Loading election data...

झारखंड : रांची के राजेंद्र मुंडा जरबेरा की खेती कर बन रहे आत्मनिर्भर, मिश्रित खेती पर है जोर

रांची के ओरमांझी स्थित नगराबेड़ा के युवा किसान राजेंद्र मुंडा जरबेरा की खेती कर आत्मनिर्भर बन रहे हैं. करीब 30 डिसमिल जमीन में तीन हजार फूल का पौधा लगाये हैं. कभी नौकरी के लिए परेशान रहने वाले राजेंद्र आज ग्रामीणों को रोजगार दे रहे हैं. साथ ही अन्य किसानों को प्रोत्साहित भी कर रहे हैं.

By Samir Ranjan | July 9, 2023 7:07 PM

Jharkhand News: रांची के ओरमांझी स्थित नगराबेड‍़ा (डेगाडेगी) के युवा किसान राजेंद्र मुंडा जरबेरा फूल की खेती कर आत्मनिर्भर बन रहे हैं. साथ ही मिश्रित खेती पर भी जोर दे रहे हैं. बचपन से ही खेतीबारी के परिवेश में पले-बढ़े राजेंद्र पाॅली हाउस में जरबेरा की खेती कर रहे हैं. कहते हैं कि नौकरी नहीं मिला तो क्या हुआ. खेतीबारी से ही आत्मनिर्भर बन रहे हैं और दूसरों को भी प्रोत्साहित कर रहे हैं.

झारखंड : रांची के राजेंद्र मुंडा जरबेरा की खेती कर बन रहे आत्मनिर्भर, मिश्रित खेती पर है जोर 3

स्नातक पास राजेंद्र पिछले तीन साल कर रहे खेतीबारी

रांची के कोकर स्थित रामलखन सिंह यादव से स्नातक पास राजेंद्र मुंडा पिछले तीन साल से खेतीबारी में पूरी तरह से जुट गये हैं. हालांकि, पारिवारिक परिवेश खेतीबारी होने के कारण बचपन से ही इस ओर रूझान रहा, लेकिन पहले शिक्षित होने को ठाना. स्नातक किया. फिर खेतीबारी की ओर पूरी तरह से जुट गये.

झारखंड : रांची के राजेंद्र मुंडा जरबेरा की खेती कर बन रहे आत्मनिर्भर, मिश्रित खेती पर है जोर 4

पॉली हाउस में कर रहे जरबेरा की खेती

राजेंद्र कहते हैं शुरुआती समय में सब्जी समेत अन्य फलों की खेती की. अच्छी पैदावार और आमदनी होने से इसका विस्तार किया. आज साढ़े चार एकड़ में खेतीबारी कर रहे हैं. इसके बाद फूल की खेती करने को सोचा. काफी सोच-विचार और नफा-नुकसान के बारे में समझकर जरबेरा की खेती करने को सोचा. जिला उद्यान विभाग से संपर्क किया. उद्यान विभाग के अधिकारियों ने काफी मदद की और फूल की खेती को लेकर प्रोत्साहित किया. विभाग की ओर से शत प्रतिशत सब्सिडी में पॉली हाउस लगाया और आज उसमें बखूबी जरबेरा की खेती कर रहे हैं. आज करीब 30 डिसमिल में जरबेरा की खेती कर रहे हैं.

Also Read: झारखंड में कई ऐसे गांव जो बरसात में बन जाते हैं टापू, जानें कारण

उद्यान विभाग का मिला सहयोग

युवा किसान राजेंद्र कहते हैं कि फूल की खेती में विभाग का काफी सहयाेग मिला. विभाग के निर्देश पर शशंका एग्रो की ओर से 30 डिसमिल जमीन में पॉली हाउस निर्माण के साथ-साथ प्लास्टिक मिलचिंग विधि से बेड बनाना, ड्रिप इरिगेशन की व्यवस्था और पौधे लगाने में काफी सहयोग मिला. कहा कि विभाग और शंशका एग्रो के दिशा-निर्देश में बखूबी खेतीबारी कर रहे हैं.

रंग-बिरंगे फूल लोगों को कर रहा आकर्षित

राजेंद्र मुंडा द्वारा तैयार हजारों की संख्या में रंग-बिरंगे जरबेरा फूल लोगों को आकर्षित कर रहा है. कहते हैं कि हर दिन कोई न कोई किसान जरबेरा की खेती करने को लेकर उनसे संपर्क करते हैं. युवा किसान का कहना है कि अब तो फूलों की मांग सालोभर होती है.

सीजन में प्रति फूल 12 रुपये तक होती बिक्री

बाजार के बारे में बात करते हुए युवा किसान कहते हैं कि रांची, सिकिदिरी और गोला बाजार काफी बेहतर है. सीजन में जरबेरा के एक फूल की कीमत 10 से 12 रुपये तक मिल जाती है. वहीं, ऑफ सजीन में दाम कम मिलता है, लेकिन फिर भी प्रति फूल पांच रुपये तक मिल जाता है.

Also Read: झारखंड : गुमला के करीब 800 किसान परेशान, बोले- साहब, धान बेचने का पैसा नहीं मिला, कैसे करें खेती?

पांच ग्रामीणों को दिया रोजगार

तीन भाई-बहन में सबसे छोटे राजेंद्र मुंडा अब खेतीबारी में ही मशगूल हो गये हैं. कहते हैं कि खेतीबारी में अच्छी आमदनी है. जब सतर्क और जानकारी हो, तो आप भी सफल हो सकते हैं. कभी रोजगार के लिए परेशान रहने वाले राजेंद्र आज पांच ग्रामीणों को रोजगार दे रहे हैं. कहते हैं इतने बड़े क्षेत्र में अकेले काम करना मुश्किल है. इस कारण अन्य ग्रामीणों को साथ लेकर खेती करते हैं. इससे उन ग्रामीणों का भी रोजगार मिलता है और उन्हें भी सहयोग.

क्या है जरबेरा

यह बहुवर्षीय तना रहित पौधा है. एस्टेरेसी कुल के इस पौधे में 40 जातियां पायी जाती है. जिसमें सिर्फ जरबेरा जेमीसोनी जाति को ही फूलों के लिए लगाया जाता है. व्यापारिक तौर पर इसमें कई रंगों की फूलों की खेती है. इसमें लाल, गुलाबी, पीला, नारंगी, सफेद आदि मुख्य है.

जरबेरा के लिए कौन-सी है अच्छी जलवायु

जरबेरा के फूल उष्ण और समशीतोष्ण जलवायु और खुली जगहों पर उगाया जा सकता है. लेकिन, शीतोष्ण जलवायु के लिए ग्रीन हाउस बेहतर है. इस कारण इस फूल की खेती को ग्रीन पॉली हाउस में लगाया जाता है. वहीं, मिट्टी का पीएच मान 5.0 से 7.2 रहने पर फूल अधिक खिलते हैं तथा फूल के डंठल लंबे निकलते हैं.

Also Read: झारखंड : घाटशिला में मानसून की दगाबाजी से किसान परेशान, 50 साल में पहली बार सूखा सिंदूरगौरी चेकडैम

Next Article

Exit mobile version