पद्मश्री रामदयाल मुंडा ने आदिवासियत पर लिखने का सिखाया सबक, आज क्या है स्थिति?
माल्यार्पण के बाद कार्यक्रम में उपस्थित तमाम लोगों को पौधा देकर सम्मानित किया गया, जिसके बाद पुस्तक की लेखिका डॉ. शांति नाग ने किताब के बारे में संक्षिप्त विवरण दिया.
रांची : पद्मश्री रामदयाल मुंडा का आज 84वीं जयंती है. इस अवसर पर झारखंड की राजधानी रांची में डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान की ओर से बुधवार को ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट में एक किताब विमोचन कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर डॉ राम दयाल मुंडा की पत्नी अमिता मुंडा मौजूद रहीं.
इसके अलावा टीआरआई की सहायक निदेशक अमृता प्रियंका एक्का, संत जेवियर्स कॉलेज के प्रध्यापक संतोष किड़ो, गोस्सनर कॉलेज के प्रध्यापक प्रो. मनसिद्ध बड़ाईक, पब्लिक सर्विस एडमिनिसट्रेटिव कोचिंग इंस्टीट्यूट के अनिल कुमार मिश्रा, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विवि के पूर्व कुलपति डॉ सत्यनरायण मुंडा, टीआरआई की उप निदेशक मोनिका रानी टूटी मौजूद रहे.
डॉ. शांति नाग है किताब की लेखिका
किताब का नाम डॉ राम दयाल मुंडा: व्यक्तित्व एवं कृतत्व है. जिसकी लेखिका डॉ. शांति नाग है, कार्यक्रम का शुभारंभ रामदयाल मुंडा की तस्वीर पर माल्यार्पण कर किया गया. सबसे पहले उनकी धर्मपत्नी अमिता मुंडा ने उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण किया.
कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों को किया गया सम्मानित
माल्यार्पण के बाद कार्यक्रम में उपस्थित तमाम अतिथियों को पौधा देकर सम्मानित किया गया, जिसके बाद पुस्तक की लेखिका डॉ. शांति नाग ने किताब के बारे में संक्षिप्त विवरण दिया. जिसके बाद किताब का विमोचन हुआ.
सबसे पहले टीआरआई के निदेशक राणेंद्र कुमार ने किया कार्यक्रम को संबोधित
कार्यक्रम को सबसे पहले राणेंद्र कुमार ने संबोधित किया, उन्होंने कहा कि आदिवासी संस्कृति के बारे में लिखना और उन पर विचार करना डॉ रामदयाल मुंडा ने ही शुरू किया था. वे जनजातीय समुदाय के संस्कृति को लेकर चिंतित रहते थे. उन्होंने न सिर्फ मुंडा भाषा को बढ़ावा को दिया. बल्कि उनके साथ साथ अन्य भाषा भी उनके चिंतन में था. चूंकि किसी भी सांस्कृति का भाषा बहुत अभिन्न अंग होता है. वे विशिष्ठ बुद्धिजीवी थे. उनकी जैसी विशेषताएं बहुत कम लोगों में होती है, इसलिए अगर आज हम उन्हें हजार बार भी नमन करें तब भी कम है.
वहीं, संत जेवियर्स कॉलेज रांची के प्रधानाध्यापक का संतोष किड़ो का कहना था कि उनके द्वारा कही गयी बातें जे नाची से बाची का व्यापक अर्थ है. रामदयाल मुंडा जी की परिकल्पना बहुत बड़ी थी. अगर वे जीवित होते तो भारत और झारखंड के लिए बहुत कुछ करते. खासकर के मणिपुर में जो अभी के हालात हैं वैसे नहीं होता.
वहीं पुस्तक के निर्देशक मंशित बड़ाइक ने कहा कि नाचना गाना आदिवासी की सांस्कृति रही है. रामदयाल मुंडा का संबंध हमेशा नाचगान से रहा है. भाषा में उनका योगदान बहुत बड़ा रहा है. खासकर के हर शिक्षकों की नियुक्ति में भाषा को अनिवार्य विषय के रूप में लागू करवाने में उनका बहुत हाथ है. वहीं उनकी धर्म पत्नी ने भी कहा कि भाषा को रोजगार के रूप में लागू करवाना उनकी बड़ी भूमिका थी.
कौन कौन रहे उपस्थित
इस अवसर पर संत जेवियर्स कॉलेज के प्रधानाध्यापक संतोष किड़ो, प्रो मनसिद्ध बड़ाईक, श्री अनिल कुमार मिश्रा, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पूर्व कुलपति डॉ सत्यनारायण मुंडा, टीआरआई की उप निदेशक मोनिका रानी टूटी, विनोभा भावे विवि के प्रोफसर गणेश मुर्मू, टीआरआई के निदेशक राणेन्द्र, डॉ रतन तिर्की समेत कई लोग उपस्थित थे.