कोयला ट्रांसपोर्टरों और डीओ होल्डरों से होती थी वसूली, पुलिस से पत्रकारों तक को जाता था हिस्सा
रांची: एनआइए ने चतरा में टेरर फंडिंग केस को लेकर न्यायालय को केस डायरी सौंप दी है.
चतरा टेरर फंडिंग केस: एनआइए ने न्यायालय को सौंपी केस डायरी खुल रही परत दर परत टीपीसी के संरक्षण में ‘शांति सह संचालन समिति’ के जरिये की जाती थी वसूली – ट्रांसपोर्टरों व डीओ होल्डरों से प्रति मिट्रिक टन 254 रुपये वसूल करती थी समिति – एनआइए ने इस केस में प्रदीप वर्मा उर्फ प्रदीप राम की भूमिका का भी किया खुलासा अमन तिवारी, रांची. एनआइए ने चतरा में टेरर फंडिंग केस को लेकर न्यायालय को केस डायरी सौंप दी है. इस रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि टीपीसी के संरक्षण में ‘शांति सह संचालन समिति’ के जरिये कोयला ट्रांसपोर्टरों और डीओ होल्डर से प्रति मीट्रिक टन 254 रुपये वसूला जाता था. वहीं, वसूले गये रुपयों में से टीपीसी के अलावा मजदूर, लोडर, ग्रामीणों, सीसीएल, स्थानीय पुलिस, प्रदूषण/वन विभाग और मीडिया के लोगों को भी तय हिस्सा मिलता था. एनआइए की ओर से न्यायालय में सौंपी गयी केस डायरी में प्रदीप वर्मा उर्फ प्रदीप राम की भूमिका का भी खुलासा किया गया है. बताया गया है कि प्रदीप वर्मा मगध-आम्रपाली कोल माइंस इलाके में चल रही ‘शांति सह संचालन समिति’ का सदस्य था. उसका संपर्क उग्रवादी संगठन टीपीसी के शीर्ष उग्रवादियों से भी था. वह उग्रवादियों के लिए ट्रांसपोर्टर और ठेकेदार से लेवी वसूलता था. ट्रांसपोर्टर और डीओ होल्डरों से तय राशि की वसूली भी इसी के जिम्मे थी. उसके पास से पूर्व में बरामद 57 लाख 57 हजार 710 रुपये लेवी में वसूले गये थे. लेवी का उपयोग टीपीसी का विस्तार करने, संगठन को मजबूत बनाने और संपत्ति अर्जित करने में किया जाता था. मुनेश गंझू के नाम पर प्रदीप राम ने 1.57 लाख रुपये का चेक भी जारी किया था. ऐसे अस्तित्व में आयी ‘शांति सह संचालन समिति’ एनआइए ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि वर्ष 2012 में आम्रपाली कोल माइंस को शुरू किया जाना था. तब प्रभावित गांव के लोग सीसीएल के अधिकारियों से संपर्क करने लगे.
उनकी मांग थी कि कोल माइंस परियोजना के लिए जिन परिवारों की जमीन ली गयी है, उनके एक-एक सदस्य को नौकरी और जमीन के एवज में मुआवजा मिले. लेकिन ग्रामीणों की मांग पूरी किये बिना ही कोयला उत्खनन शुरू कर दिया गया. इसे लेकर ग्रामीणों ने विरोध करना शुरू कर दिया. इस पर कोयला उत्खनन कर रही कंपनी ने उग्रवादी संगठन टीपीसी से संपर्क किया. इसके बाद टीपीसी के उग्रवादियों ने प्रत्येक पांच गांव के ग्रामीणों को मिलाकर सात सदस्यीय एक समिति गठित की. इस समिति में टीपीसी ने अपने लोगों को भी शामिल किया था. बाद में यही समिति ट्रांसपोर्टर और डीओ होल्डरों से 254 रुपये प्रति मीट्रिक टन के रूप में लेवी वसूलने लगी. लेवी के 254 रुपये में से किसे कितना मिलता था ::: मजदूर : 40 रुपये लोडर : 30 रुपये वोलेंटियर : 30 रुपये ग्रामीण जिन्हें सीसीएल में जॉब नहीं मिली : 28 रुपये टीपीसी : 40 रुपये सीसीएल : 39 रुपये स्थानीय पुलिस व थानेदार : 18 रुपये प्रदूषण/वन विभाग : 3 रुपये मीडिया/प्रेस : 2 रुपये एरिया इंचार्ज : 4 रुपये दुर्घटना केस को मैनेज करने के लिए : 5 रुपये जिनकी जमीन से ट्रांसपोर्टिंग होती थी : 8 रुपये अन्य खर्चे : 2 रुपये