13 साल में भी झारखंड के इस अधिकारी पर नहीं हुई कार्यवाही, अब हो गये सेवानिवृत
रांची : वित्तीय अनियमितताओं, गबन व अन्य गड़बड़ियों के आरोपी रहे कृषि विभाग के अधिकारी एडमंड मिंज पर 13 साल में भी विभागीय कार्यवाही शुरू नहीं हो सकी. यह हाल तब है, जब तत्कालीन पलामू उपायुक्त विनय चौबे ने वर्ष 2006 में ही इस अधिकारी को निलंबित करते हुए विभागीय कार्यवाही की अनुशंसा कर दी थी. साथ ही ग्रामीण विकास विभाग को इनके खिलाफ सबूत भी भेजे थे. इधर, सितंबर 2019 में यह अधिकारी सेवानिवृत्त भी हो गया. पढ़िए शकील अख्तर की रिपोर्ट.
रांची : वित्तीय अनियमितताओं, गबन व अन्य गड़बड़ियों के आरोपी रहे कृषि विभाग के अधिकारी एडमंड मिंज पर 13 साल में भी विभागीय कार्यवाही शुरू नहीं हो सकी. यह हाल तब है, जब तत्कालीन पलामू उपायुक्त विनय चौबे ने वर्ष 2006 में ही इस अधिकारी को निलंबित करते हुए विभागीय कार्यवाही की अनुशंसा कर दी थी. साथ ही ग्रामीण विकास विभाग को इनके खिलाफ सबूत भी भेजे थे. इधर, सितंबर 2019 में यह अधिकारी सेवानिवृत्त भी हो गया. पढ़िए शकील अख्तर की रिपोर्ट.
दरअसल, कृषि विभाग के अधिकारी एडमंड मिंज की सेवा ग्रामीण विकास में सौंपने के बाद उसे पांकी का बीडीओ बनाया गया था. वर्ष 2006 में तत्कालीन उपायुक्त ने पांकी प्रखंड कार्यालय का निरीक्षण किया, जिसमें वित्तीय अनियमितता सहित कई गड़बड़ियां मिली थीं. इस पर उपायुक्त ने ग्रामीण विकास विभाग से इस अधिकारी की सेवा कृषि विभाग को वापस करने और विभागीय कार्यवाही चलाने की अनुशंसा की.
उपायुक्त ने इस अधिकारी के खिलाफ आरोप पत्र और पूरक आरोप पत्र के साथ गड़बड़ी के सबूत से जुड़े 412 पेज का दस्तावेज भी भेजा था. इसके बाद तत्कालीन ग्रामीण विकास सचिव ने कृषि विभाग से इस अधिकारी की सेवा वापस लेने, निलंबित करने और आरोपों के मद्देनजर विभागीय कार्यवाही चलाने के लिए पत्र लिखा. ग्रामीण विकास सचिव के पत्र के आलोक में एडमंड मिंज की सेवा वापस कर ली गयी. लेकिन, उसे न तो निलंबित किया गया और न ही उस पर विभागीय कार्यवाही चलायी गयी.
इस अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्यवाही चलाने के लिए कृषि विभाग द्वारा सबूत से जुड़े दस्तावेज ग्रामीण विकास विभाग के बदले उपायुक्त पलामू से मांगे जाते रहे. मामले से जुड़ी फाइल जिन लोगों के पास थी, वे उसे दो साल बाद बड़े अफसरों के पास भेजने के बाद पलामू के उपायुक्त कार्यालय को स्मार पत्र (मेमोरेंडम) भेजते रहे.
इस बीच इस अधिकारी को अनुमंडल कृषि पदाधिकारी के पद पर पदस्थापित भी किया जाता रहा. खूंटी जिले में उसके कार्यकाल के दौरान गड़बड़ी के आरोप लगे. सरकार ने इन आरोपों के मद्देनजर ऑडिट का आदेश दिया. इस आदेश के आलोक में सिर्फ एक वित्तीय वर्ष (2013-14) का ऑडिट हुआ. इसमें इस अधिकारी द्वारा 5.13 करोड़ रुपये के गबन का मामला प्रकाश में आया.
ऑडिट रिपोर्ट में वर्णित तथ्यों के आधार पर योजना सह वित्त विभाग ने भी इस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए लिखा. पर इस मामले में भी कोई कार्रवाई नहीं हुई. वर्ष 2019 में मुख्यमंत्री जनसंवाद में इस अधिकारी के खिलाफ शिकायत की गयी. इसमें यह कहा गया कि संबंधित अधिकारी द्वारा की गयी गड़बड़ी से जुड़ी फाइलें दबा दी गयी हैं. इस शिकायत के आधार पर मुख्यमंत्री सचिवालय ने कृषि विभाग से मामले में की कार्यवाही की जानकारी मांगी. इसके बाद कृषि विभाग सक्रिय हुआ. पुरानी फाइलों की तलाश शुरू हुई. वर्षों तक फाइल दबा कर रखनेवाले प्रशाखा पदाधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया. साथ ही वर्ष 2020 में इस अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्यवाही चलाने के लिए ग्रामीण विकास से उन दस्तावेज की मांग की, जो तत्कालीन उपायुक्त ने गड़बड़ी के सबूत के तौर पर भेजे थे.
Posted By : Guru Swarup Mishra