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जगन्नाथ रथ यात्रा : सैकड़ों भक्तों ने खिंची रस्सी, रथ पर सवार होकर मुख्य मंदिर वापस लौटे भगवान जगन्नाथ, दुकानदारों हुए निराश

रांची के धुर्वा में प्रभु जगन्नाथ अपने भाई और बहन के साथ मौसीघर से वापस मुख्य मंदिर लौट आए हैं. इस दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालु प्रभु के रथ की खींचते हुए नजर आए.

भगवान जगन्नाथ, भाई बलराम व बहन सुभद्रा बुधवार को रथ पर सवार होकर मौसीबाड़ी से अपने धाम यानी जगन्नाथपुर मुख्य मंदिर लौट आएं. नौ दिनों तक मौसीबाड़ी में विश्राम के बाद दसवें दिन भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ रथ पर आरूढ़ होकर मुख्य मंदिर लौट आएं. रथ मेले में लोगों ने जमकर खरीदारी की. महिलाओं ने घरेलू सामान खरीदा और बच्चों संग झूला का आनंद लिया.

भक्तों ने जयकारे लगाकर खींचा रथ

बुधवार की दोपहर चार बजे सैकड़ों भक्त भगवान जगन्नाथ समेत सभी विग्रहों को रथ पर आरूढ़ कर रस्सी से खींच मुख्य मंदिर तक लाए. वहीं, इस दौरान प्रशासनिक खेमा भी विधि व्यवस्था की मजबूती में तैनात नजर आया. जब भगवान जगन्नाथ अपने रथ पर सवार होकर मुख्य मंदिर की ओर रवाना हो रहे थे तो उस वक्त सिर्फ उनके नाम का जयकारा ही लगाया जा रहा था.

भक्तों में जबरदस्त उत्साह

हजारों भक्तों की भीड़ भगवान जगन्नाथ की मुख्य मंदिर वापसी के दौरान उनकी एक झलक पाने को पूरी तरह से बेताब दिखें. वहीं, दूसरी तरफ भगवान जगन्नाथ के रथ की रस्सी थामें श्रद्धालु उनके अप्रतिम श्रृंगार को देखते थक नहीं रहे थें. रथ मेला में मंगलवार को लोगों ने जमकर खरीदारी की. महिलाओं ने घरेलू सामान खरीदा और बच्चों संग झूला का आनंद लिया. वहीं रुक-रुक कर हो रही बारिश के कारण लोगों का आनंद थोड़ा फीका रहा.

दुकानदारों की रंगत हुई फीकी

दूसरी तरफ इस बार दुकानदारों के लिए मेले की रंगत फीकी ही रही. दरअसल, उनसे दुकान लगाने के लिए गए ज्यादा पैसे लिए गए थे. दुकानदारों के चेहरे पर 10 दिनों की मायूसी एक साथ देखने को मिल रही थी. इस मेले के लिए 1 करोड़ 92 लाख रुपए में टेंडर हुआ था. यह राशी पिछले साल की तुलना में ढाई गुणा से भी अधिक था. पिछले साल मेला लगाने के लिए टेंडर प्रक्रिया से ही इसका ठेका दिया गया था. जिसमें आरएस इंटरप्राइजेज ने 75 लाख की सबसे ऊंची बोली लगाकर टेंडर लिया था.

पुरी की तर्ज पर रांची में भी निकाली जाती है रथ यात्रा

रांची में पुरी की तर्ज पर रथ यात्रा निकाला जाता है जो कि लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र होता है. मेला में तरह-तरह की दुकानें लगाई जाती हैं. राज्य के विभिन्न जिलों और दूसरे राज्यों से कारोबारी रांची पहुंचते हैं और मेले में अपनी दुकानें लगाते हैं. मेले में खिलौने से लेकर गृह सज्जा और हर तरह के जरूरत के सामानों की दुकानें लगाई जाती हैं. कहा जाए तो मेले में पूरी तरह झारखंडी रंगत देखने को मिलती है. यही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है.

दुकानदारों को उठाना पड़ा भारी नुकसान, बताई अपनी पीड़ा

चार एकड़ में फैला परिसर जो हर वर्ष सैकड़ों लोगों के लिए उम्मीदों का मेला हुआ करता था, इस बार दुकान की उंची किमतों ने सभी को निराश किया. बंगाल से खिलौने की दुकान लगा रहे श्याम मुखर्जी कहते हैं कि वह पिछले 23 सालों से इसी मेले में आ रहे हैं. लेकिन कभी इतना नुकसान नहीं झेलना पड़ा था. 2 हजार प्रति स्कावयर फिट के हिसाब से दुकान के लिए ही 10 दिनों में हमें 24 हजार देने पड़ गए. लेकिन कोई फायदा नहीं हो सका.

24 सालों में उठाना पड़ा इतना भारी नुकसान

वहीं, मंदिर के सामने भुट्टा बेच रहे राहू साहू कहते हैं कि पूरी जिंदगी इसी मंदिर के बगल में प्रसाद की दुकान लगा का बिता दिया. जब बारी कमाई करने की आई तो छोटी दुकान के लिए 10 हजार मांगने लगे. मेरी ही दुकान पर अब कोई और सामान बेच रहा है. मैं अब सड़क पर सामान बेच रहा हूं. बंगाल से ही मिठाई की दुकान लगा रहे राम दयाल कहते हैं कि इस बार किसी तरह बस दुकान चली है. ज्यादा भाड़ा होने के कारण 24 सालों में सबसे ज्यादा नुकसान इस बार मेले में झेलना पड़ा है. आज मेले का आखिरी दिन है, उम्मीद है कि भगवान जगन्नाथ की कृपा से आज कुछ कमाल हो पाए.

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