राजीव पांडेय, रांची.
रिम्स के डॉक्टर माननीयों (सांसद, मंत्री व विधायक) और वीआइपी की पैरवी से परेशान हैं. ऐसे में बिना पैरवी वाले मरीजों को दिक्कत होती है. सूत्र बताते हैं कि रिम्स के महत्वपूर्ण वार्डों में भर्ती हर तीन में एक मरीज माननीय और वीआइपी की पैरवी वाला होता है. क्रिटिकल केयर की बात करें, तो यहां अक्सर 50 में 30 बेड पैरवी वाले मरीजों से भरे रहते हैं. माननीयों ने अपने एक-एक प्रतिनिधि रिम्स में तैनात कर रखा है. ये प्रतिनिधि मरीजों को परामर्श दिलाने से लेकर भर्ती कराने तक में पैरवी करते हैं.अचानक वेंटिलेटर और ऑक्सीजन बेड की मांग से होती है परेशानी
डॉक्टरों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि माननीय और वीआइपी का नाम सुनकर उनकी सांस फूलने लगती है. परेशानी तब होती है, जब वेंटिलेटर और ऑक्सीजन बेड की मांग अचानक होने लगती है. उनके सामने असमंजस की स्थिति होती है कि किस मरीज को भर्ती लिया जाये और किसको न कहा जाये. ऐसे में डॉक्टर और कर्मचारियों की सारी ऊर्जा उसी व्यवस्था में लग जाती है.
निजी अस्पतालों में वेंटिलेटर बेड 45 हजार में, रिम्स में नि:शुल्क
जानकारों का कहना है कि निजी अस्पतालों में वेंटिलेटर बेड के लिए प्रतिदिन 45000 से 50000 रुपये लगते हैं. वहीं, ऑक्सीजन बेड के लिए 15000 से 20000 रुपये देने पड़ते हैं. जबकि, रिम्स में मरीजों को वेंटिलेटर बेड का कोई शुल्क नहीं जमा करना होता है. पहले मरीज निजी अस्पताल में भर्ती होता है, लेकिन तीन से चार दिनों में जैसे ही पैसा खत्म हो जाता है, तो परिजन रिम्स में भर्ती कराने के लिए माननीय और वीआइपी से पैरवी कराने लगते हैं.बिना सूचना के पहुंचते जाते हैं, फिर बेड के लिए कराते हैं पैरवी
रिम्स की सेंट्रल इमरजेंसी, ट्रॉमा सेंटर, कार्डियोलॉजी आइसीयू, न्यूरो सर्जरी सहित कई महत्वपूर्ण वार्डों में मरीज बिना सूचना के चले आते हैं. फिर माननीयों से बेड दिलाने की गुहार लगाने लगते हैं. ऐसे में डॉक्टरों की परेशानी बढ़ जाती है.
वर्जन
माननीयों की पैरवी का अनुपालन हो और उनका सम्मान कम नहीं हो, इसका ख्याल रखा जाता है. वहीं, इस दौरान सामान्य मरीजों की सेवाएं भी प्रभावित नहीं हो, इसका भी ध्यान रखा जाता है.
डॉ राजीव रंजन, पीआरओ, रिम्सB
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