झारखंड की सड़कों पर वाहनों का दबाव इस कदर बढ़ा है कि गाड़ी चलानेवालों के लिए स्पेस मैनेजमेंट जैसे कांसेप्ट से प्रशासन और सरकार को दो-चार होना पड़ रहा है. झारखंड के शहरों में गाड़ियों को चलाने के लिए सड़कों पर जगह कम पड़ रही है. पार्किंग के लिए परेशानी हो रही है. शहरों के अंदर स्थिति बदतर है. इसके विपरीत जिस तरह सड़कों या फ्लाइओवर का निर्माण बढ़ती गाड़ियों के हिसाब से होना चाहिए, वह नहीं हो पाया है. ऐसे में एक्सपर्ट आनेवाले भविष्य को लेकर चिंतित हैं. उनका एक ही सवाल है कि ट्रैफिक का प्रेशर कम हो तो कैसे?
रांची की बात करें, तो 2001 की तुलना में 2022 के 16 नवंबर तक रांची में वाहनों की तादाद में 408 गुना की बढ़ोतरी हुई. लेकिन यहां पर सड़कों और फ्लाइओवर के निर्माण में तुलनात्मक रूप से उतनी वृद्धि नहीं हुई. ऐसे में स्पेस मैनेजमेंट की समस्या प्रशासन, सरकार और शहरी आबादी को परेशान कर रही है. राज्य गठन के बाद 2001 में झारखंड से निबंधित वाहनों की कुल संख्या 25240 थी, जो करीब 264 गुना बढ़कर 14 नवंबर 2022 तक 6669644 हो गयी. वहीं, राज्यों की सड़कों की लंबाई महज चार गुना बढ़ी. वर्ष 2001 में नेशनल हाइवे, स्टेट हाइवे और ग्रामीण सड़क की कुल लंबाई 17996 किमी थी. यह बढ़कर नवंबर 2022 तक 73090 किमी तक ही हो सकी.
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परिवहन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि बड़े शहरों की तुलना में पाकुड़, सरायकेला, चतरा, देवघर, दुमका व पलामू जैसे जिलों में वाहनों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है. इन सबके अलावा नये झारखंड में बिहार से निबंधित वाहन पहले से मौजूद थे. अगर बिहार नंबरवाले वाहनों की संख्या को भी जोड़ दिया जाये, तो वाहनों की संख्या में और बढ़ोतरी हो जायेगी.
परिवहन विभाग के आंकड़ों पर गौर करें, तो हजारीबाग में 294, पलामू में 630, दुमका में 549, जमशेदपुर में 202, चाईबासा में 112, गुमला में 60, लोहरदगा में 293, बोकारो में 320, धनबाद में 322, गिरिडीह में 90, कोडरमा में 251, चतरा में 434, गढ़वा में 335, देवघर में 418, पाकुड़ में 1695, गोड्डा में 219, साहिबगंज में 297, जामताड़ा में 302 और सरायकेला में 1049 गुना वाहनों की संख्या बढ़ी है.
सड़क सुरक्षा से 28 साल से जुड़े एक्टिविस्ट राजेश कुमार दास कहते हैं कि हम सड़क बनाते हैं, लेकिन सड़क किनारे पैदल चलने और साइक्लिंग के लिए कोई जगह देने का प्रावधान ही नहीं होता. पार्किंग की जगह खोजते रहते हैं. वहीं दूसरे विकसित देशों में पार्किंग खत्म की जा रही है. उन्होंने कहा कि नार्वे के शहर ओसलो में हर सप्ताह शुक्रवार और शनिवार को लोग अपनी गाड़ी नहीं चलाते हैं. वहां की सरकार लोगों को दोनों दिन नि:शुल्क वाहन की सुविधा देती है. हमारे यहां ऐसा नहीं है. रांची को केंद्र मानकर जमशेदपुर और पतरातू जैसे सड़क मार्ग के किनारे अगर आप सड़क के निर्माण पर खर्च होनेवाली राशि में से 17 फीसदी पैदल और साइकलिंग पर खर्च करेंगे, तो इसका बड़ा फायदा होगा. एडवेंचर टूरिज्म डेवलप होगा. सड़क पर वाहनों की संख्या में कमी आयेगी. प्रदूषण कम होगा. ऐसा नहीं करने पर झारखंड में अगले पांच साल बाद सड़कों पर वाहन चलाना किसी चुनौती से कम नहीं होगी.
रातू रोड मुख्य चौराहा और नागाबाबा खटाल के बीच किशोरी सिंह यादव चौक है. इस चौक पर ऑटो और मिनीडोर का कब्जा रहता है. यहां दोनों ओर स्टैंड बन गया है. रातू रोड मुख्य चौराहा से किशोरी सिंह यादव चौक तक भी ऑटो का कब्जा रहता है. तीन से चार लाइन में सड़क पर ऑटो लगे रहते हैं. केवल एक लाइन गाड़ियों के आने -जाने के लिए बचती है. यही वजह है कि सुबह 9:00 से रात 8:00 बजे तक या क्षेत्र पूरी तरह जाम रहता है.
पिस्का मोड़ में दो सड़कों की ट्रैफिक एक साथ जमा हो रही है. यही वजह है कि पिस्का मोड़ की ट्रैफिक व्यवस्था हमेशा चरमरायी रहती है. यहां से गाड़ियों का गुजरना मुश्किल हो रहा है. वाहन चालकों को काफी समय तक यहां जाम में फंसना पड़ता है. दरअसल, एनएच-75 यानी कुड़ू रोड और एनएच-23 यानी गुमला रोड की पूरी ट्रैफिक एक साथ आकर पिस्का मोड़ में जमा होती है. पिस्का मोड़ के पास सड़क एनएच-75 और एनएच-23 से भी संकरी है.
लाहकोठी रातू रोड का प्रमुख बाजार है. राज्य गठन से पहले भी यहां जाम लगता था. लोग लाहकोठी से गुजरने से कतराते थे. राज्य गठन के 22 साल बाद भी लाहकोठी की दशा वही है. बल्कि, अब ज्यादा जाम लगने लगा है. लाहकोठी में दिहाड़ी मजदूर सुबह से ही रोजगार की तलाश में खड़े रहते हैं. यहां पर सड़क बहुत पतली है. वहीं, अलग-अलग मोहल्ले की भीड़ भी विभिन्न गलियों से होकर लाहकोठी में निकलती है.
जेल मोड़ से लालपुर चौक तक सर्कुलर रोड का हिस्सा है. शैक्षणिक संस्थान, मॉल व ऑटो-टुकटुक चालकों की मनमानी के कारण यह सड़क हमेशा जाम रहती है. करीब एक किलोमीटर के इस इलाके में जेल मोड़ से लालपुर चौक तक बायीं तरफ 12 व दायीं तरफ आठ कट है. जब वाहनों को बायें से दायें जाना होता है, तो ट्रैफिक पूरी तरह रुक जाती है. लालपुर चौक से वर्द्धमान कंपाउंड जाने वाले रास्ते में इस तरह की समस्या सबसे अधिक है. हरिओम टावर चौक के पास भी इसी तरह की समस्या है.
कांके रोड में सबसे अधिक जाम रिलायंस मार्ट के पास लगता है. यहां रिलायंस मार्ट और उसके पीछे वाले मोहल्ले में जाने के लिए वाहनों के टर्न करते समय जाम लगता है. इस सड़क पर भी हरेक सेकेंड में दो-तीन वाहन गुजरते हैं. थोड़ी देर में ही लंबा जाम लग जाता है. वहीं, रास्ते में पड़ने वाले स्कूलों के कारण भी जाम की समस्या रहती है. कभी-कभी गांधीनगर टर्निंग के पास भी जाम लगता है.
अपर बाजार और इसके आसपास के इलाकों में यातायात की समस्या किसी बड़ी मुसीबत से कम नहीं है. गलियों का बाजार काफी संकरा है. शाम होते ही रंगरेज गली में भीड़ बढ़ जाती है. पैदल निकलना मुश्किल हो जाता है. ईस्ट मार्केट, बेस्ट मार्केट रोड, सोनार गली से लेकर महाबीर चौक तक हर दिन पैदल चलना भी मुश्किल होता है. बकरी बाजार में खाली जगह पर पार्किंग का निर्माण करने का प्रस्ताव था. गाड़ी खड़ी करने की उपयुक्त जगह नहीं होने के चलते लोगों को भारी परेशानी झेलनी पड़ती है.
कांटाटोली : कांटाटोली चौक पर चार सालों से फ्लाइओवर का निर्माण हो रहा है. बहू बाजार से कांटाटोली चौक व कांटाटोली चौक से मंगल टावर तक सर्विस लेन बनाया गया है. लेकिन सर्विस लेन संकरा है़ साथ ही सड़क किनारे ऑटो की कतार लगी रहती है.
लालपुर : लालपुर चौक के पास सड़क से सटाकर ही फल का ठेला सजता है. चौक से डिस्टिलरी पुल तक सड़क के दोनों ओर सब्जी दुकानें सजती हैं. ऐसे में सड़क पर ही वाहन खड़ा कर लोग सब्जी व फल की खरीदारी करते हैं, जिससे जाम लगता है़
बरियातू रोड : बरियातू रोड में रिम्स के पास सड़क को फुटपाथ दुकानदारों ने अपने कब्जे में ले रखा है. दुर्गा मंदिर के समीप ही इन दुकानदारों द्वारा लाइन से दुकानें लगायी जाती हैं. बरियातू थाना के पास भी यही स्थिति है.
रिपोर्ट : प्रणव, रांची