रांची में पुलिसिंग का हाल : दो कमरों में अपग्रेड थाने, जर्जर वाहनों से गश्ती, जरूरत से आधे जवान

बड़े-बड़े थानों में एक या दो गश्त वाहन हैं. इस कारण हर दिन वे कई क्षेत्र में गश्त करने नहीं जाते. नतीजतन कई इलाकों में काफी दिनों तक गश्त भी नहीं होती. आबादी व घर के हिसाब से देखा जाये, तो शहर में 200 लोगों की सुरक्षा पर एक पुलिसकर्मी भी तैनात नहीं हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 20, 2024 3:58 AM

अजय दयाल, रांची: रांची जिले में थाना, ओपी व टीओपी मिलाकर कुल 39 थाने हैं. इनमें कई थानाें को अपग्रेडेड थाना की श्रेणी में रखा गया है. शहर के कई थानों को अपग्रेडेड तो कर दिया गया, लेकिन आज भी हिंदपीढ़ी व डेलीमार्केट थाना दो कमरों में चल रहे हैं. दोनों अपग्रेडेड थाना की श्रेणी में हैं और यहां इंस्पेक्टर स्तर के पदाधिकारी थाना प्रभारी के पद पर हैं. ग्रामीण इलाकों को तो छोड़ दीजिये, राजधानी के थानाें में ही संसाधनों की काफी कमी है. ऐसे में पुलिस आम जनता को कैसे सुरक्षा दे पायेगी, यह बड़ा सवाल है.राजधानी के अधिकतर थानाें में गश्त वाहन, पुलिसकर्मियों, पदाधिकारियों और स्टेशनरी की कमी है. शहर स्थित हर थाने का दायरा औसतन 10 किलोमीटर है.

बड़े-बड़े थानों में एक या दो गश्त वाहन हैं. इस कारण हर दिन वे कई क्षेत्र में गश्त करने नहीं जाते. नतीजतन कई इलाकों में काफी दिनों तक गश्त भी नहीं होती. आबादी व घर के हिसाब से देखा जाये, तो शहर में 200 लोगों की सुरक्षा पर एक पुलिसकर्मी भी तैनात नहीं हैं. अधिकतर थानाें में चालक की कमी है. निजी चालक से काम चलाया जा रहा है. वहीं थाना के पास मौजूद गश्त वाहन जर्जर हो गये हैं. कई वाहन तो 15-20 साल के ऊपर के हैं. अधिकतर थानाें में बैरक की कमी है, पदाधिकारियों के रहने के लिए आवास नहीं हैं. किसी थाना में बैरक है भी, तो वह रहने लायक नहीं है या अंग्रेजों के जमाने का है, जिसकी कभी मरम्मत नहीं करायी गयी.

सनहा दर्ज कराने गये, तो कागज-कार्बन आपको ही लाना होगा

केस नंबर-1 :

राजधानी के थानों की कार्यशैली भी अजब है. थाना में यदि कोई सनहा दर्ज कराने चला गया, तो कागज और कार्बन पीड़ित को ही लाना होगा. फोटो काॅपी करा कर भी पीड़ित को थाना को सौंपना पड़ता है. प्राथमिकी दर्ज की गयी, तो पांच सेट फोटो कॉपी, सनहा दर्ज किया तो आपकी रिसिविंग सहित तीन सेट कॉपी थाना को देनी होगी. पांच सेट फोटो काॅपी कराने के पीछे थाना के मुंशी का तर्क यह होता है कि यह आपका काम है. उसमें एक कॉपी कोर्ट, दूसरी काॅपी एसएसपी के अपराध शाखा कार्यालय, तीसरी कॉपी डीएसपी तथा एक कॉपी इंस्पेक्टर ऑफिस व एक कॉपी थाना के एफआइआर बुक में रहती है. इस संबंध में थाना प्रभारी से डीएसपी बने पुलिस अधिकारी ने बताया कि यह मुंशी की मनमानी है. उनके ऐसा करने से थाना और पुलिस की बदनामी होती है. अब तो सरकार से पर्याप्त मात्रा में स्टेशनरी मिलती है. खत्म होने पर तुरंत स्टेशनरी के सामान मुहैया कराये जाते हैं. 15 से 20 हजार रुपये का प्रोग्रेस फंड भी आता है. थाना में किसी तरह की कोई कमी होने पर उस फंड से तुरंत स्टेशनरी व अन्य सामान जरूरत का सामान खरीदा जा सकता है.

केस दर्ज करने के बाद आरोपी को पकड़ कर लाने की बात भी कहती है पुलिस

केस नंबर- 2: कई बार तो ऐसा भी होता है कि प्राथमिकी दर्ज करने के बाद पुलिस वाले पीड़ित व्यक्ति को आरोपी को पकड़ कर लाने की बात कहते हैं. ऐसा ही एक मामला कुछ दिन पहले लालपुर थाना में आया था. एक ई-रिक्शा चालक को चाकू मारकर कुछ युवकों ने उससे रुपये छीन लिये. घायल चालक जब लालपुर थाना पहुंचा, तो पहले उसकी प्राथमिकी दर्ज नहीं की गयी. सिटी एसपी के हस्तक्षेप के बाद प्राथमिकी दर्ज हुई. लेकिन, प्राथमिकी दर्ज करने के बाद कहा गया कि आरोपी को आप लोग ही पकड़ कर लाइये. जब पीड़ित ने आरोपी को पकड़ लिया, तो लालपुर थाना प्रभारी ने आपसी विवाद होने की बात कह कर आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया.

Next Article

Exit mobile version