झारखंड के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने प्रभात खबर संवाद कार्यक्रम में कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में नयी पेंशन योजना लायी गयी थी. यह खराब नहीं थी. अच्छी थी. उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि केरल में उसके राजस्व का 90 फीसदी हिस्सा सरकारी कर्मियों के वेतन व पेंशन पर खर्च हो जाता था. इससे राज्य की जनता के लिए कुछ नहीं बचता.
राज्य की आमदनी और खर्च की स्थिति को देखते हुए तत्कालीन केंद्र सरकार ने नयी पेंशन योजना लागू की. झारखंड में लोगों की मांग थी कि पुरानी पेंशन योजना लागू हो. हमलोगों ने चुनाव के वक्त वादा किया था, उसे पूरा किया है. पर इस पेंशन योजना का असर अगले 15 साल के बाद दिखेगा. यह तय है कि बोझ काफी होगा. सरकार को देखना होगा कि कैसे इसको पूरा करें.
श्री उरांव ने वित्तीय स्थिति पर कहा कि अभी हालात बेहतर हैं, लेकिन फिजूलखर्ची नहीं की जा सकती. उनसे जब यह पूछा गया कि केंद्र सरकार का जीएसटी का कितना बकाया है, फंड मिल रहा है कि नही़ं वित्त मंत्री ने कहा : अब राज्य का केंद्र के पास कोई बकाया नहीं है. हम केवल राजनीति करने के लिए केंद्र पर दबाव नहीं बना सकते हैं. उन्होंने कहा कि केंद्र से पर्याप्त फंड मिल रहा है. एक सवाल के जवाब में श्री उरांव ने कहा कि अब आराम करने का मन करता है.
मैं पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिल कर अपनी भावना से उन्हें अवगत करा चुका हूं. स्पष्ट रूप से कहा कि मेरी उम्र 75 वर्ष हो गयी है. अब नयी पीढ़ी को मौका मिलना चाहिए. हालांकि राजनीति में कुछ कहा नहीं जा सकता. मैं चाहता हूं कि अगर मैं चुनाव नहीं लड़ा, तो मेरा बेटा लड़े. दोनों में से एक ही व्यक्ति चुनाव लड़े.
वित्त मंत्री ने कोलकाता कैश कांड को लेकर बड़ा खुलासा किया. एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा : तीन विधायकों के पकड़ में आने के बाद से भय पैदा हुआ है. अब उन्हें मार्केट में जाने की हिम्मत नहीं है. एक बात और बता दें कि इसमें तीन और लोग शामिल थे, जो भागने में सफल हो गये. यह मामला उजागर हो गया है, तो वह भी अब हिम्मत नहीं करेंगे. मेरी जानकारी में है कि जानेवाले सात लोग थे. इतने में दूसरी पार्टी की सरकार नहीं बनती.
श्री उरांव ने कहा कि स्थानीय नीति होनी चाहिए. जहां तक 1932 का सवाल है, मेरा मानना है कि जिसकी जमीन है, उसे प्राथमिकता मिलनी चाहिए. राज्य में अलग-अलग समय जमीन का सर्वे हुआ. कई जिलों में 1908 से लेकर 1934 तक सर्वे चला. जमीन के आधार पर स्थानीयता हो. आजादी से पहले भी यहां लोग आकर बसे, तो क्या उन्हें बाहरी कह देंगे?आज के दिन में बाहर से आकर एससी, एसटी व ओबीसी की जमीन खरीदना गलत है.
कुड़मी को एसटी का दर्जा दिये जाने के लेकर हो रहे आंदोलन पर श्री उरांव ने कहा कि वर्ष 1929 में मुजफ्फरपुर में कुड़मी समुदाय की बैठक हुई थी. इसमें सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया था कि कुड़मी हिंदू हैं. जनेऊ पहनेंगे और आदिवासी नहीं कहे जायेंगे. आज कुड़मी समुदाय अपने को एसटी में शामिल करने की मांग कर रहा है. मैं इसका विरोधी नहीं हूं. यह केंद्र सरकार को तय करना है, इनकी मांग कानूनी तौर पर कितनी उचित है.