झारखंड हाइकोर्ट ने रिम्स में इलाज की लचर व्यवस्था और विभिन्न संवर्गों में रिक्त पदों पर नियुक्ति काे लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए रिम्स की कार्यशैली पर नाराजगी जतायी. चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस सुजीत नारायण की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान माैखिक रूप से कहा कि झारखंड में दो तरह की खदान है. एक कोयले के दोहन के लिए और दूसरा रिम्स, जहां गलत काम करने की खदान है.
रिम्स में सिर्फ कमियां ही कमियां हैं. इसे दुरुस्त करने के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की गयी है. रिम्स के डॉक्टर धड़ल्ले से प्राइवेट प्रैक्टिस भी करते हैं तथा साथ में एनपीए भी लेते हैं. सरकार ने प्राइवेट प्रैक्टिस करने पर रोक लगाने के लिए समिति भी बनायी है. समिति क्या कर रही है. खंडपीठ ने कहा कि रिम्स में प्रशासनिक व्यवस्था ध्वस्त हो गयी है. रिम्स अधीक्षक ऐसे व्यक्ति को होना चाहिए, जिसका पूर्ण नियंत्रण रिम्स की सारी व्यवस्था पर होनी चाहिए.
खंडपीठ ने स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव (अपर मुख्य सचिव) को अगली सुनवाई के दाैरान सशरीर उपस्थित होने का निर्देश दिया. मामले की अगली सुनवाई 29 नवंबर को होगी. इससे पूर्व रिम्स की ओर से अधिवक्ता डॉ अशोक कुमार सिंह ने पैरवी की, जबकि राज्य सरकार की से अपर महाधिवक्ता सचिन कुमार ने पक्ष रखा. उल्लेखनीय है कि रिम्स में इलाज की बदतर स्थिति को गंभीरता से लेते हुए झारखंड हाइकोर्ट ने उसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था.
पिछली सुनवाई के दाैरान कोर्ट ने रिम्स में चतुर्थ वर्गीय पदों पर नियुक्ति के लिए पहले झारखंड के नागरिकों, बाद में संशोधित कर झारखंड के निवासियों से आवेदन मांगने पर नाराजगी जतायी थी तथा जवाब मांगा था. पूछा था कि किस कानून, नियम, परिनियम, सर्कुलर या सरकार के किस आदेश से इस तरह का आवेदन मांगा गया है. सभी पद झारखंड के लोगों के लिए कैसे आरक्षित कर दिया गया. रिम्स में चतुर्थ वर्ग के 467 विभिन्न पदों पर चल रही नियुक्ति प्रक्रिया के तहत चयनित अभ्यर्थियों को अगले आदेश तक नियुक्ति पत्र देने पर भी रोक लगा दी थी.
हाइकोर्ट ने सेवानिवृत्त कर्मचारियों के बकाया भुगतान मामले में दिये गये आदेश का अनुपालन नहीं होने पर परिवहन सचिव को अगली सुनवाई में सशरीर हाजिर होने का आदेश दिया है. मामले की अगली सुनवाई नौ दिसंबर को होगी. परिवहन विभाग के सेवानिवृत्त कर्मचारियों ने अदालत में एक अवमानना याचिका दायर की थी. इसमें कहा गया था कि हाइकोर्ट ने सेवानिवृत्त कर्मचारियों के बकाये का भुगतान करने का आदेश 29 जनवरी 2020 को पारित किया था. अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि संबंधित कर्मचारियों के बकाये की गणना कर इसका भुगतान कर दें.
इस मामले में राज्य सरकार की ओर से यह दलील दी गयी थी कि बिहार राज्य पथ परिवहन निगम के कर्मचारियों की सेवा पुस्तिका झारखंड सरकार के पास नहीं है. इस कारण बकाया राशि की गणना करना संभव नहीं हो पा रहा है. अदालत द्वारा दिये गये भुगतान के आदेश के खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक क्यूरेटिव पिटीशन दायर की थी. इसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. इसके बाद याचिकाकर्ता ने झारखंड हाइकोर्ट में एक अवमानना याचिका दायर की.