रांची: रिम्स में नवजात बच्चों (न्यू बॉर्न) की जान बचाने के लिए पर्याप्त वेंटिलेटर नहीं हैं. रिम्स के नियोनेटोलॉजी विभाग में सिर्फ पांच वेंटिलेटर हैं, जो अस्पताल पहुंच रहे बीमार बच्चों की संख्या के हिसाब से नाकाफी हैं. इस कारण गंभीर बच्चों को रिम्स से लौटना पड़ रहा है या फिर उन्हें निजी शिशु अस्पतालों में रेफर किया जा रहा है.
दूसरी ओर निजी अस्पतालों में नवजातों के लिए रिम्स की अपेक्षा पांच गुना अधिक वेटिलेटर हैं. इस कारण गरीब और आयुष्मान योजना के तहत बीमार बच्चों को भी निजी अस्पतालों पर ही निर्भर रहना पड़ता है. वैसे, रिम्स नियोनेटोलॉजी विभाग द्वारा नवजातों के लिए वेंटिलेटर की खरीद प्रक्रिया शुरू की गयी है, लेकिन इसके पूरा होने में कम से कम छह माह का समय लग सकता है.
आयुष्मान में नहीं जुड़ने वाले मध्यम श्रेणी के अभिभावकों को नवजातों के इलाज पर काफी पैसा खर्च करना पड़ता है. निजी शिशु अस्पताल में अगर बच्चे को वेंटिलेटर पर रखकर इलाज करना पड़ता है, तो एक दिन का खर्च 8,000 से 10,000 रुपये (दवा के साथ) आता है. अगर रिम्स के नियोनेटोलॉजी विभाग में पर्याप्त वेंटिलेटर होता, तो अभिभावकों को राहत मिलती.
रिम्स राज्य का सबसे बड़ा अस्पताल है, जहां विभिन्न जिलों के अलावा पड़ोसी राज्यों के मरीज अपने बच्चों का इलाज कराने आते हैं. ऐसे में रिम्स के नियोनेटोलॉजी विभाग के पास कम से कम 20 से 25 वेंटिलेटर होना चाहिए. सूत्रों के अनुसार, नवजात बच्चों के वेंटिलेटर की कीमत 12 से 14 लाख रुपये है. यानी रिम्स के शिशु विभाग को पर्याप्त वेंटिलेटर खरीदने के लिए तीन करोड़ खर्च करना पड़ेगा.
रिम्स के प्रतापपुर प्रखंड की प्रसूता को रिम्स में छह सितंबर को भर्ती कराया गया था. जन्म के बाद बच्चे को समस्या थी, जिससे नवजात को वेंटिलेटर पर रखना था. लेकिन रिम्स में वेंटिलेटर नहीं होने से उसे निजी अस्पताल रेफर करना पड़ा.
न्यूबॉर्न केयर यूनिट में नवजात के लिए पांच ही वेंटिलेटर हैं, लेकिन खरीद की प्रक्रिया चल रही है. वेंटिलेटर कम हैं, इसलिए खाली नहीं होने पर मरीजों की जान बचाने के लिए रेफर करना पड़ रहा है.
डॉ हिरेंद्र बिरुआ, अधीक्षक रिम्स