शकील अख्तर, रांची : रिटायर्ड रेंजर सुरेंद्र झा पर आरोप है कि उन्होंने रिटायरमेंट के बाद सरकारी खाते से 40 लाख रुपये निकाल कर अपने खाते में जमा करा लिये. मामले की गंभीरता को देखते हुए विभागीय सचिव एपी सिंह ने चतरा वन प्रमंडल के तत्कालीन सभी रेंज ऑफिसरों और डीएफओ के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में निगरानी जांच की अनुशंसा की है. रेंजर सुरेंद्र झा चतरा दक्षिणी वन प्रमंडल में पदस्थापित थे.
वर्ष 2013 में रिटायरमेंट के बाद उन्होंने सरकारी खाते से उक्त राशि निकाल निजी खाते में जमा कर लिया. साथ ही इस राशि से वन विभाग की विभिन्न योजनाओं का कागजी काम दिखाया. उन्होंने डीएफओ के माध्यम से इस राशि को विभिन्न योजनाओं में खर्च किये जाने का ब्योरा भी महालेखाकार को सौंप दिया. लेकिन, निर्धारित प्रक्रिया के तहत बैंक ने रेंजर द्वारा सरकारी खाते से की गयी निकासी की सूचना आयकर विभाग को जांच के लिए भेज दी.
आयकर विभाग ने वन विभाग के अधिकारियों से इस संबंध में जानकारी मांगी. वन विभाग के अधिकारियों ने जवाब दिया कि रेंजर ने गलती से सरकारी राशि निजी खाते में जमा कर दी होगी. बैंक में जमा राशि से सूद के रूप में 40 हजार रुपये मिले हैं. यह एक प्रक्रियात्मक भूल है. इसके बाद आयकर विभाग ने जांच बंद कर दी.
छह साल से इधर-उधर घूमती रही फाइल : वन विभाग के अधिकारियों ने रेंजर के खिलाफ प्रक्रियात्मक भूल के आरोप में कार्रवाई करने के लिए फाइल बढ़ायी. यह फाइल पिछले छह साल से विभाग में इधर-उधर घूमती रही. इस दौरान यह फैसला नहीं हो पाया कि संबंधित रेंजर के खिलाफ कौन सी कार्रवाई की जाये.
क्योंकि रेंजर के रिटायरमेंट के चार साल बाद उसके खिलाफ विभाग के स्तर से विभागीय कार्यवाही आदि नहीं की जा सकती है. रेंजर के खिलाफ कार्रवाई करने से जुड़ी यह फाइल विभागीय सचिव के पास पहुंची. उन्होंने मामले की गंभीरता को देखते हुए इस मामले की निगरानी जांच की अनुशंसा की.
वन विभाग की गड़बड़ी में कोई बड़ा अफसर नहीं फंसता : सरकार में सिर्फ वन विभाग ही एक ऐसा विभाग है, जो सारी योजनाओं को विभागीय तौर पर क्रियान्वित करता है. विभागीय सचिव द्वारा राशि के लिए स्वीकृति आदेश जारी करने के बाद उसे पीसीसीएफ के पास भेज दिया जाता है. पीसीसीएफ के स्तर से विकास योजनाओं का आवंटन आदेश एडिशनल पीसीसीएफ(डेवलपमेंट) और एडिशनल पीसीसीएफ(कैंपा) को भेजा जाता है.
इसके बाद इसे संबंधित वन प्रमंडल के डीएफओ को भेजा जाता है. इसके बाद पैसों की अग्रिम निकासी कर रेंजर को दे दिया जाता है. रेंजर इसे अपने पदनाम से खोले गये बैंक खाते में रखता है. योजनाओं को क्रियान्वित करना, मस्टर रौल बनाने और भुगतान की जिम्मेदारी रेंजर की है. राशि खर्च करने के बाद उसका उसका ब्योरा तैयार कर डीएफओ के माध्यम से महालेखाकार को भेजा जाता है. इसलिए बड़े अधिकारी किसी मामले में नहीं फंसते हैं.
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चतरा दक्षिणी वन प्रमंडल में पदस्थापित थे रेंजर सुरेंद्र झा, वर्ष 2013 में हुए थे रिटायर
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सरकारी पैसे अपने खाते में जमा कराये, विभिन्न योजनाओं का कागजी काम दिखाया
Post by : Pritish Sahay