रांची : रांची में स्वर्णरेखा पेयजलापूर्ति योजना अंतर्गत आनेवाले वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से आपूर्ति किया जानेवाला जल सेहत को प्रभावित कर रहा है. आइआइटी आइएसएम के एनवायरनमेंट साइंस विभाग के शोध में यह तथ्य सामने आया है. इसमें बताया गया है कि बड़ी आबादी ऐसा पानी पीने को विवश है, जिससे गंभीर बीमारियां हो सकती हैं.
धनबाद में भी इसी तरह की पानी की आपूर्ति दो सबसे बड़े वाटर ट्रीटमेंट प्लांट भेलाटांड़ और जामाडोबा से हो रही है. पश्चिम बंगाल में इंदिरा गांधी वाटर ट्रीटमेंट प्लांट और आसनसोल-दुर्गापुर पेयजल योजना अंतर्गत आनेवाले वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से हो रही जलापूर्ति का भी यही हाल है. यह रिसर्च आइआइटी आइएसएम के एनवायरनमेंट इंजीनियरिंग विभाग के शिक्षक प्रो एसके गुप्ता ने किया है. प्रो गुप्ता ने वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में पानी को साफ करने के लिए अपनाये जा रहे क्लोरोनाइजेशन की प्रक्रिया का पेयजल पर पड़ने वाले प्रभाव पर शोध किया है.
प्रो एसके गुप्ता ने बताया कि उनके रिसर्च में यह बात सामने आयी है कि पानी को साफ करने के लिए क्लोरीन का उपयोग किया जाता है. इससे पानी में कार्सिनोजेनिक प्रभाव होता है, क्योंकि पानी के क्लोरोनाइजेशन से ट्राइएलोमीथेन्स का निर्माण होता है. यह पानी में लंबे समय तक रहता है. इसके संपर्क में आने से मनुष्यों पर कार्सिनोजेनिक प्रभाव पड़ सकता है.
इससे कैंसर जैसी घातक बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है. साथ ही महिलाओं में गर्भपात और कम वजन के बच्चे पैदा होने का भी खतरा बढ़ जाता है. प्रो एसके गुप्ता ने बताया कि शोध में धनबाद, रांची और पश्चिम बंगाल के जिन वाटर ट्रीटमेंट प्लांट को शामिल किया गया है, वहां के पानी में ट्राइएलोमीथेन्स की मात्रा तय मानक 200 पीपीबी से काफी अधिक पायी गयी है. यह बेहद खरतनाक है. प्रो गुप्ता बताते हैं कि क्लोरोनाइजेशन के इसी नकारात्मक गुण के कारण पूरी दुनिया में पानी को साफ करने के लिए अलग तकनीक पर शोध किया जा रहा है. आइआइटी आइएसएम में इस पर शोध चल रहा है. इस शोध कार्य का वह खुद नेतृत्व कर रहे हैं.
Posted By: Sameer Oraon