वरीय संवाददाता, रांची़ झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस दीपक रोशन की अदालत ने एक याचिका पर सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए कहा है कि प्रोन्नति किसी कर्मचारी का जन्मसिद्ध अधिकार नहीं है, लेकिन प्रोन्नति के लिए विचार किये जाने का अधिकार तब उत्पन्न होता है, जब जूनियर पर विचार किया जाता है. अदालत ने याचिका को स्वीकार कर लिया. साथ ही राज्य सरकार को निर्देश दिया कि यदि कोई अन्य कानूनी बाधा नहीं है तथा प्रार्थी सहायक अभियंता के पद पर प्रोन्नति के लिए सभी पात्रता मानदंडों को पूरा करते हैं, तो उनके मामले पर विचार किया जाये. अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि आदेश प्राप्त होने के चार सप्ताह के भीतर प्रक्रिया पूरी कर ली जाये. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी दया राम ने याचिका दायर की थी. उन्होंने राज्य सरकार को असिस्टेंट इंजीनियर के पद पर प्रोन्नति के लिए उसके मामले की समीक्षा करने का निर्देश देने की मांग की थी. याचिका में प्रार्थी ने कहा था कि प्रोन्नति के लिए पात्र होने के बावजूद उसकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) की अनुपस्थिति के कारण उसके आवेदन पर विचार नहीं किया गया. इसके चलते विभागीय पदोन्नति समिति को उसके मामले का मूल्यांकन करने से रोक दिया. एसीआर को बनाये रखने की जिम्मेदारी राज्य/विभाग की है, कर्मचारी की नहीं है. उनका पूरा सेवा रिकॉर्ड अनुकरणीय है. इसलिए उनकी पदोन्नति पर उस तिथि से विचार किया जाये, जिस तिथि पर उनके जूनियर को प्रोन्नत किया गया था.
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