Republic Day 2025: संविधान निर्माण में झारखंड के 9 विभूतियों का रहा था योगदान, जानें उनके संघर्ष की कहानी

Republic Day 2025: संविधान के निर्माण में 9 विभूतियों का बड़ा योगदान था. जब संविधान सभा का गठन हुआ, तब इसमें 38 सदस्य बिहार से थे.

By Sameer Oraon | January 26, 2025 1:30 PM

रांची, आदित्य राज नीरद: भारतीय संविधान के निर्माण और इसे अंगीकार किये जाने की यह 75वीं सालगिरह है. हम सभी भारतीयों के लिए गौरव का विषय है कि हम एक ऐसे गणतांत्रिक राष्ट्र के नागरिक हैं, जिसका लिखित संविधान दुनिया के लिए एक मिसाल है. झारखंड के संदर्भ में बात करें, तो यह हमारे लिए और भी गौरव का विषय है कि इसके निर्माण में यहां की विभूतियों का अतुलनीय योगदान है. 1946 में जब संविधान सभा का गठन हुआ, तब इसमें 38 सदस्य बिहार से थे, जिनमें झारखंड की नौ विभूतियां थीं. हालांकि, झारखंड से केवल आठ नामों की ही चर्चा आमतौर पर होती है, जिनमें खूंटी के मारांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा, लोहरदगा के बोनिसेफ लकड़ा, पश्चिमी सिंहभूम के देवेंद्र नाथ सामंत, हजारीबाग के बाबू रामनारायण सिंह और कृष्ण बल्लभ सहाय, पलामू के यदुवंश सहाय उर्फ यदु बाबू और अमीय कुमार घोष उर्फगोपा बाबू और देवघर के विनोदानंद झा के नाम शामिल हैं, किंतु पश्चिम बंगाल से संविधान सभा के सदस्य रहे प्रभुदयाल हिम्मतहिंका का रिश्ता भी झारखंड से ही था.

1. प्रभुदयाल हिम्मतहिंका

प्रभुदयाल हिम्मतहिंका दुमका के थे. उनका जन्म दुमका में हुआ था. यहीं के जिला स्कूल से उन्होंने स्कूली 1907 में एंट्रेंस की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की. 1911 में स्नातक की डिग्री हासिल करने के लिए वे कोलकाता गये. वहीं उन्होंने पहले एमए और फिर 1914 में वकालत की पढ़ाई पूरी की. वहीं,अंग्रेजों के खिलाफ जंग की तैयारी में जुटे प्रमुख देश भक्त लाला लाजपत राय, मदन मोहन मालवीय, बिपिन चंद्र पाल, सुरेंद्रनाथ बनर्जी, चित्तरंजन दास, घनश्याम दास बिड़ला आदि से प्रेरित हुए. महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार बल्लभ भाई पटेल, मदन मोहन मालवीय सहित देश के कई प्रमुख बड़े नेताओं के संपर्क में वे  आए और आजादी की लड़ाई में सक्रिय भागीदारी निभाने लगे. वे नमक सत्याग्रह, अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलनों में सक्रिय रूप से शामिल रहे. 1937 और 1948 में बंगाल विधानसभा तथा 1946 में असम विधानसभा के चुनाव में वे विजयी हुए. 1956 में वे राज्यसभा के सदस्य चुने गये. 1962 और 1967 में वे वर्तमान झारखंड के गोड्डा लोकसभा क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए. 102 वर्ष की आयु में एक जून, 1991 को उनका निधन हो गया. भारतीय संविधान के निमार्ण में बतौर सदस्य उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. संविधान की मूल प्रति पर उसका भी हस्ताक्षर है. संविधान सभा में शामिल झारखंड की नौ विभूतियों में तीन आदिवासी नेता थे- मारांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा, बोनिसेफ लकड़ा और देवेंद्र नाथ सामंत.

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2. जयपाल सिंह मुंडा

मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा ने भारतीय और आदिवासी अस्मिता, हक-हुकूक पर अंग्रेजों के साथ-साथ गैर-आदिवासियों के हमलों से बचाने के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से लेकर संविधान सभा तक और झारखंड के जंगलों से लेकर लोकसभा तक संघर्ष किया और उसकी रक्षा की. झारखंड के खूंटी जिले के टकरा पाहन टोली में 3 जनवरी, 1903 को उनका जन्म हुआ था. 1918 में वे इंग्लेंड चले गये और वहीं के ऑक्सफोर्ड से मैट्रिक और फिर अर्थशास्त्र में एमए तक की पढ़ाई की. उन्होंने आइसीएस यानी इंडियन सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास की, किंतु 1928 में नीदरलैंड में हुए हॉकी ओलिंपिक्स में भारतीय टीम की कप्तानी के लिए वे आईसीएस की ट्रेनिंग नहीं कर सके. उन्होंने अपने देश के लिए हॉकी की कप्तानी की और स्वर्ण पदक दिलाया. 19 दिसंबर 1946 को संविधान सभा में दिया गया उनका भाषण आदिवासियों की राष्ट्रीय चेतना और जातीय संघर्ष की संवेदना की बानगी है. इसमें उन्होंने कहा था- मैं उन लाखों लोगों की ओर से बोलने के लिए यहां खड़ा हुआ हूं, जो सबसे महत्वपूर्ण लोग हैं, जो आजादी के अनजान लड़ाके हैं, जो भारत के मूल निवासी हैं और जिनको बैकबर्ड ट्राइब्स, प्रिमिटिव ट्राइब्स, क्रिमिनल ट्राइब्स और न जाने क्या-क्या कहा जाता हैं, पर मुझे अपने जंगली होने पर गर्व हैं. आप आदिवासियों को लोकतंत्र सिखा नहीं सकते, बल्कि आपको ही उनसे लोकतंत्र सीखना हैं. आदिवासी इस दुनिया के सबसे लोकतांतत्रिक लोग हैं. 30 अप्रैल 1948 को उन्होंने संविधान सभा में मौलिक अधिकारों पर चर्चा के दौरान आदिवासियों के जमीन पर अधिकार को मौलिक अधिकारों में शामिल किये जाने की मांग को मजबूती से उठाया गया था. उन्होंने पांचवीं और छठी अनुसूची के तहत आदिवासियों के लिए बेहतर व्यवस्था, आदिवासी जमीन के संरक्षण को मौलिक अधिकार बनाने, अनुसूचित जनजाति की जगह आदिवासी शब्द के प्रयोग, आदिवासी के अनुसूचित क्षेत्र से बाहर निकलने पर भी उनके संवैधानिक अधिकार बरकरार रखने जैसे विषयों की पुरजोर वकालत की. उन्होंने झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों का बिहार, बंगाल व मध्य प्रदेश में विभाजित करने का विरोध किया था.

5. बोनीफास लकड़ा

बोनीफास लकड़ा को झारखंड के आंबेडकर के नाम से जाना जाता है. वे लोहरदगा के डोबा गांव के थे, जहां 4 मार्च, 1898 को उनका जन्म हुआ था. वे उरांव जनजाति से थे.  वे पेशे से वकील थे. उन्होंने  संविधान सभा में छोटानागपुर प्रमंडल और संताल परगना को मिला कर स्वायत्त क्षेत्र बनाने और इसे केंद्र शासित राज्य का दर्जा देने की वकालत की थी।. उन्होंने पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में सभी सरकारी नियुक्तियों पर जनजातीय परामर्शदात्री समिति की सलाह व उसके अनुमोदन की भी मांग रखी थी. उन्होंने सलाह दी थी कि विशेष कोष से अनुसूचित क्षेत्रों के समग्र विकास की योजनाएं लागू की जाएं और झारखंडी संस्कृति की रक्षा के प्रबंध किये जाएं. उन्होंने ट्राइबल वेलफेयर के लिए ट्राइबल मिनिस्टर और संविधान के लागू होते ही यथाशीघ्र ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल के गठन की मांग रखी थी.

4. देवेंद्र नाथ सामंत

 पद्मश्री देवेंद्र नाथ सामंत पश्चिमी सिंहभूम के दोपाई गांव के थे. वे मुंडा जनजाति समुदाय से आते थे. संविधान सभा में उन्होंने आदिवासी हितों की बात मजबूती से रखी. 1925 के अंतिम महीने में उन्होंने चाईबासा के बार एसोसिएशन का सदस्य बनकर जिला अदालत में वकालत शुरू की थी. 25 सितंबर, 1925 को चाईबासा में महात्मा गांधी से मिलने के बाद उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया. उन्होंने 1927 में सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया और 1952 तक लगातार इस क्षेत्र में काम किया. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वह राजबंदी के रूप में नौ सितंबर 1942 को गिरफ्तार हुए और 11 फरवरी 1944 तक हजारीबाग जेल में सजा काटी. वे बिहार-उड़ीसा लेजिसलेटिव काउंसिल, बिहार विधानसभा, बिहार विधान परिषद, संविधान सभा के सदस्य और संसद सचिव भी रहे. 

5. यदुवंश सहाय

यदुवंश सहाय पेशे से वकील थे. 20-22 साल की उम्र में ही भारतीय कांग्रेस से जुड़ गये थे और देश की आजादी की लड़ाई में सक्रिय हो गये. वे महात्मा गांधी के भी गरीबी थे. जब महात्मा गांधी ने 1946 में बंगाल के दंगा प्रभावित नोआखोली का दौरा किया था, तब वे उनके  सहयोगी की भूमिका में थे. यदुनाथ सहाय मूल रूप से पलामू जिले के सीमावर्ती, बिहार के औरंगाबाद जिले के अंबा प्रखंड के सरडीहा गांव के थे. उनकी आरंभिक शिक्षा वहीं हुई. उन्होंने कानून की पढ़ाई की और औरंगाबाद में वकालत की शुरू की और भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल हो गये. यह बात उनके मामा, जो पुलिस इंस्पेक्टर थे, को अच्छी नहीं लगी.  उन्होंने यदुवंश सहाय को राजनीति से दूर रखने के लिए डाल्टनगंज के जेलहाता में घर बनाकर वहीं भेज दिया, किंतु यहां आकर स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी सक्रियता और बढ़ गयी. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में वे पलामू जिले के युवाओं के नायक थे. उन्होंने युवाओं का समूह बनाया, जिसमें उमेश्वरी चरण, लालू बाबू, गणेश प्रसाद वर्मा, नंदकिशोर प्रसाद वर्मा, नीलकंठ सहाय आदि शामिल थे.

उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ पलामू के युवाओं का नेतृत्व किया. जब 8 अगस्त, 1942 को  अंग्रेज भारत छोड़ो आंदोलन की संकल्प पारित हुआ, तो उसके अगले दिन ही 9 अगस्त, 1942 को अंग्रेजों ने उनके जेलहाता आवास से गिरफ्तार कर लिया था. ऐसा नहीं था कि वह पहली बार जेल जा रहे थे, इससे पहले भी कई बार वे जेल गये थे. फिर भी ब्रिटिश  प्रशासन का बहादुरी से विरोध कर रहे थे. गिरफ्तारी के बाद उन्हें पहले डाल्टनगंज में रखा गया. बाद में उन्हें हजारीबाग जेल भेज दिया गया. इसी जेल में लोकनायक जयप्रकाश नारायण, प्रसिद्ध साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी और स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण बल्लभ सहाय भी बंद थे. जेपी और यदवंश सहाय की उम्र लगभग समान थी. जेपी का पलामू जिले से घनिष्ठ संबंध था. लिहाजा दोनों के बीच स्वाभाविक निकटता बन गयी. यदुवंश सहाय 1922 से ही कांग्रेस में सक्रिय थे. 1930, 1932 1940 और 1942 में वे स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जेल गये थे. दिल्ली में जहां संविधान सभा के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर सुरक्षित रखे गये हैं ,वहां उनका भी नाम अंकित है.

6. विनोदानंद झा भी थे संविधान सभा के सदस्य

देश के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बिनोदानंद झा देवघर के थे. उनका जन्म 17 अप्रैल 1901 को देवघर के पंडा परिवार में हुआ था.  वे बिहार के तीसरे मुख्यमंत्री थे.  उन्होंने लोकसभा में दरभंगा का प्रतिनिधित्व भी किया था. शुरुआती पढ़ाई देवघर से ही पूरी करने के बाद वे कलकत्ता के सेंट्रल कॉलेज में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए दाखिल हुए, पर देश को अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त कराने के लिए उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में कूद गये. स्वतंत्रता आंदोलन के क्रम में वे 1922, 1930, 1940 और 1942 में लंबी अवधि के लिए जेल गये थे. वे दुमका जेल में भी बंद रहे, जहां उन्हें पत्थर तोड़ने का काम दिया गया था.

7. बाबू राम नारायण सिंह

राम नारायण सिंह का जन्म 9 दिसंबर, 1885 में चतरा जिले के हंटरगंज प्रखंड के तेतरिया गांव में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा तेतरिया के विद्यालय में हुई थी. इसके बाद की स्कूली शिक्षा  उन्होंने हजारीबाग मिडिल वर्नाक्यूलर स्कूल से पूरी की  और स्नातक एवं कानून की डिग्री सेंट जेवियर्स कॉलेज कलकत्ता से प्राप्त की. महात्मा गांधी के कहने पर उन्होंने वकालत छोड़ कर देश सेवा का व्रत लिया. उन्होंने कृष्ण बल्लभ सहाय, राज बल्लभ सिंह, कोडरमा के बद्री सिंह जैसे अन्य युवा कांग्रेस नेताओं के साथ असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में में भाग लिया. उन्हें छोटा नागपुर के शेर के रूप में जाना जाता था. उन्हें 1921 में एक महीने तक जेल में रखा गया था. 1931 से 1939 तक वे आठ बार जेल भेजे गये थे. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय भी वे जेल भेजे गये, जहां से दीपावली की रात में नवंबर 1942 को अन्य क्रांतिकारियों के साथ वह भी भागने में सफल रहे थे. 

8. कृष्ण बल्लभ सहाय

कृष्ण बल्लभ सहाय का जन्म 31 दिसंबर 1898 को बिहार के शेखपुरा में एक मध्यवर्गीय अंबष्ठ कायस्थ परिवार में हुआ था, लेकिन उनका कर्मस्थल हजारीबाग था, जहां सेंट कोलंबस कॉलेज से अंग्रेजी उन्होंने 1919 में आनर्स से प्रथम श्रेणी में स्नातक परीक्षा पास की थी. उन्होंने ने सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930 के दौरान हजारीबाग में नमक बना कर इस आंदोलन को प्रसारित किया,  जिसके लिए उन्हें एक वर्ष का कारावास की सजा मिली थी. वे संविधान सभा के सदस्य थे.

9. अमिय कुमार घोष

अमिय कुमार घोष डाल्टनगंज के रहने वाले थे. वे वहां के पहले विधायक भी थे साथ ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नजदीकी रहे. डाल्टनगंज में उनके आवास ‘सेवा सदन’ पर नेताजी ठहरा करते थे. भारत के स्वतंत्रता सेनानी और संविधान की निर्माता समिति के सदस्य थे. 

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