रांची : राजधानी रांची के विकास का सपना दिखाकर अब तक जनता के अरबों रुपये फूंक दिये गये हैं. कई बार कागज पर अवैज्ञानिक तरीके से भारी-भरकम योजनाएं बना उनको जमीन पर लागू करने की नाकाम कोशिश की गयी है. करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद योजनाओं को अधूरा छोड़ दिया गया है. कई योजनाएं पूरी तरह से फेल साबित हो गयी हैं. विशाल धनराशि खर्च करने के बाद विकास योजनाओं की स्थिति बद से बदतर हो गयी है. शहर के सुंदरीकरण और विकास के लिए सपने दिखाकर तैयार की गयी योजनाओं की पड़ताल करती रिपोर्ट :
2015 में तत्कालीन रघुवर दास सरकार ने नदी को पुनर्जीवित और सुंदर बनाने के लिए 85 करोड़ रुपये खर्च किये थे. हरमू नदी को साबरमती नदी की तरह पुनर्जीवित करने का दावा किया गया था. जुडको द्वारा किये गये कार्य में नदी के किनारे गैबियन लगाने, सीवर नेटवर्क बनाने, आठ सीवर उपचार संयंत्र का निर्माण करने और नदी के किनारों पर ऊंचे रास्ते के निर्माण की योजना बनायी गयी थी. दो साल में काम पूरा कर लिया गया. लेकिन, नदी फिर से जीवित नहीं हुई. नदी ने पूरी तरह से गंदे नाले का रूप धर लिया है. दरअसल, हरमू नदी को पुनर्जीवित करने की योजना अवैज्ञानिक तरीके से पूरी की गयी. नदी तटों को मजबूत करने के नाम पर उन्हें पक्का कर दिया. जलीय पौधों, पेड़ों, झाड़ियों, कीड़ों और जानवरों को मिटाकर नदी की पारिस्थितिकी नष्ट कर दी गयी. सीवर प्लांट काम नहीं करते हैं. स्थानीय निवासियों का कचरा और मल नदी में बहाया जा रहा है. अतिक्रमण की वजह से नदी का स्रोत सूख गया है.
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दिल्ली हाट की तर्ज रांची में कांके डैम के पास अर्बन हाट विकसित करने की योजना बनाकर राज्य सरकार ने 10 करोड़ रुपये फूंक दिये. वर्ष 2016 में जंगल-झाड़ के बीच आधा-अधूरा निर्माण कर छोड़ दिया गया. बाद में इस स्थान पर स्किल डेवलपमेंट सेंटर, गर्ल्स हॉस्टल आदि कई योजनाओं के निर्माण पर भी विचार किया गया. लेकिन, योजना धरातल पर नहीं उतर सकी. अर्बन हाट में स्थानीय छोटे और बड़े व्यवसायियों को बड़ा बाजार उपलब्ध कराने की सोच थी. वहां ट्रेनिंग सेंटर से लेकर व्यावसायिक गतिविधियां संचालित कराने की योजना बनायी गयी थी. अर्बन हाट में देश भर के शिल्पकारों की दुकान लगाने और स्थानीय शिल्पकारों को उत्पाद बेचने के लिए बाजार उपलब्ध कराना था. लेकिन, अचानक सरकार का मन बदला और काम पर ब्रेक लगा दिया गया. वर्तमान सरकार ने अर्बन हाट का निर्माण पूरा करने की योजना बनायी है. हालांकि, इस पर अब तक काम शुरू नहीं किया गया है.
साल 2018 में न्यूयार्क की तर्ज पर रांची के मोरहाबादी को विकसित करने की योजना बनायी गयी. मोरहाबादी मैदान को टाइम स्क्वायर बनाने पर जुडको ने 24 करोड़ रुपये खर्च किये. फिर भी टाइम स्क्वायर की अवधारणा जमीन पर नहीं उतर सकी. अंतत: आधा-अधूरा छोड़ कर ही काम बंद कर दिया गया. टाइम्स स्क्वायर का स्वरूप देने के लिए मोरहाबादी मैदान के एक किनारे ट्रांसफॉर्मर व दो जेनसेट लगाये गये थे. मैदान में कुल 11 और बिरसा मुंडा फुटबॉल स्टेडियम पर तीन एलईडी स्क्रीन लगायी गयी हैं. योजना के तहत 16 लाइट पोल, आठ हाई मास्ट लाइट, तीन किमी लंबा जॉगर्स ट्रैक व चार फाउंटेन भी लगाया जाना था. लेकिन, कोई काम नहीं हो सका.
शहर से बीच से गुजरनेवाले डिस्टिलरी तालाब का अस्तित्व खत्म हो गया है. जल संरक्षण का डंका पीटने वाले नगर निगम ने तालाब को पाटते हुए वहां पार्क निर्माण की योजना बनायी. करीब दो करोड़ रुपये खर्च कर तालाब पर पार्क का निर्माण कर दिया गया. लेकिन, प्राकृतिक रूप से जल-जमाव का क्षेत्र होने से बारिश के मौसम में पार्क जैसे बड़े स्वीमिंग पूल में बदल गया. पहली बारिश में ही पार्क का बड़ा हिस्सा ध्वस्त हो गया. इधर, तालाब की जगह पार्क बनने से डिस्टिलरी के आस-पास क्षेत्रों में जल संकट हो गया. पूरे इलाके का भू-गर्भ जल लगातार नीचे जा रहा है. लालपुर, वर्द्धमान कंपाउंड, पीस रोड, कोकर समेत अन्य क्षेत्रों में नहीं सूखने वाले कुओं का भी दम घुट गया है.