झारखंड की राजधानी रांची में आयोजित ‘किताब उत्सव’ के चौथे दिन डॉ संजय बसु मल्लिक ने झारखंड के गौरव विचारक एवं कथाकार डॉ रामदयाल मुंडा के बारे में विस्तृत चर्चा की. डॉ मल्लिक ने कहा कि डॉ रामदयाल मुंडा झारखंड आंदोलन की बौद्धिक ताकत थे. उन्होंने रामदयाल मुंडा के साथ अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि महान विभूतियों के इर्द-गिर्द रहना सौभाग्य की बात होती है. उन्होंने झारखंड आंदोलन के संघर्ष के वक्त की उस घटना को भी याद किया, जब सरकार ने डॉ रामदयाल मुंडा और डॉ संजय बसु को देखते ही गोली मारने का आदेश जारी कर दिया था. रामदयाल मुंडा के सुपुत्र डॉ गुंजल इकिर मुंडा ने कहा कि वे अपने समय से पहले के व्यक्ति थे. देशभर के आदिवासियों के एक साथ लाना रामदयाल मुंडा का सपना था. उनके अधूरे ख्वाब को पूरा करने की आवश्यकता है. कहा कि रामदयाल मुंडा की लेखनी हमेशा द्विभाषी रही है. वे अलग-अलग जनजातीय समूहों को जोड़ने के लिए हिंदी भाषा का उपयोग किया करते थे.
अमेरिका की नौकरी छोड़ जनजातीय भाषा का किया संरक्षण : रणेंद्र
‘हमारा झारखंड हमारा गौरव’ विषयक सत्र को आदिवासी विमर्श की चिंतक गुंजल इकर मुंडा, मोनिका रानी टूटी, डॉ संजय बसु मल्लिक ने संबोधित किया. डॉ राम दयाल मुंडा जनजातीय शोध कल्याण संस्थान के निदेशक रणेंद्र ने कहा कि रामदयाल मुंडा ने रांची में सरहुल जुलूस निकालना शुरू करके आदिवासी संस्कृति में नवजागरण का संचार किया. उन्होंने इसे आंदोलन का रूप दिया. जो लोग अपनी जड़ों से कट गए थे, उन्हें आदिवासी संस्कृति से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया. रणेंद्र ने कहा कि डॉ मुंडा ने अमेरिका की नौकरी छोड़कर जनजातीय भाषा का संरक्षण किया. वे झारखंड आंदोलन के नेता, बेहतरीन साहित्यकार और आदिवासी संस्कृति के पुनर्जागरण में महती भूमिका निभाने वाले महान व्यक्तित्व थे. वे वाकई में झारखंड के पुरोधा हैं.
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आदिवासी कथा और गीत में हिंसा की कोई जगह नहीं
मोनिका रानी टूटी ने कहा कि रामदयाल मुंडा बहुआयामी व्यक्तित्व वाले असाधारण व्यक्ति थे. उन्होंने अपना सारा जीवन यहां की भाषा, साहित्य, संगीत और पूरे झारखंड को समृद्ध करने के लिए समर्पित कर दिया. ‘आदिवासी कथावाचन परंपरा’ विषय पर केंद्रित सत्र में प्रमुख आदिवासी लेखक-चिंतक अश्विनी कुमार पंकज ने विषय पर सारगर्भित वक्तव्य दिया. कहा कि कहानी कहना आदिवासी समाज की परंपरा रही है. आदिवासी कहानियों में हिंसा को कभी प्रोत्साहन नहीं दिया जाता. आदिवासी कथा और गीत में हिंसा का कोई स्थान नहीं.
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खतरे में है गीत, आदिवासी सामूहिकता मूल्य पर खतरा
‘आदिवासी लोकगीतों की परंपरा और आधुनिक काव्य संवेदना’ विषय पर केंद्रित सत्र में डॉ पार्वती तिर्की, डॉ प्रवीणा खेस, डॉ पारुल ख्रस्तीना खलखो ने विषय पर सारगर्भित वक्तव्य दिया. पार्वती तिर्की ने कहा कि आदिवासी गीत परंपरा की खास विशेषता है कि कोई भी एक व्यक्ति किसी पुरखा गीत पर एकाधिकार का दावा नहीं करता. गीत सामूहिक है, वह मदैत परंपरा की उपज है. गीत गाने वाली आदिवासी व्यवस्था इसलिए गणतांत्रिक है, क्योंकि वह सामूहिक है. वर्तमान समय में गीत पर खतरा है, आदिवासी सामूहिकता मूल्य पर खतरा है.