सिलीगुड़ी में खतियान के लिए आंदोलन कर रहे चाय बागान के आदिवासी.

सिलीगुड़ी में लगभग सौ साल पहले झारखंड और आसपास के क्षेत्रों से गये आदिवासी अब जमीन पर मालिकाना हक की मांग को लेकर आंदोलन पर उतार आये हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | June 3, 2024 12:16 AM

रांची. सिलीगुड़ी में लगभग सौ साल पहले झारखंड और आसपास के क्षेत्रों से गये आदिवासी अब जमीन पर मालिकाना हक की मांग को लेकर आंदोलन पर उतार आये हैं. इन टी ट्राइब्स का कहना है कि चाय बगानों को बनाने और बसाने में उनकी कई पीढ़ियां लगी हैं. क्षेत्र के विकास में उनका भी योगदान है, इसलिए उन्हें भी जमीन पर मालिकाना लक (खतियान) मिलना चाहिए. अभी हाल ही में रांची से सिलीगुड़ी गये सामाजिक कार्यकर्ता प्रभाकर तिर्की और रतन तिर्की ने ह्यूमन लाइफ डेवलपमेंट एंड रिसर्च सेंटर, सिलीगुड़ी द्वारा आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लिया. इसमें बड़ी संख्या में चाय बागान में काम करनेवाले आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधि भी मौजूद थे. इस मौके पर टी ट्राइब्स ने एक स्वर में कहा कि बंगाल सरकार हमें हमारी जमीन पर मालिकाना हक दे. उन्होंने कहा कि हमारे पुरखों ने 150 साल पहले यहां आकर चाय बागान बनाया और सरकार की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभायी है. लेकिन इतने सालों बाद भी हमें जमीन पर मालिकाना हक नहीं दिया गया है. हमारी कई पीढ़ियों ने बंगाल और केंद्र सरकार की अर्थव्यवस्था को बढ़ाया है. इस अवसर पर प्रभाकर तिर्की और रतन तिर्की ने कहा कि जमीन का दस्तावेज जरूरी है. बंगाल सरकार आदिवासियों के हित में सिर्फ आर्थिक सहायता कर रही है. लेकिन संस्कृति, परंपरा, इतिहास, भाषा, रहन-सहन और पारंपरिक व्यवस्था को खत्म करना चाहती है. प्रभाकर तिर्की ने कहा कि हमारी आदिवासी पहचान और अधिकारों की व्याख्या संविधान में की गयी है. जिसकी रक्षा करना हर सरकार का कर्तव्य बनता है. इसलिए चाय बगान के आदिवासियों की जमीनी पहचान को सरकार खतियान देकर बचाये.

चाय बागानों में आदिवासियों का शोषण जारी

इस मौके पर रतन तिर्की ने कहा कि सिलीगुड़ी, जलपाईगुड़ी और असम के चाय बागानों में लाखों आदिवासियों का शोषण किया जा रहा है. इस मामले पर सरकार मौन है. उन्होंने कहा कि अब पूरे चाय बागानों में रहनेवाले आदिवासियों का सर्वे कर रिपोर्ट तैयार कर सरकार को सौंपी जायेगी, ताकि जमीन पर खतियानी अधिकार मिल सके. बताया गया कि आगामी 21 और 22 जून को पुन: सिलीगुड़ी में खतियान की मांग को लेकर असम, जलपाइगुड़ी, दार्जिलिंग और नेपाल के आदिवासियों के प्रतिनिधि जुटेंगे और संवैधानिक तरीके से सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति बनायेंगे.

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