मोरहाबादी के रतन हाइट्स मामले में झारखंड उच्च न्यायालय के फैसले ने बिल्डरों की वादाखिलाफी झेल रहे फ्लैट मालिकों को उम्मीद की लौ दिखायी है. घर का सपना पूरा करने के लिए लोग जीवन भर की पूंजी लगा देते हैं. पर कम ही लोगों को बिल्डरों द्वारा दिखाये गये सपनों के महल में रहने का सुख मिलता है. बड़ी संख्या में ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जहां बिल्डर की कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर है. बिल्डरों द्वारा अपार्टमेंट में ओपेन स्पेस में निर्माण, पार्किंग या छत पर कब्जा और पूर्व घोषित सुविधाएं नहीं देना जैसी वादाखिलाफी आम है. प्रभात खबर ने ऐसे ही बिल्डरों की कहानी शुरू कर रहा है. आज पढ़ें रणधीर टावर की कहानी.
रातू रोड में अर्श रेसीडेंसी के बगल में नौ मंजिला रणधीर टावर बना हुआ है. जब यहां अपार्टमेंट बन रहा था, तब बिल्डर ने लोगों को बड़े-बड़े सपने दिखाये. लोगों को बताया गया कि यहां पार्किंग, ओपेन स्पेस से लेकर वह सारी सुविधाएं दी जायेंगी. जो हर किसी का सपना होता है. बिल्डर के इस झांसे में आकर लोग फ्लैट खरीद कर शिफ्ट भी हो गये, लेकिन लोगों का सपना तब टूटने लगा, जब बिल्डर ने बेसमेंट व ग्राउंड फ्लोर (पार्किंग एरिया) में फ्लैट बना दिया. इतना ही नहीं, छत का जो हिस्सा कॉमन एरिया के रूप में दर्शाया गया था, वहां पर भी 40 प्रतिशत एरिया में फ्लैट का निर्माण कर दिया.
बिल्डर की मनमानी के खिलाफ रणधीर टावर के फ्लैट मालिकों की शिकायतों को अफसरों ने लगातार अनसुना किया. फ्लैट मालिकों ने नगर निगम व रेरा में शिकायत दर्ज करायी थी. नगर निगम ने बिल्डर के खिलाफ केस भी दर्ज कराया, कोई कार्रवाई नहीं की. नगर निगम में चल रहे अवैध निर्माण के केस के बीच में बिल्डर ने रिवाइज्ड नक्शा का आवेदन डाला और वह पास भी हो गया. खास बात यह है कि रिवाइज्ड नक्शा की स्वीकृति देनेवाले अफसरों में से एक के न्यायालय में ही मामला चल रहा था.
बिल्डर की मनमानी का आलम यह है कि उसने बेसमेंट में जो पैनल लगाया, वह बरसात के दिनों में बारिश में डूब जाता है. वहीं, अपार्टमेंट का मुख्य दरवाजा नहीं लगाया गया है. नतीजन, अपार्टमेंट 24 घंटे सभी के लिए खुला रहता है. इससे यहां रहनेवाले लोग खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं.