फंड का उपयोग नहीं कर पा रहा रिम्स प्रबंधन, पैसा रहते मशीनें नहीं खरीदीं, मरीज हैं त्रस्त
रिम्स को मशीनों और उपकरणों की खरीद के लिए केंद्र और राज्य सरकारें अच्छा-खासा पैसा उपलब्ध कराती है लेकिन रिम्स प्रबंधन ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पाता है
रांची : झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स को मशीनों और उपकरणों की खरीद के लिए केंद्र और राज्य सरकारें अच्छा-खासा पैसा उपलब्ध कराती है, लेकिन उस पैसे का सही उपयोग नहीं किया जाता है. योजना बजट में पैसे होने के बावजूद यहां जरूरत की मशीनों की खरीद नहीं की जाती है. अगर मशीन खरीद भी ली गयी, तो उसका उपयोग नहीं किया जाता है.
वहीं, उपयोग में लायी जा रही जो मशीनें खराब हो जाती हैं, उनकी सही समय पर मरम्मत नहीं करायी जाती है. कुल मिला कर अस्पताल में बेहतर इलाज की उम्मीद से पहुंचनेवाले मरीजों को निजी जांच घरों और निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ा है. मिसाल के तौर पर वित्तीय वर्ष 2019-20 में योजना बजट के एक अरब 20 करोड़ रुपये पड़े रह गये, लेकिन न तो नयी मशीनों की खरीद हुई और न ही किसी खराब मशीन की मरम्मत का प्रयास किया गया.
इधर, रिम्स शाषी परिषद की आगामी बैठक में वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए याेजना बजट के तहत 1.35 अरब से ज्यादा (135 करोड़ 92 लाख 56 हजार) की लागत से मशीनों की खरीदारी के लिए प्रस्ताव पास कराने की तैयारी चल रही है. शासी परिषद की अनुमति के बाद मशीन की खरीदारी की प्रक्रिया शुरू होगी.
पांच साल से धूल फांक रहीं चार कोगलाे मीटर मशीनें
केंद्र सरकार ने रिम्स के पैथोलॉजी विभाग के लिए चार कोगलो मीटर मशीनें भेजी थीं. मशीन इंस्टॉल तो कर दी गयी, पर सिर्फ री-एजेंट नहीं आने के कारण इसका उपयोग नहीं हो पा रहा. फिलहाल पांच साला से ये मशीनें धूल फांक रही हैं. अस्पताल के ही डॉक्टरों ने बताया कि अगर यह मशीन उपयोग में होती, तो कोरोना की एफडीपी जांच आसान हो जाती.
इनकी न मरम्मत हो रही न नयी खरीदी जा रहीं:::::::::::::::
1. रिम्स की सीटी स्कैन मशीन दो साल से खराब है. ऐसे में डॉक्टर से परामर्श लेने के बाद मरीजों को सरकार द्वारा अधिकृत जांच एजेंसी मेडाल से जांच करानी पड़ती है. यहां मरीजों को जांच के लिए रिम्स की तुलना में ज्यादा पैसे देने पड़ते हैं. नयी सीटी स्कैन मशीन की खरीद प्रक्रिया फिलहाल ही चल रही है.
2. कार्डियोलॉजी विभाग में कैथलैब मशीन काफी पुरानी हो गयी है. यह अक्सर खराब होती है, जिससे एंजियोग्राफी व एंजियोप्लास्टी बंद करनी पड़ती है. वहीं, कार्डियोलाॅजी विभाग में इको मशीन काफी समय से खराब है, लेकिन इसकी भी खरीदारी नहीं हो रही है. आइसीयू में रखे मोबाइल इको मशीन से काम चल रहा है.
3. बायोकेमेस्ट्री विभाग में अॉटोमेटिक एनालाइजर मशीन साल भर से खराब है, लेकिन इसकी भी मरम्मत नहीं करायी जा रही है. वहीं, लैब मेडिसिन में आवश्यक जांच जैसे- लिपिड प्रोफाइल, किडनी फंक्शन आदि की जांच करनेवाली की मशीन भी खराब है. इससे कोरोना संक्रमितों की आवश्यक जांच नहीं हो पा रही है.
देश के बड़े संस्थानों की खरीद प्रक्रिया को अपनाने पर हुआ है फैसला
रिम्स प्रबंधन मशीन की खरीद में टेंडर प्रक्रिया का हवाला देता है, लेकिन सच्चाई यह है कि शासी परिषद की पूर्व में हुई बैठक में इस पर फैसला हो चुका है. उस समय निर्णय लिया गया था कि मरीज हित में जिस मशीन की बहुत जरूरत है, उसके लिए देश के किसी भी बड़े सरकारी संस्थान में खरीद की प्रक्रिया को अपनाया जा सकता है. वहीं, जिस कंपनी ने उन संस्थानों को मशीन उपलब्ध कराया है, उनसे संपर्क कर मशीन खरीद ली जाये, लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी इस निर्णय का पालन नहीं किया गया.
एकमो मशीन होती, तो संक्रमितों का होता इलाज
30 से 40 लाख रुपये के बीच आनेवाली ‘एकमो मशीन’ को कोरोना काल में जीवनरक्षण उपकरण माना जा रहा है. कोरोना संक्रमित का फेफड़ा ज्यादा प्रभावित हो जाता है, तो इसी पर रखकर उसका इलाज किया जाता है. राजधानी के एक निजी अस्पताल में ही यह मशीन है. अगर यह मशीन रिम्स में होती, तो कई संक्रमिताें की जान बचायी जा सकती थी.
लीनेक मशीन का फंड पड़ा है, पर खरीद नहीं
केंद्र सरकार ने रिम्स को ‘लीनेक मशीन’ की खरीद के लिए फंड आवंटित कर दिया है. लेकिन अब तक यह मशीन नहीं खरीदी गयी. जबकि, इसी अस्पताल के डॉक्टर कहते हैं कि लीनेक मशीन होती, तो यहां कैंसर के मरीजों का बेहतर इलाज संभव हो पाता. अगर समय रहते यह मशीन नहीं खरीदी गयी, तो फंड केंद्र को वापस चला जायेगा.
योजना मद में पैसा पड़ा हुआ है, लेकिन टेंडर प्रक्रिया पूरी नहीं होने पाने के कारण मशीन की खरीद नहीं हो पायी है. हर बार टेंडर रद्द हो जाता था. फिलहाल टेंडर की प्रक्रिया अंतिम चरण में है. शासी परिषद की बैठक में मशीन खरीद के फंड पर अनुमाेदन होना है. इसके बाद खरीदारी में दिक्कत नहीं होगी. विभागों में मशीन का उपयोग नहीं हो रहा है या पड़ा हुआ है, तो इसकी जिम्मेदारी संबंधित विभागाध्यक्ष की है.- डॉ मंजू गाड़ी, प्रभारी निदेशक, रिम्स
posted by : sameer oraon