहुंचे थे. 10 रुपये किलो की दर से फूलगोभी की उन्होंने बिक्री की. शमीम ने बताया कि यही गोभी वह कुछ दिन पहले तक थोक व्यापारी को 20 से 30 रुपये प्रति किलो की दर से बेचते थे.
शमीम ने कहा कि आस-पड़ोस के जिले ही नहीं, दूसरे राज्य के थोक व्यापारी भी उनके यहां खरीदारी करने आते थे. कोरोना वायरस के संक्रमण के डर से लॉकडाउन की घोषणा की गयी, तो उसके बाद से सब्जियों के भाव नहीं मिल रहे. सब्जियों के खरीदार भी नहीं मिल रहे हैं. इसलिए दाम घटा दिये हैं. शमीम ने कहा कि वाहन नहीं चल रहे हैं. इसलिए दूसरे जिले व राज्य के व्यापारी सब्जी खरीदने नहीं आ रहे. इसलिए कम कीमत पर माल बेचने के लिए मजबूर हैं.
वहीं, गुमला के किसानों का कहना है कि उन पर तो दोहरी मार पड़ी है. पहले मौसम की और अब कोरोना वायरस की. लागत मूल्य भी उन्हें नहीं मिल पा रहा है. यही वजह है कि सब्जियों को खेत में ही छोड़ दिया है. इनका कहना है कि फूलगोभी, बंधागोभी व टमाटर काफी सस्ता बिक रहा है. किसानों ने जो पैसे खेती में लगाये थे, उसकी लागत भी नहीं निकल रही. औने-पौने दाम में सब्जियां बेचनी पड़ रही है.
छोटे-मोटे किसानों पर इसकी मार सबसे ज्यादा पड़ी है, क्योंकि बड़े किसान तो दूर की सब्जी मंडियों में जाकर भी अपना उत्पाद किसी तरह बेच ले रहे हैं, लेकिन छोटे किसानों के हाथ खाली हैं. जमा-पूंजी लगाकर खेती की थी और अब जब फसल तैयार हुई, तो लॉकडाउन ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया.