केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों के सरकारी स्कूलों में तीन बार वाटर बेल बजायी जाती है, ताकि विद्यार्थियों में पानी की कमी न हो. वह स्वस्थ और फिट रहें. क्या बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए झारखंड के स्कूलों में पानी पीने की घंटी नहीं बज सकती. इसी मुद्दे पर राजधानी के विभिन्न स्कूलों के प्राचार्यों से विमर्श किया गया, लेकिन उनमें सहमति नहीं दिखी. कोई वाटर बेल सिस्टम को विद्यार्थियों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण बता रहा है, तो किसी का कहना है कि इससे पढ़ाई बाधित होगी. वहीं स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिस्टम बच्चों के लिए लाभकारी होगा.
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ अनिताभ कुमार ने बताया कि बच्चों को स्कूल में लंच करने का पूरा समय नहीं मिल पाता है. ऐसे में वे पानी कहां से पी सकेंगे. इस कारण बच्चों में कई तरह की परेशानियां देखी जाती हैं. पानी शरीर को हाइड्रेड करता है. इसकी कमी से बीमारी बढ़ सकती है. इसलिए बच्चों को पानी की संतुलित मात्रा मिलना ही चाहिए. स्कूलों में ब्रेक की तरह ही वाटर बेल सिस्टम को लागू करना चाहिए़.
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डायटीशियन अर्पिता मिश्रा ने बताया कि स्कूल में बच्चों को कम से कम 400 एमएल से एक लीटर पानी पीना चाहिए. क्योंकि आजकल बच्चे स्कूल में छह से सात घंटे रहते हैं. साथ ही एक-दो घंटा आने-जाने में लग जाता है. इसलिए 50 प्रतिशत पानी की पूर्ति स्कूल में हो जानी चाहिए़ स्कूल में पढ़ाई, खेलकूद और बहुत सारी चीजें होती हैं. उस वक्त पानी की आवश्यकता शरीर को ज्यादा चाहिए.
जरूरी है कि अभिभावक भी बताये कि पानी कैसे और कब पीना है़ बच्चों को स्कूल में पहली क्लास शुरू होने के पहले थोड़ा पानी पी लेना चाहिए. फिर लंच के कुछ देर पहले, लंच करने के 15 मिनट बाद, खेलने के ब्रेक की शुरुआत में पानी जरूरी है़ इसके बाद भी जरूरत हो, तो बीच-बीच में पानी पीते रहें. बच्चों को यह भी बताना होगा कि जब छुट्टी की घंटी बजे, तो स्कूल से निकलने से पहले पानी जरूर पी लें.
मेरी बेटी नौवीं कक्षा में है, इसलिए वह जरूरत के अनुसार पानी पी लेती है़ वहीं बेटा चौथी क्लास में है, जो कई बार भरी हुई पूरी बोतल या एक-दो घूंट पानी पीकर आ जाता है. घर में बेटे को पानी पीने के लिए कहती रहती हूं, लेकिन स्कूल में कैसे समझाया जाये़ इसके लिए शिक्षक व स्कूल प्रबंधन को ही पहल करनी चाहिए़ यदि वाटर टाइम लागू हो, तो यह बच्चों के स्वास्थ्य के लिए बेहतर होगा.
-नीति नारायण, सहजानंद चौक
स्कूलों में वाटर बेल सिस्टम लागू होना चाहिए. यह नियम अगर शुरू होता है, तो स्वागत योग्य है. इससे विद्यार्थी तय समय में पर्याप्त पानी पी पायेंगे. पानी पीने के बहाने बार-बार क्लास रूम से नहीं निकल पायेंगे. इससे क्लास में अनुशासन भी बना रहेगा.
-दिव्या सिंह, प्रिंसिपल, बाल कृष्णा प्लस टू स्कूल
स्कूल में सभी बच्चे पानी की बोतल लेकर आते हैं. साथ ही स्कूल में अलग से पीने के पानी की भी व्यवस्था है. जब भी बच्चे को प्यास लगती है, तो वे शिक्षक की अनुमति पर पानी पीने जाते हैं. पानी पीने पर कोई पाबंदी नहीं है़ इसलिए अलग से वाटर बेल होने से बच्चों की पढ़ाई बाधित होगी.
-डॉ राम सिंह, प्राचार्य, डीपीएस
जल का सुरक्षित उपभोग भी ससमय जरूरी है़ विद्यालयों में शुद्ध पानी के नियमित उपभोग की आदत विकसित करने के लिए एक शॉर्ट ब्रेक घंटी होनी चाहिए. हालांकि स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या के अनुसार पानी की पर्याप्त सुविधा भी जरूरी है़
-अशोक प्रसाद सिंह, प्रिंसिपल, राजकीयकृत मवि पंडरा
स्कूल में सभी बच्चों को पानी पीने की अनुमति है. यदि अलग से पानी पीने का समय दिया जाये, तो विद्यार्थियों की पढ़ाई बाधित होगी. हमारे में स्कूल में सभी बच्चों के लिए पानी की पर्याप्त व्यवस्था है़ पानी पीने पर कोई कोई पाबंदी नहीं है़ बच्चों को पानी का महत्व भी बताया जाता है.
-समरजीत जाना, प्राचार्य, जेवीएम श्यामली
स्कूल में बच्चों के लिए पर्याप्त पानी बहुत जरूरी है. इसको लेकर मैं अपने बच्चे के लिए स्कूल में एक-दो बार शिकायत भी कर चुकी हूं. क्योंकि बच्चा सुबह से दोपहर तक बाहर रहता है. इसलिए दिनभर में वह पर्याप्त पानी नहीं पी पाता है़ इसका असर बच्चों के स्वास्थ्य पर जरूर पड़ेगा़ यदि दूसरे राज्यों में वाटर बेल की सुविधा है, तो झारखंड के स्कूलों में भी इसे लागू करना चाहिए़
-प्रिया प्रभाकर, अशोक नगर
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पानी पीने से बच्चों को थकान महसूस नहीं होता
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डिहाइड्रेशन की समस्या नहीं होती
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मांसपेशियों में खिंचाव व दर्द से राहत
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शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है
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पाचन शक्ति सही रहती है
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बच्चों के पेट में कीड़े की समस्या दूर होती है
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ब्लड सर्कुलेशन में भी फायदेमंद है
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दिमाग की कोशिकाएं मजबूत होती हैं
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सही मात्रा में पानी पीने से शरीर के विषैले पदार्थ निकल जाते हैं.
रिपोर्ट : पूजा सिंह, रांची